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उत्तर प्रदेश कैडर के IAS अधिकारी सुहास जिन्होंने जीता पैरालंपिक के रजत पदक, जानें पूरा सफर
एल वाई सुहास के जीवन का पूरा सफर

उत्तर प्रदेश कैडर के IAS अधिकारी सुहास जिन्होंने जीता पैरालंपिक के रजत पदक, जानें पूरा सफर

लेखन Neeraj Pandey
Sep 05, 2021
07:15 pm

क्या है खबर?

टोक्यो पैरालंपिक का समापन हो चुका है और इसमें भारतीय दल ने 19 पदक जीतते हुए इसे भारत के इतिहास का सबसे सफल पैरालंपिक बना दिया। भारत ने पैरा बैडमिंटन में चार पदक जीते जिसमें दो स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य शामिल था। रजत पदक जीतने वाले एल वाई सुहास केवल पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी ही नहीं बल्कि नोएडा के जिलाधिकारी भी हैं। आइए जानते हैं सुहास के जीवन से जुुड़ी तमाम बातें।

दिव्यांगता

बचपन से ही कमजोर है सुहास का दायां पैर

02 जुलाई, 1983 को कर्नाटक के सुमोगा में पैदा होने वाले सुहास का दांया पैर बचपन से ही कमजोर था। सुहास के पिता इंजीनियर थे और वह हमेशा अपने बेटे के समर्थन के लिए खड़े रहते थे। सुहास ने बचपन में प्रोफेशनल एथलीट बनने के बारे में बिल्कुल नहीं सोचा था, लेकिन उन्हें खेलों में काफी रुचि थी। हालांकि, उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करके इंजीनियर की नौकरी शुरु की थी।

पढ़ाई

पढ़ाई से जुड़ा है एक रोचक किस्सा

सुहास पढ़ाई में काफी तेज थे और उन्होंने इंजीनियरिंग तथा मेडिकल दोनों के एंट्रेंस पास कर लिए थे। सुहास को बैंगलोर मेडिकल कॉलेज की पहली काउंसलिंग में सीट भी मिल गई थी और उनका पूरा परिवार चाहता था कि वह डॉक्टर बनें। हालांकि, सुहास इंजीनियर ही बनना चाहते थे और इसी कारण उन्होंने किसी तरह परिवार को मनाते हुए इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और फिर बैंगलोर में नौकरी करने लगे।

IAS

पिता की मौत के बाद लिया IAS बनने का निर्णय

सुहास बैंगलोर में नौकरी कर रहे थे और उनके पास पैसों की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उन्हें कुछ कमी महसूस हो रही थी। 2005 में पिता की मृत्यु के बाद सुहास ने IAS बनने का निर्णय लिया। उन्होंने अचानक नौकरी छोड़ दी और अपने घरवालों को बताया कि उनका IAS का प्री और मेंस क्लियर हो गया है। इसके बाद इंटरव्यू भी क्लियर करके वह 2007 यूपी कैडर के IAS अधिकारी बने।

पैरा एथलीट

इस तरह शुरु हुआ पैरा एथलीट बनने का सफर

IAS बनने के बाद सुहास शौकिया बैडमिंटन खेलते थे, लेकिन 2016 में उन्होंने पैरा एशियन चैंपियनशिप में हिस्सा लेने का निर्णय लिया। सुहास तीन पहुंच गए, लेकिन वहां उनके लिए प्रतियोगिता काफी कड़ी रही। हालांकि, सुहास ने निडरता से खेलते हुए प्रतियोगिता का स्वर्ण पदक अपने नाम किया। इस पदक के बाद आजमगढ़ में सुहास का जोरदार स्वागत हुआ था। यहीं से सुहास पैरा एथलीट के रूप में मशहूर हो गए।

आदत

प्रैक्टिस के आगे भूल जाते हैं बाकी चीजें

एशियन चैंपियनशिप का स्वर्ण जीतने के बाद सुहास को एशियन पैरा गेम्स में पदक जीतने का जुनून सवार हो चुका था। इसकी तैयारी के दौरान सुहास छुट्टी मिलने पर दिन भर प्रैक्टिस करते रह जाते थे और बाकी चीजें भूल जाते थे। एक मशहूर किस्सा है कि सुहास ने दिवाली का पूरा दिन प्रैक्टिस में बिता दिया था और सुबह निकलने के बाद सीधे शाम को घर लौटे थे।