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प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना के लिए 10,831 करोड़ रुपये जारी, लेकिन खर्च करने में छूट रहे पसीने
प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना में नहीं मिल रहे उम्मीदवार (अनस्प्लैश)

प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना के लिए 10,831 करोड़ रुपये जारी, लेकिन खर्च करने में छूट रहे पसीने

लेखन गजेंद्र
Mar 20, 2025
04:31 pm

क्या है खबर?

युवाओं को नौकरी देने और उनको कुशल बनाने के लिए प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना (PMIS) पर पैसा तो खूब दिया जा रहा है, लेकिन इसे खर्च करने में पसीने छूट रहे हैं। वित्त से जुड़ी संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, बजट आवंटन में बढ़ोतरी के बाद भी योजना धीमी निधि उपयोग और कम भागीदारी से जूझ रही है। योजना का बजट वित्त वर्ष 2024-25 में 2,000 करोड़ था, जो 2025-26 में 10,831 करोड़ रुपये कर दिया गया है।

खर्च

कितना उपयोग हुआ बजट?

योजना के तहत शुरूआती चरण में 2,000 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए थे और फरवरी 2025 के मध्य तक इसमें से केवल 48.41 करोड़ रुपये का उपयोग किया गया है। बजट 2024-25 में PMIS का लक्ष्य 5 सालों में एक करोड़ इंटर्नशिप प्रदान करना है। हालांकि, पहले चरण में कंपनियों द्वारा 1.27 लाख से अधिक इंटर्नशिप की पेशकश करने के बावजूद, केवल 28,000 उम्मीदवारों ने प्रस्ताव स्वीकार किए हैं और सिर्फ 8,700 इंटर्न शामिल हुए हैं।

कारण

उम्मीदवारों को आकर्षित न होने के क्या है कारण?

रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी 2025 में दूसरा चरण शुरू हुआ, जिसमें 1.15 लाख नई और संशोधित इंटर्नशिप लिस्टिंग जोड़ी गई, लेकिन उम्मीदवारों के भागीदारी के आंकड़े अभी स्पष्ट नहीं है। IIM-बेंगलुरु, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और सिम्बायोसिस इंस्टीट्यूट ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट जैसी मूल्यांकन एजेंसियों का कहना है कि कई उम्मीदवार इंटर्नशिप स्थानों के घरों से दूर होने, उपलब्ध भूमिकाओं और कार्यक्रम की 12 महीने की अवधि से निराश दिख रहे हैं। योजना 21-24 वर्ष के युवाओं को लक्षित करती है।

निराशा

कंपनियां भी नहीं आ रहीं

योजना में 21-24 आयु वर्ष वाले उम्मीदवार पूर्णकालिक शिक्षा या रोजगार में नहीं है, इसके बावजूद योजना में भागीदारों की कमी है। विशेषज्ञ कहते हैं कि कार्यक्रम से IIT, IIM, राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों और अन्य प्रमुख संस्थानों के स्नातकों को बाहर रखा गया है और कई पेशेवर डिग्री रखने वालों को भी इसमें शामिल नहीं किया गया है। इसमें कंपनियां भी कम आ रही हैं। सरकार का शीर्ष 500 कंपनियों का लक्ष्य था, जबकि केवल 318 कंपनियां शामिल हुईं हैं।