#NewsBytesExplainer: 2D से कितनी अलग है 3D तकनीक, फिल्मों में कैसे वास्तविक दिखती हैं घटनाएं?
इन दिनों ऋतिक रोशन और दीपिका पादुकोण अपनी फिल्म फाइटर को लेकर सुर्खियों में है। सिनेमाघरों में फिलहाल एक यही फिल्म लगी है, जो ठीक-ठाक कमाई कर रही है। यह फिल्म कई वर्जन में रिलीज हुई थी, जिसमें 2D, 3D, IMAX 3D, 4DX 3D, ICE 3D और IMAX 2D शामिल हैं। क्या आप जानते हैं कि 2D और 3D तकनीक क्या है? अगर नहीं जानते तो आइए आज आपको इन दोनों तकनीकों के बारे में विस्तार से बताते हैं।
2D फिल्में क्या हैं?
2D फिल्में नियमित फिल्में होती हैं और केवल दो आयामों का उपयोग करती हैं। इसमें किसी भी तरह की गहराई नहीं होती है और केवल लंबाई और चौड़ाई शामिल होती है। 2D में एक समय में एक कोण से एक छवि देखी जा सकती है। 'दृश्यम 2', 'पठान', और कैटरीना कैफ की 'मेरी क्रिसमस' 2D फिल्में हैं। इस तकनीक के जरिए आपको सिनेमाघरों में फिल्में वैसे ही दिखती हैं, जैसे अपनी कंप्यूटर स्क्रीन या टीवी की स्क्रीन पर दिखती हैं।
2D का दौर अब कम हुआ
आज के समय में 2D फिल्मों का दौर कम हो गया है। इसकी प्रमुख वजह है लोगों की दिलचस्पी 3D फिल्मों की तरफ बढ़ना, वहीं कुछ लोग 4D वाली उच्च तकनीक फिल्मों में रूचि ले रहे हैं। जब प्रभास की फिल्म 'आदिपुरुष' दुनियाभर में 2D और 3D फॉर्मेट में रिलीज हुई थी तो 2D में फिल्म देखने वालों ने इसकी खूब धज्जियां उड़ाई थीं, जबकि 3D फॉर्मेट में फिल्म के विजुअल्स देखने वाले दर्शक इससे प्रभावित थे।
अब जानिए 3D फिल्मों के बारे में
3D फिल्में दर्शकों को असल वाला अनुभव देती हैं। 3D में तीन आयाम लंबाई, ऊंचाई और चौड़ाई शामिल होते हैं। इन फिल्मों को देखने के लिए एक खास चश्मा लगाना होता है, जिसे सिनेमाघरों में दर्शकों को दिया जाता है। 3D फिल्मों में पिक्चर को 360֯ डिग्री तक घुमाया जा सकता है। उनकी गुणवत्ता भी बेहतर होती है। 3D तकनीक से फिल्म देखने का मजा दोगुना हो जाता है।
पोलेराइड चश्मा
3D फिल्में देखने के लिए जाे चश्मा दिया जाता है, उसे पोलेराइड चश्मा कहा जाता है, लेकिन अगर चश्मा उतार कर फिल्म देखी जाए तो पर्दे पर किसी भी चीज की 2-2 इमेज दिखाई देने लगती है और फिल्म बड़ी धुंधली दिखती है।
3D फिल्मों को बनाना मुश्किल
3D फिल्मों को बनाना 2D की तुलना में आसान नहीं होता है। इन्हें बनाने में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है, वहीं लागत की बात करें तो 2D की तुलना में 3D फिल्मों लागत भी ज्यादा होती है। यही वजह है कि इन फिल्मों का बजट अधिक होता है। 'रा-वन', 'RRR', 'ABCD 2' और 'हांटेड 3डी' जैसी कुछ प्रमुख फिल्में 3D फॉर्मेट में ही रिलीज हुई थीं। अजय देवगन की 'भोला' 2D और 3D में रिलीज हुई थीं।
3D में घटनाएं वास्तविक क्यों लगती हैं?
हम जब पर्दे पर किसी चीज को देखते हैं तो वो हमारे आंखों के साथ अलग-अलग एंगल बनाती है। चीजें जितनी दूर होती है, बीच का एंगल छोटा होता जाता है। अब अगर फिल्म निर्माता चाहे कि आप उस घटला को पास से देखें तो पर्दे पर 2 चीजों की दूरी बढ़ा दी जाती है, जिससे हमारे आंखों के साथ इमेज के साथ बना हुआ एंगल बढ़ जाता है और लगता है कि वो वस्तु हमारे बिल्कुल पास ही है।
2D से ज्यादा महंगे होते हैं 3D फिल्मों के टिकट
3D के टिकट 2D से ज्यादा महंगे होते हैं। ये महानगरों-बड़े शहरों के मल्टीप्लेक्स सिनेमाघरों में ज्यादा चलने वाला फॉर्मेट है। दिल्ली में जहां 'भोला' के 2D वर्जन का टिकट 260 रुपये था, वहीं 3D में टिकट का दाम 340 रुपये था। जब फिल्म का प्रचार 3D के तौर पर किया जाता है तो उसके 2D दर्शक कम होते हैं। अगर फिल्म 3D में कोई अद्भुत चीज नहीं पेश कर रही तो इस वर्जन में भी कमाई गिरने लगती है।
न्यूजबाइट्स प्लस
3D फिल्मों का इजाद एक नासा वैज्ञानिक वैलेरी थॉमस ने किया था। उन्होंने इसी के साथ 3D टेलीविजन का भी आविष्कार किया था। भारत की पहली 3D फिल्म 'माय डियर कुट्टीचाथन' थी। हालांकि, अब 3D फिल्मों का चलन आम है।