पुलिस हिरासत में प्रतिदिन हो रही पांच मौतें, CJI ने थानों में बताया मानवाधिकारों को खतरा
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एनवी रमन्ना ने देश के पुलिस थानों में बढ़ती क्रूरता और पुलिस की अमानवीयता पर बड़ा बयान दिया है।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में देश के पुलिस थानों में मानवाधिकारों को सबसे अधिक खतरा है। यहां विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को भी थर्ड डिग्री ट्रीटमेंट से नहीं बख्शा जाता है।
CJI की इस टिप्पणी में थानों की व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
यहां जानते हैं कि आखिर CJI ने ऐसा क्यों कहा है।
बयान
शारीरिक अखंडता के लिए खतरा बने हुए हैं पुलिस थाने- CJI
CJI रमन्ना ने भारतीय राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) द्वारा विजन एंड मिशन स्टेटमेंट और NALSA के लिए मोबाइल ऐप की लॉन्चिंग पर आयोजित कार्यक्रम में मानवाधिकारों और गरिमा को पवित्र बताते हुए मानवाधिकारों और शारीरिक अखंडता के लिए पुलिस स्टेशनों में सबसे अधिक खतरा बताया।
उन्होंने कहा कि संवैधानिक घोषणाओं और गारंटियों के बावजूद पुलिस थानों में प्रभावी कानूनी प्रतिनिधित्व की कमी गिरफ्तार या हिरासत में लिए गए व्यक्तियों के लिए एक बड़ा नुकसान है।
जरूरत
लोगों को कानूनी सहायता सेवाओं की उपलब्धता की दी जाए जानकारी- CJI
CJI ने कहा कि पुलिस की ज्यादतियों को रोकने के लिए कानूनी सहायता के संवैधानिक अधिकार और मुफ्त कानूनी सहायता सेवाओं की उपलब्धता के बारे में लोगों में जागरुकता लाना आवश्यक है। प्रत्येक पुलिस स्टेशन, जेल में डिस्प्ले बोर्ड और आउटडोर होर्डिंग की स्थापना इस दिशा में एक कदम है।
उन्होंने कहा कि अत्यधिक विशेषाधिकार प्राप्त और सबसे कमजोर लोगों के बीच न्याय तक पहुंच के अंतर को खत्म करना बेहद जरूरी है।
कारण
देश के प्रतिदिन औसतन पांच लोगों की हो रही हिरासत में मौत
CJI के इस बयान के पीछे कारण हिरासत में हो रही मौतें हैं। न्यूज 18 के अनुसार, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के रिकॉर्ड की माने तो 2021 के पहले पांच महीनों में 1,067 लोगों की हिरासत में मौत हुई।
फरवरी में सबसे अधिक 263 मौतें दर्ज की गईं, जबकि मार्च में पुलिस हिरासत में सबसे अधिक मौतें दर्ज की गईं।
गत दिनों सरकार ने लोकसभा में बताया कि पिछले तीन सालों में 348 लोगों की पुलिस हिरासत में मौत हुई है।
हालत
10 सालों में हिरासत में हुई 17,146 लोगों की मौत
रिकॉर्ड के अनुसार मार्च 2020 तक के दशक में देश में कुल 17,146 लोगों की न्यायिक और पुलिस हिरासत में मौत हुई है। इस हिसाब से देश में प्रतिदिन औसतन पांच लोगों की हिरासत में मौत हुई है।
बता दें कि पुलिस द्वारा किसी संदिग्ध को गिरफ्तार करना हिरासत कहा जाता है। कोर्ट के आदेश पर किसी भी व्यक्ति को अधिकतम 15 दिन पुलिस हिरासत में रखा जा सकता है। इसी तरह विचाराधीन बंदी को न्यायिक हिरासत कहा जाता है।
जानकारी
63 प्रतिशत मौतें गिरफ्तारी के 24 घंटे में ही हुई
नेशनल कैंपेन अगेंस्ट टॉर्चर (NCAT) की एक रिपोर्ट के अनुसार किसी भी व्यक्ति को पुलिस 24 घंटे से ज्यादा हिरासत में नहीं रख सकती है, लेकिन पुलिस हिरासत में हुई 63 प्रतिशत मौतें गिरफ्तारी के 24 घंटों के भीतर ही होना पाया गया है।
कार्रवाई
दोषियों पर नहीं होती है कार्रवाई
नेशनल कैंपेन अगेंस्ट टॉर्चर (NCAT) के अनुसार साल 2004 से 2018 के बीच पुलिस हिरासत में मौत या लापता होने के 500 मामले दर्ज किए गए, लेकिन चार्जशीट महज 54 पुलिसकर्मियों को दी गई।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार 2017 में 33 पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार और 27 को चार्जशीट दी गई थी, लेकिन दोषी किसी को नहीं ठहराया गया।
इसी तरह 2019 में हिरासत में 85 मौत होने पर भी किसी भी पुलिसकर्मी को दोषी नहीं ठहराया गया।
महिला
महिलाएं हैं अधिक असुरक्षित
2017 में एक संसदीय पैनल ने उत्तर प्रदेश में हिरासत में बलात्कार के मामलों पर चिंता जताई थी, जहां से देश के 90 प्रतिशत से अधिक मामले सामने आए थे।
पैनल ने 2015 के आंकड़ों पर अपनी रिपोर्ट में कहा था कि उत्तर प्रदेश में पुलिस हिरासत में महिला सबसे ज्यादा असुरक्षित है।
उत्तर प्रदेश में हिरासत में बलात्कार के 95 मामले सामने आए। उसके बाद उत्तराखंड से दो तथा आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल से एक-एक मामला सामने आया।
जाति
जाति भी है प्रमुख कारक
जेलों के आंकड़ों के अनुसार, भारत में तीन में से दो कैदी (69 प्रतिशत) और विचाराधीन कैदी (65 प्रतिशत) अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग से हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 में NCAT द्वारा दर्ज की गई पुलिस हिरासत में 125 मौतों में से 60 प्रतिशत गरीब और पिछड़े समुदायों के लोगों की हुई थी। इनमें दलित और आदिवासी समुदायों के 13 और मुस्लिम समुदाय के 15 लोग शामिल थे।