दिवाली की वो सुहानी यादें, जो आपको बचपन के दिनों में ले जाएंगी
इस साल देशभर में 31 अक्टूबर को दिवाली मनाई जाएगी, जिसे रोशनी का त्योहार कहा जाता है। बच्चों के लिए तो यह साल का सबसे यादगार समय होता है, जब वे जी-भरकर मस्ती करते हैं। दिवाली का पर्व तो आज भी वही है, लेकिन इसे मनाने का तरीका काफी हद तक बदल गया है। जैसे-जैसे हम बड़े होते गए, इस त्योहार का उत्साह भी कम होता चला गया। आइए दिवाली से जुड़ी बचपन की यादों को मिलकर ताजा करते हैं।
दिवाली की छुट्टी और नए कपड़ों की खुशी
बचपन के वो दिन भूले नहीं भुलाये जाते, जब स्कूल में दिवाली की छुट्टी बोली जाती थी। बच्चे उस दिन दौड़कर घर पहुंचते थे, सारा दिन खेलते-कूदते थे और उन्हें पढ़ाई की चिंता से भी छुट्टी मिल जाती थी। बच्चों की दिवाली तो असल मायने में उसी दिन शुरू होती थी। दिवाली पर नए कपड़े मिलने की खुशी तो सबसे अधिक होती थी। बच्चे मम्मी-पापा के साथ कई दुकानें छानते थे और अपनी नई ड्रेस पहनकर सभी को दिखाते थे।
पापा के साथ पटाखे खरीदने जाना और उन्हें धूप में सुखाना
बड़े होने के बाद पटाखे जलाने का मजा कम हो गया, लेकिन बचपन में दिवाली का मतलब ही पटाखे फोड़ना होता था। त्योहार आने से पहले ही पापा के स्कूटर पर बैठकर बच्चे पटाखे ले आया करते थे। ज्यादातर बच्चे तो दिवाली का इंतजार भी नहीं कर पाते थे और पहले ही पटाखे जलाना शुरू कर देते थे। इसके अलावा, दिवाली से पहले नए और पुराने पटाखों को धूप में सुखाया भी जाता था, जिससे वे अच्छी तरह जलते थे।
मां का हाथ बटाना और पूरे घर को दियों से रोशन करना
एक ओर बच्चे अपनी मौज-मस्ती में मगन रहते थे, तो दूसरी ओर मां घर की सफाई करने में लगी रहती थीं। मां को अकेले काम करता देख बच्चे भी उनका हाथ बटाने पहुंच जाते थे। मां बच्चों को सामान रखने और चीजों को झाड़ने का काम दिया करती थीं। सफाई के बाद घर की सजावट की बारी आती थी, जिसके लिए रंगोली बनाई जाती थी, तोरन और झालर लगाई जाती थी और पूरे घर में दिये जलाए जाते थे।
पटाखे फोड़ने के लिए पूजा खत्म होने का इंतजार करना
दिवाली के दिन घर में मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की मूर्तियां लाई जाती हैं और उनकी पूजा की जाती है। यह परंपरा सालों से चली आ रही है, जिसके जरिए घर में सुख-समृद्धि आती है। हालांकि, बचपन के दिनों में पूजा के दौरान भी बच्चों के मन में पटाखों का ही ख्याल मंडराता रहता था। तब बच्चे पूजा खत्म होने का बेसब्री से इंतजार करते थे और आरती होते ही दोस्तों के साथ पटाखे फोड़ना शुरू कर देते थे।
जी भरकर मिठाइयां खाना और चकरगिनी के आस-पास नाचना
दिवाली पर तरह-तरह के पकवान और मिठाइयां बनाई जाती हैं। आज के समय में तो हम सभी सेहत का ख्याल करने लगे हैं, लेकिन बचपन में हमारी दिलचस्पी केवल मिठाइयां खाने में होती थी। उस दिन बच्चे अपने घर पर तो मिठाई खाते ही थे और दोस्तों व रिश्तेदारों के घर पर भी मिठाइयों का आनंद लेते थे। उस समय दिवाली का असली मजा पटाखे फोड़ने में आता था। बच्चे अपनी मनपसंद चकरगिनी जलाकर उसके आस-पास नाचते रहते थे।
रात को काजल लगाना और किताबों की पूजा करना
दिवाली पर कई तरह की परंपराएं प्रचिलित हैं। हालांकि, पुराने समय में बड़े-बुजुर्ग दिवाली की पूजा के बाद रात को सभी की आखों में काजल लगाया करते थे। कहा जाता था कि जो व्यक्ति काजल नहीं लगाता, वो अगले जनम में चमगादड़ बनता है। इसके अलावा, दिवाली की पूजा में किताबों और कलम की भी पूजा की जाती थी। बच्चे यह करके बेहद खुश होते थे, क्योंकि इसके बाद गोवर्धन पूजा के दिन पढ़ाई नहीं की जाती थी।