
भारत और चीन 5 साल बाद शुरू करेंगे सीमा के रास्ते व्यापार, क्यों अहम है फैसला?
क्या है खबर?
चीन के विदेश मंत्री वांग यी के भारत दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच सीमा व्यापार फिर से शुरू करने पर सहमति बनी है। भारत और चीन लिपुलेख, शिपकी ला और नाथु ला दर्रे से फिर व्यापार शुरू करेंगे। 2020 में कोरोना वायरस फैलने के बाद इन रास्तों से व्यापार बंद कर दिया गया था। दोनों देशों के बीच व्यापार और स्थानीय समुदाय के आर्थिक हितों और रोजगार के लिहाज से ये अहम कदम है।
दर्रे
सबसे पहले तीनों दर्रों के बारे में जानिए
शिपकी ला दर्रा हिमाचल प्रदेश, लिपुलेख दर्रा उत्तराखंड और नाथु ला दर्रा भारत के सिक्किम में है। ये व्यापारिक चौकियां तिब्बत और उससे सटे भारतीय सीमावर्ती क्षेत्रों को जोड़ती हैं। तिब्बत की ओर ये रास्ते शिगात्से, ल्हासा और न्यिंगची से जुड़ते हैं। शिपकी ला से व्यापार की शुरुआत 1995, लिपुलेख से 1992 और नाथु ला से 2006 में की गई थी। मौसम और बाकी परिस्थितियों के लिहाज से इन दर्रों से साल के कुछ महीनों में व्यापार होता है।
वस्तुएं
सीमा के रास्ते दोनों देशों में किन-किन चीजों का व्यापार होता है?
सीमा के रास्ते भारत चीन से ऊन, भेड़-बकरी की चमड़ी, भेड़, बकरी, घोड़े, नमक, रेशम, चीनी मिट्टी, रेडिमेड कपड़े, जूते, कंबल, कार्पेट और स्थानीय हर्बल दवाओं का आयात करता है। वहीं, भारत चीन को तांबे के उत्पाद, कपड़े, साइकिल, कॉफी, चाय, चावल, आटा, सूखे मेवे, सब्जियां, वनस्पति तेल, गुड़, मिस्री, तंबाकू, सिगरेट, मसाले, डाई, घड़ी, जूते, घासलेट, आटा, स्टेशनरी सामान, बटर तेल, अगरबत्ती, लैंप, हैंडीक्राफ्ट आइटम और फल-सब्जियों का निर्यात करता है।
नाथु ला
नाथू ला दर्रा सबसे अहम
तीनों में से नाथू ला दर्रा सबसे अहम है। यह एकमात्र ऐसा दर्रा है, जहां व्यापार और आव्रजन सुविधाएं दोनों उपलब्ध हैं। 1962 में बंद होने से पहले ये लगभग सालभर खुला रहता था। 2006 में ये दर्रा दोबारा खुला। 2016 में इसके जरिए रिकॉर्ड 82.6 करोड़ रुपये का व्यापार हुआ था। हालांकि, अलग-अलग एजेंसियां इस आंकड़े को और ज्यादा बताती हैं। 2017 में डोकलाम गतिरोध के कारण व्यापार घटकर केवल 8.8 करोड़ रुपये रह गया था।
व्यापार
लिपुलेख और शिपकी ला से कितना व्यापार होता था?
शिपकी ला के दोनों ओर सीमा शुल्क चौकियां हैं, लेकिन व्यापार बेहद कम होता है। 2017 में यहां से 59.3 लाख रुपये, जबकि 2018 में मात्र 3.7 लाख रुपये का व्यापार हुआ था। यहां से व्यापार बढ़ाने के लिए एकल-खिड़की प्रणाली और व्यापार मार्ट जैसी योजनाओं पर काम चल रहा है। लिपुलेख दर्रा सबसे कम विकसित है। यहां सीमावर्ती क्षेत्रों में कोई महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा भी नहीं है और पिथौरागढ़ से लिपुलेख तक सड़क की हालत भी खराब है।