#NewsbytesExplainer: फिल्मों में कैसे काम करता है कॉस्ट्यूम विभाग, शूटिंग के बाद कहां जाते हैं कपड़े?
क्या है खबर?
फिल्मों में किसी भी किरदार को उसकी पहचान देने के लिए पहनावा सबसे जरूरी तत्व होता है।
फिल्म में किरदारों की पोशाक फिल्म को खास दौर के नजदीक ले जाती हैं। बॉलीवुड की पीरियड ड्रामा फिल्मों में खासतौर से कॉस्ट्यूम बड़ी भूमिका निभाते हैं।
फिल्मों के इतने सारे किरदारों की पोशाक तय करना के यह जिम्मा कौन संभालता है और फिल्म की शूटिंग पूरी होने के बाद कॉस्ट्यूम का क्या होता है?
आइये इन सवालों के जवाब जानते हैं।
कॉस्ट्यूम विभाग
कॉस्ट्यूम विभाग और कॉस्ट्यूम डिजाइनर
किसी भी फिल्म में कॉस्ट्यूम का काम कॉस्ट्यूम विभाग संभालता है। इसका नेतृत्व फिल्म का कॉस्ट्यूम डिजाइनर करता है।
कॉस्ट्यूम डिजाइनर निर्देशक, निर्माता, लेखक और हेयर और मेकअप डिजाइनर के साथ फिल्म की बारीकियों को समझता है। वह फिल्म की पोशाक को इस तरह तय करता है कि कॉस्ट्यूम फिल्म की भावनाओं को प्रेषिक करने में योगदान दें।
कॉस्ट्यूम का काम संभालने के लिए कॉस्ट्यूम डिजाइनर की अपनी एक टीम होती है।
जिम्मेदारी
क्या होती है कॉस्ट्यूम विभाग की जिम्मेदारी?
फिल्म की शूटिंग के दौरान कॉस्ट्यूम विभाग की जिम्मेदारी होती है कि वह स्क्रिप्ट के हिसाब से सही कॉस्ट्यूम उपलब्ध कराए।
इसके लिए विभाग नई पोशाक बनाता है, खरीदता है और किराए पर लेता है।
कॉस्ट्यूम डिजाइनर की सबसे बड़ी जिम्मेदारी तय बजट के भीतर सही कॉस्ट्यूम उपलब्ध कराना होती है।
साथ ही उस पर समयबद्ध होने का भी दबाव होता है।
शूटिंग के पहले किरदारों पर कॉस्ट्यूम ट्राई किए जाते हैं और उनकी तस्वीरें निर्देशक को दिखाई जाती हैं।
सुपरवाइजर
कॉस्ट्यूम सुपरवाइजर
कॉस्ट्यूम सुपरवाइजर कॉस्ट्यूम डिजाइनर की टीम का अहम हिस्सा होता है। सभी कपड़ों की देखरेख करना और उनको अलग-अलग जगह पर लाने-ले जाने की जिम्मेदारी उसकी होती है।
कपड़ों की धुलाई, उनके प्रेस और फिटिंग को सुनिश्चित करने का काम कॉस्ट्यूम सुपरवाइजर का ही होता है।
कई बार शूटिंग के दौरान कपड़ों में खरोंच या अन्य दोष आ सकते हैं। ऐसे में उनकी मरम्मत का जिम्मा भी कॉस्ट्यूम सुपरवाइजर का होता है।
कॉस्ट्यूम मेकर
कॉस्ट्यूम मेकर और ब्रेकडाउन आर्टिस्ट
नए कपड़ों को बनाने का काम कॉस्ट्यूम मेकर का होता है।
डिजाइनर का निर्देश लेकर कॉस्ट्यूम मेकर कॉस्ट्यूम को बनाता है।
यह एक रचनात्मक काम है क्योंकि यहां आप एक कल्पना को हकीकत में बनाने का काम करते हैं।
कॉस्ट्यूम मेकर के बनाए कपड़ों को ब्रेकडाउन आर्टिस्ट आखिर में पूरा करता है।
उसका काम कपड़ों को पुराने जैसा दिखाना होता है, जिससे वे नए-चमचमाते नहीं, बल्कि असल जैसे लगें। इसके लिए वे अलग-अलग तकनीक का इस्तेमाल करते हैं।
स्टैंडबाई
कॉस्ट्यूम स्टैंडबाई और कॉस्ट्यूम रनर
शूटिंग के वक्त कलाकारों के कॉस्ट्यूम का ध्यान रखने के लिए कॉस्ट्यूम विभाग का एक व्यक्ति हमेशा सेट पर होता है। उसे कॉस्ट्यूम स्टैंडबाई कहा जाता है।
उसका काम ऐन मौके पर कॉस्ट्यूम में आने वाली समस्या को हल करना होता है। इसके साथ ही उसे ध्यान रखना होता है कि अलग-अलग टेक में या लगातार आने वाले दृश्यों में कलाकार के कपड़े एक जैसे हों।
सहायक कलाकारों के कॉस्ट्यूम का काम कॉस्ट्यूम रनर देखता है।
शूटिंग के बाद
शूटिंग के बाद क्या होता है इन कॉस्ट्यूम का?
शूटिंग के बाद आखिर इन कपड़ों का क्या होता है?
अकसर प्रोडक्शन हाउस अपनी फिल्म के कॉस्ट्यूम को संभालकर रख लेता है। प्रोडक्शन की अन्य फिल्मों में इन कपड़ों में जरूरी बदलाव करके इनका इस्तेमाल किया जाता है।
ये कपड़े अन्य फिल्मों की शूटिंग के लिए किराए पर भी दिए जाते हैं। कई बार सितारों द्वारा पहने गए कपड़ों की नीलामी होती है और उसके पैसे समाज सेवा में उपयोग होते हैं।
ऑस्कर
कॉस्ट्यूम के लिए मिला था भारत को पहला ऑस्कर
भारत ने अपना पहला ऑस्कर कॉस्ट्यूम के लिए ही जीता था। 1983 में भानू अथैया रिचर्ड एटेनबर्ग की फिल्म 'गांधी' के लिए बेस्ट कॉस्ट्यूम का ऑस्कर जीता था। वह ऑस्कर जीतने वाली पहली भारतीय थीं।
आमिर खान की फिल्म 'लगान' और शाहरुख खान की 'स्वदेश' में भी उन्होंने कॉस्ट्यूम के जरिए हिंदुस्तान की छवि पर्दे पर उतारी थी। 15 अक्टूबर, 2020 को भानू का ब्रेन ट्यूमर से निधन हो गया था।