क्या है बैंकों के निजीकरण का मुद्दा और क्यों हो रहा इसका विरोध?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट सत्र के दौरान घोषणा की थी कि सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों का निजीकरण किया जाएगा। ऐसा मौजूदा वित्तीय वर्ष में विनिवेश के जरिए 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए किया जाना है। इंडिया टुडे के अनुसार, सरकार की शीतकालीन सत्र में बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक लाने की योजना थी। विधेयक के कानून बनने के बाद ही सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों के निजीकरण की प्रक्रिया शुरू होगी।
क्या है बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक?
सरकार 'बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक' के जरिए वर्ष 1970 और 1980 के बैंकिंग कंपनियां (अधिग्रहण और हस्तांतरण) कानून और बैंकिंग विनियम अधिनियम, 1949 में संशोधन करना चाहती है। साल 1969 और 1980 में इन्हीं कानूनों के जरिए ही बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था। ऐसे में सरकारी बैंकों के निजीकरण के लिए इन कानूनों के प्रासंगिक प्रावधानों में संशोधन जरूरी है। इन कानूनों में बदलाव करने के लिए ही सरकार संसद में बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक लाना चाहती है।
कौन कर रहा है बैंकों के निजीकरण का विरोध?
16 और 17 दिसंबर को सरकारी बैंकों के नौ लाख कर्मचारी इंडियन ओवरसीज बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के प्रस्तावित निजीकरण के विरोध में हड़ताल पर उतरे थे। इस हड़ताल को यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन (UFBU) द्वारा बुलाया गया था। इस दौरान बैंकों में जमा निकासी, चेक निकासी और कर्ज मंजूरी जैसी कई सेवाएं ठप्प रही थीं। दो दिनों की हड़ताल के दौरान करीब 38 लाख चेक अटक गए और 37,000 करोड़ से ज्यादा का कामकाज प्रभावित हुआ।
सरकार के अपने भी कर रहे निजीकरण का विरोध
भाजपा सांसद वरुण गांधी ने भी बरेली में बैंकों के निजीकरण का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि अगर देश में बैंकों का निजीकरण किया गया तो आठ से 10 लाख लोगों की नौकरी चली जाएगी। उन्होंने आगे कहा, "40-50 साल के लोगों की नौकरी चली जाएगी। फिर उन्हें काम पर कौन रखेगा। उनके बच्चों को खाना कौन खिलाएगा।" वरुण गांधी के अलावा अन्य राजनीतिक पार्टियों ने भी निजीकरण के कदम का विरोध किया है।
क्या सरकार इस सत्र में लेकर आएगी बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक?
बैंकों के निजीकरण के मुद्दे पर बैंककर्मी बेहद मुखर होकर विरोध कर रहे हैं। अगले साल उत्तर प्रदेश और पंजाब सहित कई राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होने हैं। एक साल तक चले प्रदर्शनों के बाद सरकार ने कुछ दिन पहले ही कृषि कानूनों को भी समाप्त किया है। ऐसे में सरकार अब और जोखिम नहीं लेना चाहेगी। टेलीग्राफ की खबर के अनुसार मुमकिन है कि सरकार इस सत्र में बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक को संसद में पेश ना करे।