
बिहार SIR पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश- चुनाव आयोग आधार कार्ड को भी माने दस्तावेज
क्या है खबर?
बिहार में चुनाव आयोग द्वारा की जा रही मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण (SIR) पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वो फॉर्म 6 में दिए गए 11 दस्तावेजों के अलावा आधार कार्ड को भी मान्यता दे। हालांकि, कोर्ट ने SIR की समय सीमा बढ़ाने से फिलहाल इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि अगर भारी प्रतिक्रिया आती है तो इस पर विचार किया जाएगा।
आवेदन
ऑनलाइन आवेदन कर सकेंगे मतदाता
सुप्रीम कोर्ट ने मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए ऑनलाइन आवेदन करने की अनुमति दी है। कोर्ट ने कहा, "सभी पार्टियों के BLA उन 65 लाख लोगों की सूची चेक करें, जिनके नाम ड्राफ्ट मतदाता सूची में शामिल नहीं किए गए हैं। हम 14 अगस्त के आदेश को दोहराते हैं और कहते हैं कि वे ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं और किसी भी प्रकार के शारीरिक तौर पर आवेदन की जरूरत नहीं है।"
पार्टियां
कोर्ट ने राजनीतिक पार्टियों पर जताई नाराजगी, पूछा- आप क्या कर रहे?
सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक पार्टियों की निष्क्रियता पर हैरानी जताई। कोर्ट ने कहा, "हम आश्चर्यचकित हैं कि 1.6 लाख BLA राजनीतिक पार्टियों के हैं और उनकी तरफ से आपत्तियां नहीं आ रही। वो आपत्तियां और दावे करें। हर मतदाता का अधिकार है कि वो मतदाता बनने का आवेदन करे और आपत्ति भी दर्ज कराए। पार्टियों को इनकी सहायता करनी चाहिए। पार्टियां BLA को निर्देश दें कि वो मतदाताओं की सहायता करें। आधार समेत अन्य दस्तावेज मुहैया कराएं।"
सवाल
कोर्ट ने आयोग से पूछा- 7 लाख मतदाता डुप्लीकेट कैसे?
कोर्ट को चुनाव आयोग ने जानकारी दी कि 22 लाख मतदाता मृत हैं और 7 लाख डुप्लीकेट हैं। इस पर कोर्ट ने कहा, "हम मानकर चलते हैं कि 22 लाख वोटर मृत हैं, लेकिन डुप्लीकेट क्यों? यह आयोग का कर्तव्य है कि वह डुप्लीकेट EPIC ना होने दे और जो लोग बिहार से बाहर भी EPIC रखते हैं उनका हटाए। कोर्ट ने बिहार CEO को आदेश दिया कि वो राजनीतिक पार्टियों के अध्यक्ष और महासचिव को नोटिस जारी करें।
पार्टियां की दलील
पार्टियों का दावा- 7 करोड़ लोगों का आधार स्वीकार नहीं किया गया
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी कि एक जिंदा मतदाता को मृत घोषित कर दिया गया था और ऐसे ही 11 लोग और भी सामने आए हैं। भूषण ने कहा, 'इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ERO) ने स्पष्ट कहा कि केवल आधार पर्याप्त नहीं है और 7 करोड़ से अधिक लोगों का आधार स्वीकार नहीं किया गया। वहीं, बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLO) पहले ही फॉर्म पर 'रिकमेंडेड/नॉट रिकमेंडेड' लिख चुके हैं।"
पिछली सुनवाई
पिछली सुनवाई में क्या हुआ था?
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने आयोग को आदेश दिया था कि वो हटाए गए 65 लाख मतदाताओं के नाम सार्वजनिक करें। आयोग को नाम हटाने का कारण भी बताने को कहा गया था। कोर्ट ने आयोग से पूछा कि 2003 में बिहार में SIR के दौरान मतदाताओं से कौन से दस्तावेज लिए गए थे। इससे पहले कोर्ट ने SIR की प्रक्रिया को वोटर फ्रेंडली बताते हुए कहा था कि 11 में से कोई एक दस्तावेज मांगा गया है।
SIR
क्या है SIR?
SIR एक तरह से नई मतदाता सूची बनाने का काम है। बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव से पहले ये प्रक्रिया की जा रही है। इसके लिए चुनाव आयोग ने मतदाताओं से कुछ निश्चित दस्तावेज जमा करने को कहा है। इसी के आधार पर तय किया जाएगा कि उनका नाम मतदाता सूची में रहेगा या नहीं। बिहार के बाद ये प्रक्रिया पश्चिम बंगाल और फिर पूरे देश में शुरू की जाएगी।