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    कोरोना महामारी के बीच गिनी में सामने आया जानलेवा 'मारबर्ग' वायरस का पहला मामला
    कोरोना महामारी के बीच गिनी में सामने आया जानलेवा 'मारबर्ग' वायरस का पहला मामला।

    कोरोना महामारी के बीच गिनी में सामने आया जानलेवा 'मारबर्ग' वायरस का पहला मामला

    लेखन भारत शर्मा
    Aug 10, 2021
    01:36 pm

    क्या है खबर?

    दुनियाभर में कोरोना संक्रमण के मामलों में फिर से इजाफा होने के साथ तीसरी लहर की आशंका बढ़ गई है। तमाम देश इस लहर से बचने की तैयारी में जुटे हुए हैं।

    इसी बीच पश्चिम अफ्रीकी देश गिनी में इबोला से संबंधित अत्यधिक घातक 'मारबर्ग' वायरस का पहला मामला सामने आया है।

    विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इसकी पुष्टि की है। यह वायरस भी जानवरों से इंसानों में फैल सकता है। इससे गिनी में दहशत का माहौल बन गया है।

    मारबर्ग

    आखिर क्या है 'मारबर्ग' वायरस संक्रमण?

    न्यूज 18 के अनुसार, मारबर्ग वायरस आमतौर पर रौसेटस चमगादड़ की गुफाओं या खानों के संपर्क से जुड़ा है।

    इस वायरस के एक बार इंसानों में पहुंचने के बाद यह संक्रमित लोगों के शरीर से निकलने वाले तरल पदार्थ या दूषित सतहों और सामग्रियों के संपर्क में आने से दूसरे लोगों में फैलता है।

    1967 से लेकर अब तक 12 बार मारबर्ग का प्रकोप फैल चुका है। इसका ज्यादातर प्रभाव दक्षिणी और पूर्वी अफ्रीका में ही रहा है।

    लक्षण

    क्या है 'मारबर्ग' वायरस संक्रमण के लक्षण?

    WHO के अनुसार, 'मारबर्ग' वायरस संक्रमण की चपेट में आने वाले लोगों में सिरदर्द, खून की उल्टी, मांसपेशियों में दर्द और विभिन्न छिद्रों से रक्तस्राव होने जैसे लक्षण सामने आते हैं।

    गंभीर मामलों में रोगियों में सात दिनों में गंभीर रक्तस्रावी लक्षण विकसित हो जाते हैं और समय पर उपचार नहीं मिलने से हालात बदतर हो जाते हैं।

    इस वायरस के संक्रमण में मृत्यु का खतरा 24 से 88 प्रतिशत तक रहता है। ऐसे में यह बेहद गंभीर है।

    पुष्टि

    गुएकेडौ प्रांत में एक मरीज के हुई संक्रमण की पुष्टि

    WHO के अनुसार, गत 2 अगस्त को गिनी के दक्षिणी गुएकेडौ प्रांत में एक मरीज की बीमारी के बाद मौत हो गई थी। ऐसे में चिकित्सा अधिकारियों ने उसका सैंपल लेकर जांच के लिए भेजा था।

    पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इस व्यक्ति में इबोला वायरस तो नहीं मिला, लेकिन उसके मारबर्ग वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि हो गई।

    विशेषज्ञों ने कहा यह इबोला परिवार से संबंधित है और कोरोना वायरस की तरह तेजी से फैलता है। यह बहुत खतरनाक है।

    बयान

    वायरस को अपने ट्रैक पर ही रोकने की जरूरत- मोएती

    अफ्रीका के WHO के क्षेत्रीय निदेशक डॉ मात्शिदिसो मोएती ने कहा, "मारबर्ग वायरस को दूर-दूर तक फैलने से रोकने के लिए हमें इसे अपने ट्रैक में रोकने की जरूरत है। यदि इसका प्रसार होता है परिणाम बेहद गंभीर हो सकते हैं।"

    गिनी में मारबर्ग का पता ऐसे समय में चला है, जब दो महीने पहले ही WHO ने यहां इबोला वायरस के खत्म होने का ऐलान किया है। पिछले साल यहां इबोला के कारण 12 लोगों की मौत हुई थी।

    उपचार

    क्या है 'मारबर्ग' वायरस संक्रमण का उपचार?

    बता दें कि 'मारबर्ग' वायरस संक्रमण के उपचार के लिए अभी कोई भी प्रभावी एंटीवायरल दवा या वैक्सीन विकसित नहीं हुई है। इतना ही नहीं इबोला के उपचार में काम आने वाली दवाइयां भी मारबर्ग में प्रभावी नहीं हैं।

    रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (CDC) का कहना है कि उपचार में अस्पताल चिकित्सा का उपयोग जरूरी है।

    इसमें रोगी के तरल पदार्थ और इलेक्ट्रोलाइट्स का संतुलन, ऑक्सीजन की स्थिति और रक्तचाप को बनाए रखने की जरूरत है।

    इतिहास

    ऐसा रहा है 'मारबर्ग' वायरस संक्रमण का इतिहास

    बता दें कि मारबर्ग वायरस संक्रमण का सबसे पहले जर्मनी और यूगोस्लाविया में संक्रमित हरे बंदरों के कारण फैला था। उस दौरान मृत्यु दर 23 प्रतिशत थी।

    इसके बाद 2005 में अंगोला में इसका संक्रमण फैला और कुल 252 संक्रमितों में से 90 प्रतिशत की मौत हो गई थी।

    इसी तरह 2009 में युगांडा में दो पर्यटकों में भी इसके मामले सामने आए थे। इनमें एक डच महिला और दूसरी कोलोरोडो महिला था। बाद में दोनों की मौत हो गई।

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