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    घाना में सामने आए मारबर्ग वायरस के दो मामले, इबोला जितना खतरनाक

    घाना में सामने आए मारबर्ग वायरस के दो मामले, इबोला जितना खतरनाक
    लेखन मुकुल तोमर
    Jul 18, 2022, 04:53 pm 1 मिनट में पढ़ें
    घाना में सामने आए मारबर्ग वायरस के दो मामले, इबोला जितना खतरनाक
    घाना में मारबर्ग वायरस के दो मामले सामने आए हैं

    पश्चिम अफ्रीकी देश घाना में बेहद संक्रामक मारबर्ग वायरस के दो मामले सामने आए हैं। इन दोनों मरीजों को जुलाई की शुरूआत में इस वायरस से संक्रमित पाया गया था, हालांकि दोबारा पुष्टि करने के लिए सैंपलों को सेनेगल के पाश्चर इंस्टीट्यूट भेजा गया और अब इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में भी उनके मारबर्ग वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इसे घाना में मारबर्ग वायरस का पहला मामला बताया है।

    दोनों मरीजों की हो चुकी है मौत

    घाना स्वास्थ्य सेवा (GHS) के अनुसार, दोनों मरीजों को अलग-अलग समय पर देश के दक्षिणी इलाके आशांति के एक ही अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्हें बचाया नहीं जा सका और डायरिया, बुखार, मतली और उल्टी जैसे लक्षणों की वजह से उनकी पहले ही मौत हो चुकी है। दोनों मरीज पुरुष थे। एक मरीज की उम्र 24 साल और एक मरीज की उम्र 51 साल थी। उनके संपर्क में आए 98 लोगों को क्वारंटीन किया गया है।

    मारबर्ग वायरस के मामले वाला दूसरा पश्चिम अफ्रीकी देश है घाना

    WHO के अनुसार, घाना दूसरा ऐसा पश्चिम अफ्रीकी देश है जहां मारबर्ग वायरस का कोई मामला पाया गया है। इससे पहले पिछले साल सितंबर में गिनी में इस वायरस का एक मामला सामने आया था। अफ्रीका के अन्य देशों में भी इस वायरस के मामले सामने आ चुके हैं। इन देशों में अंगोला, कांगो, केन्या, दक्षिण अफ्रीका और युगांडा जैसे देश शामिल हैं। इस वायरस का पहला मामला 1967 में सामने आया था।

    क्या है मारबर्ग वायरस?

    मारबर्ग वायरस 'फिलोवायरस' फैमिली से संबंध रखता है। बेहद खतरनाक इबोला वायरस भी इसी फैमिली से आता है और ये दोनों वायरस कई मामलों में एक जैसे हैं। 1967 में जिन तीन जगहों पर इस वायरस के पहले मामले सामने आए थे, उनमें जर्मनी का मारबर्ग भी शामिल था और वहीं से इस वायरस को अपना नाम मिला है। इसके लक्षण दिखने में 2-21 दिन लग सकते हैं। गंभीर मरीजों की मौत लक्षण दिखने के आठ-नौ दिन बाद होती है।

    कैसे फैलता है मारबर्ग वायरस?

    शुरूआत में चमगादड़ों की गुफाओं में ज्यादा लंबे समय तक रहने से मारबर्ग वायरस इंसानों में आता है। यह इंसानों और बंदरों जैसी प्रजातियों को संक्रमित कर सकता है। मारबर्ग इंसानों से इंसानों में भी फैल सकता है। संक्रमित इंसान के खून, पसीने, अंगों और शरीर से निकलने वाली अन्य चीजों के संपर्क में आने पर कोई भी व्यक्ति इससे संक्रमित हो सकता है। अंतिम संस्कार में संक्रमित के संपर्क में आने वाले लोग भी इससे संक्रमित हो सकते हैं।

    क्या हैं संक्रमण के लक्षण?

    मारबर्ग वायरस रक्तस्रावी बुखार का कारण बनता है, जिससे इंसानों की मौत होती है। तेज सिरदर्द, शरीर में दर्द, डायरिया, उल्टी और मल में खून आना, नाक और अन्य जगहों से खून आना और बिना खुलजी वाले दाने आदि इसके अन्य लक्षण हैं।

    कितना खतरनाक है मारबर्ग वायरस?

    मारबर्ग वायरस इबोला वायरस जितना ही खतरनाक है। WHO के अनुसार, इस वायरस से संक्रमित होने लोगों की मृत्यु दर लगभग 50 प्रतिशत है। अतीत में वायरस के स्ट्रेन और इलाज की वजह से इसकी मृत्यु दर 24 प्रतिशत से 88 प्रतिशत तक रह चुकी है। अभी तक मारबर्ग वायरस का कोई भी इलाज उपलब्ध नहीं हैं और न ही इसके खिलाफ कोई वैक्सीन बनाई गई है। इन कारणों से यह वायरस और अधिक खतरनाक हो जाता है।

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