राजद्रोह कानून: सुप्रीम कोर्ट ने मामले को 5 जजों की संवैधानिक पीठ के पास भेजा
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राजद्रोह कानून यानि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A को चुनौती देने वाली याचिकाओं को 5 जजों की संवैधानिक पीठ के पास भेज दिया।
इसके साथ ही कोर्ट ने सुनवाई स्थगित करने के केंद्र सरकार के अनुरोध को खारिज कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने केंद्र को मामले में कागजात सौंपने का निर्देश दिया ताकि 5 सदस्यीय पीठ का गठन किया जा सके।
कोर्ट
कोर्ट में आज क्या-क्या हुआ?
आज सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह भारतीय दंड संहिता (IPC) की जगह भारतीय न्याय संहिता लाई है, जो संसद की स्थायी समिति के पास विचाराधीन है, इसलिए राजद्रोह कानून पर सुनवाई को स्थगित कर देना चाहिए।
इस पर कोर्ट ने कहा कि नए कानून का IPC की धारा 124A की संवैधानिक वैधता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि नया दंड कानून अभी लागू नहीं हुआ है और आगे लागू होगा।
कोर्ट
मामले को संवैधानिक पीठ के पास क्यों भेजा गया?
CJI की अध्यक्षता वाली 3 जजों की पीठ ने कहा कि मामले में बड़ी पीठ के संदर्भ की आवश्यकता है क्योंकि 1962 के केदारनाथ सिंह बनाम बिहार सरकार मामले में 5 जजों की पीठ ने राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को कायम रखा था।
उसने कहा कि छोटी पीठ होने के नाते केदारनाथ मामले पर संदेह करना या उसे खारिज करना उचित नहीं होगा और जब तक केदारनाथ सिंह वाला फैसला लागू है, तब तक राजद्रोह का कानून वैध है।
संवैधानिक पीठ
संवैधानिक पीठ किन मुद्दों पर विचार करेगी?
CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि 5 जजों की संवैधानिक पीठ कह सकती है कि मौलिक अधिकारों की समझ का विस्तार करने वाले बाद के फैसलों को देखते हुए केदारनाथ सिंह फैसला अब बाध्यकारी मिसाल नहीं है और फिर वह मामले को वापस 3 जजों की पीठ के पास भेज सकती है।
उन्होंने कहा कि 5 जजों की पीठ के पास केदारनाथ फैसले पर पुनर्विचार को 7 जजों की पीठ के पास भेजने का विकल्प भी होगा।
क्या है राजद्रोह कानून
क्या है राजद्रोह का कानून?
IPC की धारा 124A को राजद्रोह का कानून कहा जाता है।
इसके तहत अगर कोई व्यक्ति सरकार के विरोध में कुछ बोलता-लिखता है, ऐसी सामग्री का समर्थन करता है या राष्ट्रीय चिन्हों और संविधान को नीचा दिखाने की गतिविधि में शामिल होता है तो उसे उम्रकैद की सजा हो सकती है।
देश के सामने संकट पैदा करने वाली गतिविधियों का समर्थन करने और प्रचार-प्रसार करने पर भी राजद्रोह का मुकदमा हो सकता है।
केंद्र
प्रस्वावित नए आपराधिक कानूनों में राजद्रोह का प्रावधान नहीं, लेकिन उसी जैसी धारा मौजूद
मानसून सत्र में केंद्र ने आपराधिक कानूनों में बदलाव के लिए विधेयक पेश किए थे। इनमें राजद्रोह के कानून को खत्म कर दिया गया है।
IPC की धारा 124A में राजद्रोह का जिक्र था, लेकिन अब नए विधेयक में राजद्रोह का प्रावधान नहीं होगा। इसकी जगह नए विधेयक की धारा 150 में राजद्रोह जैसा ही एक प्रावधान है, लेकिन इसे नया नाम दिया गया है।
बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने मई, 2022 से राजद्रोह कानून पर रोक लगाई हुई है।