RTI से खुलासा- RBI ने किया था नोटबंदी का विरोध, बाद में जनहित में माना
क्या है खबर?
एक RTI के जबाव में खुलासा हुआ है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने पहले नोटबंदी के प्रस्ताव का विरोध किया था, लेकिन फिर जनहित में नोटबंदी करने को सहमत हो गया।
बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को रात 8 बजे टेलीविजन पर देश के नाम अपने संबोधन में 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने का ऐलान किया था।
ऐलान के बाद लोगों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ा था।
RBI बोर्ड
RBI बोर्ड की मंजूरी से पहले ही प्रधानमंत्री ने कर दी नोटबंदी की घोषणा
खुलासे के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी के नोटबंदी की घोषणा से मात्र ढाई घंटे पहले RBI की बोर्ड मीटिंग हुई थी और बोर्ड की मंजूरी से पहले ही नोटबंदी की घोषणा कर दी गई थी।
RBI ने हफ्तों बाद 16 दिसंबर को सरकार को मंजूरी दी थी और इसमें उसने नोटबंदी के समर्थन में सरकार द्वारा दिए ज्यादातर तर्कों को खारिज कर दिया था।
सरकार ने नोटबंदी के समर्थन में कालाधन, नकली नोट, मंहगाई जैसे तर्क दिए थे।
GDP
RBI को थी GDP पर नकारात्मक प्रभाव की चिंता
RTI में सामने आई बोर्ड की बैठक की जानकारी के अनुसार, RBI अधिकारियों ने इसे एक सराहनीय कदम तो माना था, लेकिन साथ ही इसके GDP पर नकारात्मक प्रभाव के बारे में चिंता जताई थी।
बोर्ड के अनुसार, मुद्राचलन में जो वृद्धि दिखाई गई थी, वह नाममात्र की थी।
साथ ही इससे मंहगाई पर भी कोई खास असर पड़ने की उम्मीद बोर्ड को नहीं थी। इसलिए सरकार के इस तर्क को भी खारिज कर दिया गया था।
कालाधन
कालेधन पर सरकार से अलग थी RBI की राय
बोर्ड की बैठक में अधिकारियों ने यहां नकली नोटों को एक समस्या माना था, लेकिन इनकी बेहद कम प्रतिशत होने के कारण इसे बेहद महत्वपूर्ण तर्क नहीं माना गया था।
साथ ही अधिकारी इस तर्क के खिलाफ थे कि ज्यादातर कालाधन कैश में होता है।
उनके अनुसार, ज्यादातर कालाधान सोना और रीयल इस्टेट जैसे क्षेत्रों में पाया जाता है और नोटबंदी का इन क्षेत्रों पर कोई खास प्रभाव पड़ने की उम्मीद नहीं थी।
नोटबंदी
बोर्ड को सरकार ने दिया था आश्वासन
केंद्र सरकार ने बोर्ड को आश्वासन दिया था कि मुद्दे पर सरकार और RBI के बीच 6 महीने से ज्यादा समय से विचार विमर्श चल रहा था।
इससे पहले RBI की एक रिपोर्ट में यह खुलासा हो चुका है कि नोटबंदी के दौरान 99.30 प्रतिशत 500 और 1000 रुपये के नोट वापस आ गए थे।
इसका मतलब यह हुआ कि सरकार कालेधन के बर्बाद होने का दावा कर रही थी, वह बैंकों के जरिए सफेद होने में कामयाब रहा।