'हमारे बारह' रिव्यू: एक धर्म पर टिकी कमजोर कहानी, अन्नू कपूर भी नहीं संभाल पाए फिल्म
क्या है खबर?
पिछले काफी समय से अदालत के चक्कर में फंसी दिग्गज अभिनेता अन्नू कपूर की विवादित फिल्म 'हमारे बारह' ने आखिरकार आज (21 जून) को सिनेमाघरों का दरवाजा खटखटा दिया है।
कमल चंद्रा निर्देशित फिल्म पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगा था, जिसके बाद इसके कलाकारों को जान से मारने की धमकियां भी मिली थीं।
हालांकि, अब जब 'हमारे बारह' रिलीज हो चुकी है तो चलिए जानते हैं कैसी है विवादों में फंसी यह फिल्म।
कहानी
बढ़ती जनसंख्या पर आवाजा उठाती फिल्म
'हमारे बारह' की कहानी उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी नवाब साहब (अन्नू) और उनके परिवार के इर्द-गिर्द बुनी गई है।
11 बच्चों के बाद भी नवाब साहब की दिली इच्छा है कि अल्लाह की रहमत रही तो वे 12वीं बार भी अब्बा बनेंगे।
अपने नियम-कायदों पर परिवार को चलाने वाले नवाब साहब की दूसरी पत्नी रुखसार (इश्लिन प्रसाद) छठवीं बार गर्भधारण कर भी लेती हैं, लेकिन डॉक्टर के अनुसार बच्चे को जन्म देते समय उसकी जान भी जा सकती है।
विस्तार
क्या गुनाह है गर्भपात?
डॉक्टर की बात सुन जहां सभी परेशान होते हैं, वहीं नवाब साहब की खुशी का कोई ठिकाना नहीं होता।
वह न्यायाधीश की तरह फैसला सुनाते हैं कि बच्चे अल्लाह का आशीर्वाद होते हैं और किसी भी परिस्थिति में गर्भपात कराना गुनाह है। उनका इस्लाम उन्हें इसकी इज्जात नहीं देता।
ऐसे में अपने पिता की सोच से तंग आकर अल्फिया (अदिति भटपहरी) कोर्ट का दरवाजा खटखटाती है। इसके बाद की कहानी जानने के लिए आपको सिनेमाघरों का रुख करना होगा।
अभिनय
अन्नू कपूर ने की ओवर एक्टिंग
अभिनय के मामले में अन्नू का कोई मुकाबला नहीं है, लेकिन इस फिल्म में वे कुछ ज्यादा ही एक्टिंग करते दिखे हैं।
बहुत से दृश्य ऐसे हैं जहां वह बेवजह की अपनी आवाज ऊंची कर चिल्लाते दिखते हैं। हालांकि, उनकी उर्दू भाषा की समझ पर्दे पर साफ नजर आती है।
अल्फिया के रूप में अदिति द्वारा अच्छा अभिनय किया गया। वह किरदार के साथ न्याय करती दिखीं। उन्होंने अपने किरदार को पूरी शिद्दत से निभाया है।
जानकारी
सहायक कलाकारों का जानदार अभिनय
जहां अल्फिया के पक्ष से खड़ी हुईं वकील आफरीन के किरदार में अश्विनी कालसेकर ने अच्छा काम किया है, वहीं विरोधी पक्ष के वकील रूप में मनोज जोशी ने मंझा हुआ प्रदर्शन किया। रिपोर्टर की भूमिका में पार्थ समथान का काम भी ठीक-ठाक है।
निर्देशन
निर्देशन में विफल रहे कमल
कमल ने निर्देशक की कुर्सी संभालते हुए हमारे सामने ऐसी कहानी पेश की है, जो महिलाओं के संघर्ष और जनसंख्या नियंत्रण जैसे गंभीर मुद्दों को उजागर करती है।
उनकी कहानी में दम तो है, लेकिन अगर वह इसे खाली इस्लाम से ना जोड़ते हुए बाकी धर्मों से भी जोड़ते तो यह ज्यादा असरदार साबित होती।
ऐसे में लेखक राजन अग्रवाल थोड़ी और मेहनत के साथ इसे और ज्यादा प्रभावशाली बना सकते थे। कमल कई बार मुद्दे से भटकती दिखती है।
निर्देशक
बोर करता पहला भाग
फिल्म का पहला भाग पात्रों और कहानी को स्थापित करने में ही निकल जाता है, जो कभी-कभार बोर करता है।
हालांकि, इंटरवल के बाद फिल्म अपने ट्रैक पर लौटते हुए एक जोरदार कोर्टरूम ड्रामा में तब्दील हो जाती है, जिसके लिए कमल की तारीफ करना बनता है।
अल्फिया और पत्रकार दानिश (पार्थ) के बीच की आधी-अधूरी प्रेम कहानी फिल्म में बेवजह डाली गई है। इसके लिए फिल्म की कहानी में कोई जगह नहीं थी।
कमी
यहां भी खली कमी
'हमारे बारह' की सबसे बड़ी कमी इसका एक ही धर्म पर आधारित होना है। वैसे भी साफ है कि देश की लगातार बढ़ रही जनसंख्या किसी एक धर्म की नहीं, बल्कि पूरे देश की समस्या है।
फिल्म का संगीत और गाने भी प्रभावित करने में विफल रहते हैं।
कुल मिलाकर अगर यह फिल्म एक-दो दशक पहले रिलीज हुई होती तो कमाल कर सकती थी, लेकिन आज के समय के हिसाब से यह कहानी बहुत पुरानी लगती है।
जानकारी
कमजोर पड़ी फिल्म की महिला कलाकार
महिलाओं की लड़ाई को पर्दे पर लाने की कोशिश करती इस फिल्म में महिलाओं को ज्यादातर समय रोते हुए और कमजोर रूप में पेश किया गया है। छोटे बच्चों का भी फिल्म में सही उपयोग नहीं हो सका है। निर्देशन की कमी साफ झलकती है।
निष्कर्ष
देखें या ना देखें?
क्यों देखें?- फिल्म बहुत से सामाजिक मुद्दे दिखाती है और अगर आपको ऐसी फिल्में देखने में दिलचस्पी है तो आप थिएटर जा सकते हैं। इसके साथ ही अगर आप अन्नू के अभिनय के प्रशंसक हैं तो भी यह देखने योग्य है।
क्यों ना देखें?- 2 घंटे 28 मिनट की यह फिल्म एक ही धर्म का आइना सी भी प्रतीत होती है। ऐसे में अगर आप इसमें हंसी-मजाक की तलाश कर रहे हैं तो ठगे जा सकते हैं।
न्यूजबाइट्स स्टार- 2.5/5