नवरोज: पारसी लोग साल में 2 बार क्यों मनाते हैं नववर्ष? जानिए इससे जुड़ी महत्वपूर्ण बातें
पारसी नववर्ष, जिसे 'नवरोज' या 'नौरोज' के नाम से भी जाना जाता है। यह पारसी समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला एक पारंपरिक त्योहार है। यह ईरानी कैलेंडर वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है और आमतौर पर फार्वर्डिन महीने के पहले दिन पड़ता है। इस साल पारसी नववर्ष आज यानी 16 अगस्त को मनाया जा रहा है। हालांकि, अमावस्या के दिखने के आधार पर हर साल इसकी तारीख अलग-अलग हो सकती है। आइए इस दिवस से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें जानते हैं।
साल में 2 बार क्यों मनाया जाता है पारसी नववर्ष?
पारसी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कारणों से 2 नए साल मनाते हैं। 2023 में एक पारसी नववर्ष 16 अगस्त को मनाया जा रहा है, जबकि इनका शहंशाही नामक दूसरा नववर्ष नवरोज के 6 महीने बाद मनाया जाता है। पारसी धर्म पर आधारित यह त्योहार भारत, ईरान, इराक, अफगानिस्तान और मध्य एशिया के कुछ हिस्सों आदि में मनाया जाता है। यह सदियों से पारसी परंपरा का एक अभिन्न अंग रहा है और विभिन्न रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों के साथ मनाया जाता है।
3,000 साल पुराना है यह त्योहार
ऐसा माना जाता है कि नवरोज 3,000 साल पुराना त्योहार है और यह दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक पारसी धर्म से उभरा है। यह नवीकरण, शुद्धिकरण और प्रकृति के पुनर्जन्म के उत्सव का समय है। इसके अतिरिक्त पारसी नववर्ष का संबंध पौराणिक कथाओं में फारसी राजा जमशेद के जीवन से भी है। पारसियों का मानना है कि इस अवसर पर मृतकों की आत्माएं अपने प्रियजनों को देखने के लिए धरती पर लौटती हैं।
4Fs से जुड़ा है पारसी नववर्ष
पारसी नववर्ष 4Fs' यानी फायर (आग), फ्रेग्रेंस (सुगंध), फूड (भोजन) और फ्रेंडशिप (दोस्ती) से जुड़ा है। इस दिन लोग अपने पिछले कर्मों के लिए क्षमा मांगते हैं, मानसिक शुद्धि की ओर ध्यान देते हैं, स्वादिष्ट पारंपरिक खाद्य पदार्थों का आनंद लेते हैं और एक सकारात्मक नोट पर एक नए साल की शुरूआत करते हैं। कुछ लोग इस मौके पर दान करना भी अच्छा मानते हैं और अपने रिश्तों की शुरुआत बहुत शांति और सद्भाव के साथ करते हैं।
कैसे मनाया जाता है यह त्योहार?
नवरोज मनाने वाले लोग अपने घरों की सफाई करके पारंपरिक कपड़े पहनते हैं। इसके बाद दान और उपहारों का आदान-प्रदान करके त्योहार मनाते हैं। इस अवसर पर घर में रंगोली बनाना शुभ माना जाता है और कई लोग अपने स्थान को फूलों से भी सजाते हैं। इसके अतिरिक्त वे मंदिरों में जाकर जश्न नामक प्रार्थना करते हैं और पवित्र अग्नि में दूध, फल, फूल और चंदन चढ़ाते हैं। इस मौके पर लोग पारंपरिक व्यंजन भी बनाते हैं।