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#BhagatSingh: स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के बारे में ये बातें कम ही लोग जानते होंगे

#BhagatSingh: स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के बारे में ये बातें कम ही लोग जानते होंगे

Sep 28, 2019
12:26 pm

क्या है खबर?

स्वतंत्रता के प्रति भारत का इतिहास बलिदान की कई कहानियों से अंकित है। एक ऐसी ही कहानी है समाजवादी क्रांतिकारी भगत सिंह की। भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को हुआ था। अंग्रेजी सरकार के खिलाफ षडयंत्र रचने के कारण केवल 23 साल की उम्र में ही अंग्रेज़ी हुकूमत ने 23 मार्च, 1931 को उन्हें फाँसी दे दी थी। आज उनकी जयंती के मौके पर हम कुछ ऐसी बातें बताने जा रहे हैं, जो बहुत कम लोग जानते हैं।

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स्कूल छोड़कर जलियाँवाला बाग नरसंहार की जगह जाते थे

भगत सिंह का जन्म एक राजनीतिक रूप से सक्रिय परिवार में हुआ था, जहाँ उनके दादा ने लाहौर के खालसा हाई स्कूल और ब्रिटिश सरकार के प्रति अपनी वफ़ादारी को मंज़ूरी नहीं दी थी। इस वजह से भगत सिंह ने वहाँ दाख़िला नहीं लिया और इसकी जगह वो आर्य समाज संस्था में शामिल हुए। जलियाँवाला बाग में हुए नरसंहार से वो इतना ज़्यादा परेशान हो गए थे कि वो वहाँ जाने के लिए अपने स्कूल भी नहीं जाते थे।

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भगत सिंह ने ही दिया था 'इंक़लाब ज़िंदाबाद' का नारा

कम उम्र में ही उन्होंने अपना जीवन देश को समर्पित करने का फ़ैसला किया था। जब उनके माता-पिता ने उनके ऊपर शादी का दबाव डाला, तो वो घर छोड़कर कानपुर भाग गए और वहाँ सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए। भगत सिंह ने ही 'इंक़लाब ज़िंदाबाद' का नारा दिया था, जिसका मतलब है 'लंबे समय तक क्रांति जीवित रहे'। बाद में यही नारा भारत की स्वतंत्रता का नारा बन गया।

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फाँसी पर लटकने की बजाय गोली से मरना चाहते थे भगत सिंह

भगत सिंह मार्क्सवादी विचारधाराओं से काफ़ी प्रभावित थे, जिसने उनके क्रांतिकारी विचारों को हवा दी। वो यह बात जान चुके थे कि भगत का विभाजन साम्प्रदायिक आधार पर हो सकता है, इसलिए वो एकता के महत्व पर ज़ोर देते थे। उन्होंने अंग्रेज़ी हुकूमत से फाँसी पर लटकाने की बजाय गोली मारने के लिए कहा था, लेकिन उनकी बात मानी नहीं गई। उनके अंतिम पत्रों में से एक में उन्होंने ख़ुद को 'तोप के मुँह में फेंकने' की कामना की थी।

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गुप्त रूप से किया गया था अंतिम संस्कार

भगत सिंह और उनके सहयोगियों ने किसी को घायल करने के इरादे से नहीं, बल्कि केंद्रीय विधानसभा में एक छोटा धमाका किया था, ताकि उन्हें गिरफ़्तार किया जा सके। भगत सिंह को एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी को गोली मारने के लिए दोषी ठहराया गया था। इस वजह से कोर्ट ने उन्हें फाँसी की सज़ा सुनाई। 23 मार्च, 1931 को उन्हें फाँसी दी गई और गुप्त रूप से सतलुज नदी के तट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया था।