'महाराज' रिव्यू: निर्देशक ने निकाला कहानी का कचूमर, बची-खुची कसर जुनैद खान ने पूरी कर दी
स्टार किड्स को लेकर लोगाें के बीच एक अलग ही दीवानगी देखने को मिलती है। आलिया भट्ट से लेकर जाह्नवी कपूर तक अब तक कई स्टार किड्स बॉलीवुड में लान्च किए जा चुके हैं। पिछले कुछ दिनों से आमिर खान के बेटे जुनैद खान की पहली फिल्म 'महाराज' चर्चा में थी, जिसे लेकर विवाद इतना बढ़ गया कि फिल्म की रिलीज पर रोक लग गई। अब आखिरकार 'महाराज' नेटफ्लिक्स पर आ गई है। आइए जानें कैसी रही जुनैद की शुरुआत।
एक पत्रकार की हिम्मत की दास्तां
इस फिल्म की कहानी गुजरात की धरती से निकले एक ऐसे समाज सुधारक की है, जो पर्दा प्रथा के खिलाफ और विधवा विवाह का समर्थक है। कहानी के केंद्र में पत्रकार करसनदास (जुनैद) है, जो बचपन से ही समाज की कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाता रहा है। वह धर्मगुरू जादूनाथ (जयदीप अहलावत) का पाखंड और असलियत सामने लाने का बीड़ा उठाता है। अब करसनदास कैसे बिना हिम्मत हारे ये लड़ाई लड़ता है, यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
फिल्म के असली मालिक हैं जयदीप
भले ही फिल्म में जुनैद को अभिनय करते देखने का लोगों को बेसब्री से इंतजार था, लेकिन असल में इसके हीरो जयदीप हैं। उनके हिस्से भले ही जुनैद की तुलना में कम संवाद आए हैं, लेकिन पूरी फिल्म में वह उन पर हावी हैं। चाल-ढाल से लेकर संवाद अदायगी तक, उनका सबकुछ उनके किरदार और फिल्म के साथ मेल खाता है। शरवरी वाद्य अपनी गुजराती शैली से प्रभावित करती हैं तो शालिनी पांडे की भूमिका में गहराई का अभाव है।
जुनैद को और जोर लगाने की जरूरत
अभिनय के माेर्चे पर जुनैद ने निराश किया है। उन्हें थिएटर की दुनिया से बाहर आकर सिनेमा के भाव को पकड़ना होगा। कैमरे के सामने उन्हें अभी सहज होने की जरूरत है। उन्हें देख लगता है मानों वह डायलॉग उगल देने की जल्दी में हैं।
निर्देशक ने किया बेड़ा गर्क
2 घंटे 11 मिनट की इस फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी इसका निर्देशन है। निर्देशक सिद्धार्थ पी मल्होत्रा ने एक शानदार कहानी का बंटाधार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी इस फिल्म की व्यापक कहानी को उन्होंने इतने हल्के में और कम से कम में समेट लिया कि चाहकर भी इसे देखने का मन नहीं करता। शुक्र है कि उन्होंने सिनेमाघरों में यह फिल्म रिलीज नहीं की। OTT पर आने से कम से कम फॉरवर्ड बटन इस्तेमाल तो हो पाया।
कमियां और भी हैं
फिल्म को मिले ट्रीटमेंट ने अच्छी-खासी कहानी का सत्यनाश कर दिया। पटकथा परोसने में सबसे बड़ी चूक हुई है। तितर-बितर कहानी के कारण मनोरंजन की पोटली, उत्साह, तनाव सबकुछ फिल्म से नदारद रहा। महिलाओं के साथ धर्मगुरु के पक्ष को भी ठीक नहीं दिखाया गया। सच्चाई सामने आने से न तो किसी के होश उड़ते हैं और ना ही लोगों में रोष देखने को मिलता है। ना ही कोई गाना यादगार है। फिल्म बेहद सपाट तरीके से आगे बढ़ती है।
देखें या ना देखें?
क्यों देखें?- फिल्म देखने के 2 कारण हैं। पहला इसका दमदार विषय, जिसे ठीक से भुनाया नहीं गया और दूसरा जयदीप, वहीं जुनैद मियां को देख लिया तो उनकी दूसरी फिल्म से हाथ जोड़ लेंगे। क्यों न देखें?- मनोज बाजपेयी की 'सिर्फ एक बंदा काफी है' देखी है तो 'महाराज' में कुछ भी दर्शनीय नहीं लगेगा, क्योंकि यह धर्मगुरु की दुनिया को बारीकी से सामने नहीं लाती। उधर मनोरंजन के मकसद से तो फिल्म कतई न देखें। न्यूजबाइट्स स्टार- 1.5/5