जस्टिस पीसी घोष देश के पहले लोकपाल नियुक्त, ये होंगे बाकी सदस्य
क्या है खबर?
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने देश के पहले लोकपाल को नियुक्ति को मंजूरी दे दी है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस पीसी घोष को इसका अध्यक्ष बनाया गया है। उनके अलावा इसमें कुल आठ सदस्य हैं।
इनमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस दिलीप बाबासाहेब भोसले, झारखंड हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस प्रदीप कुमार मोहंती, मणिपुर हाई कोर्ट की पूर्व चीफ जस्टिस अभिलाषा कुमारी और छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस अजय कुमार त्रिपाठी शामिल हैं।
लोकपाल
ये हैं गैर-न्यायिक अधिकारी
राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए गए न्यायिक अधिकारियों के अलावा लोकपाल में चार गैर-न्यायिक अधिकारी भी शामिल किए गए हैं।
इनमें महाराष्ट्र के मुख्य सचिव दिनेश कुमार जैन, रिटायर्ड IPS अधिकारी और सशस्त्र सीमा बल (SSB) की पूर्व महानिदेशक अर्चना रामासुंदरम, रिटायर्ड IRS अधिकारी महेंद्र सिंह और रिटायर्ड IAS अधिकारी आईपी गौतम का नाम शामिल हैं।
ये नियुक्तियां इनके पदभार संभालने की तारीख से प्रभावी मानी जाएंगी।
लोकपाल
जस्टिस पीसी घोष होंगे लोकपाल के प्रमुख
जस्टिस घोष जुलाई 1997 में कलकत्ता हाई कोर्ट के जज बने और जून 2012 में उनका तबादला आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में हो गया।
इसी साल दिसंबर में वह इसी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बन गए।
मार्च 2013 में वह सुप्रीम कोर्ट के जज बने और यहीं से मई 2017 में वह रिटायर हुए।
अभी वह राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य हैं।
इसके अलावा वह पश्चिम बंगाल राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी चेयरमैन हैं।
जयललिता
जयललिता को दोषी ठहराने वाली बेंच का हिस्सा थे घोष
सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता और उसकी सहयोगी वीके शशिकला को लेकर सुनाया गया घोष का फैसला उनके सबसे बड़े फैसलों में से एक है।
वह फरवरी 2017 में जयललिता और शशिकला को आय से अधिक संपत्ति मामले में दोषी ठहराने वाली दो सदस्यीय बेंच का हिस्सा थे।
इसके अलावा वह घरेलू हिंसा के मामले में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाने वाले बेंच का भी हिस्सा थे।
जानकारी
चयन समिति ने की थी घोष के नाम की सिफारिश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, प्रख्यात कानूनविद मुकुल रोहतगी की चयन समिति ने लोकपाल के लिए उनके नाम की सिफारिश की थी। नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बैठक का बहिष्कार किया था।
अन्ना आंदोलन
अन्ना आंदोलन से लोगों की जुबान पर चढ़ा लोकपाल
अन्ना हजारे ने लोकपाल को लेकर लंबी लड़ाई लड़ी थी। इसे लेकर उन्होंने दिल्ली में एक बड़ा आंदोलन किया था।
उसके बाद लोकसभा ने 27 दिसंबर, 2011 को विधेयक पास कर दिया। इसके दो साल यह विधेयक राज्यसभा से पारित हुआ।
लोकपाल और लोकायुक्त कानून के तहत सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति का प्रावधान है।
भारत में सबसे पहले 1967 में इसकी मांग उठी थी।