नए इनकम टैक्स कानून में अधिकारी जांच सकेंगे सोशल मीडिया और ईमेल, विशेषज्ञों ने किया विरोध
क्या है खबर?
सरकार ने सालाना 12 लाख रुपये तक की आय तो कर मुक्त कर दी है, लेकिन इनकम टैक्स से जुड़े नए विधेयक ने चिंताएं बढ़ा दी हैं।
इस विधेयक में प्रावधान है कि आयकर विभागे बिना बताए आपके सोशल मीडिया अकाउंट, निजी ईमेल, बैंक अकाउंट, ऑनलाइन निवेश अकाउंट, ट्रेडिंग अकाउंट और अन्य चीजों तक पहुंच सकता है। ये बदलाव 1 अप्रैल से लागू होगा।
विशेषज्ञों ने इस कदम की आलोचना की है।
प्रावधान
विधेयक में क्या है प्रावधान?
द इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, आयकर विभाग को करदाताओं के सोशल मीडिया खातों, ईमेल, बैंक खातों, ट्रेडिंग खातों आदि तक पहुंच प्राप्त करने का कानूनी अधिकार होगा।
अगर आयकर विभाग को शक है कि किसी व्यक्ति ने आयकर चोरी की है या आभूषण, सोना, धन, जैसी अन्य मूल्यवान वस्तु या संपत्तियों के बारे में जानकारी नहीं दी है तो आयकर विभाग के पास करदाता के ट्रेडिंग अकाउंट, निवेश खाते और फोन तक का एक्सेस लेने का अधिकार होगा।
पुराना कानून
पहले क्या था कानून?
फिलहाल आयकर अधिकारी लैपटॉप, हार्ड ड्राइव और ईमेल की जानकारी मांग सकते हैं, लेकिन वर्तमान कानून में डिजिटल रिकॉर्ड का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं है, इसलिए इस तरह की मांगों को अक्सर कानूनी चुनौती का सामना करना पड़ता है।
नए विधेयक में स्पष्ट किया गया है कि अगर कोई करदाता डिजिटल संपत्तियों तक पहुंच को रोकता है तो वे पासवर्ड को बायपास कर सकते हैं, सुरक्षा सेटिंग्स को ओवरराइड कर सकते हैं और फाइलों को अनलॉक कर सकते हैं।
नया कानून
नए कानून में क्या है?
नए आयकर विधेयक के खंड 247 के अनुसार, आयकर अधिकारियों को कुछ मामलों में ईमेल, सोशल मीडिया, बैंक विवरण और निवेश खातों तक पहुंचने का अधिकार होगा।
अधिकारी इस शक्ति का उपयोग करने के लिए किसी भी कंप्यूटर सिस्टम या वर्चुअल डिजिटल स्पेस तक कोड को ओवरराइड कर पहुंच प्राप्त कर सकते हैं।
आसान भाषा में कहें तो अधिकारियों को वर्चुअल डिजिटल स्पेस में संग्रहीत किसी भी डेटा को प्राप्त करने की छूट होगी।
विरोध
विशेषज्ञों ने किया विरोध
इंफोसिस के पूर्व CFO मोहनदास पई ने लिखा, 'यह अधिकारों पर हमला है! सरकार को दुरुपयोग के खिलाफ सुरक्षा उपाय प्रदान करने चाहिए, इससे पहले अदालत का आदेश प्राप्त करना चाहिए।'
नांगिया एंडरसन LLP के पार्टनर विश्वास पंजियार ने रॉयटर्स से कहा, "यह आयकर अधिनियम, 1961 से एक उल्लेखनीय विचलन है, जो डिजिटल डोमेन को कवर नहीं करता था। स्पष्ट सुरक्षा उपायों के बिना ये शक्तियां करदाताओं के उत्पीड़न या व्यक्तिगत डेटा की अनावश्यक जांच का कारण बन सकती हैं।"