अर्थव्यवस्था को एक और झटका, विकास दर गिरकर 4.5 फीसदी पहुंची
मंदी से गुजर रही भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक और बुरी खबर है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में भारत की विकास दर बड़ी गिरावट के साथ 4.5 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई है। इससे पहले 2013 में GDP की विकास दर इस स्तर पर थी। पिछले तीन महीनों में विकास दर में 0.5 फीसदी की बड़ी गिरावट आई है। इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर पांच फीसदी थी।
सरकार नकार रही मंदी की बात
हाल ही में देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राज्यसभा में कहा था कि देश की विकास दर में कमी जरूर आई है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि देश में आर्थिक मंदी है। उन्होंने कहा था कि 2009-2014 के अंत में भारत की वास्तविक GDP की वृद्धि दर 6.4 फीसदी थी, जबकि 2014-2019 के बीच यह 7.5 फीसदी रही। हालांकि, जानकार इस सरकार के विकास दर की गणना के तरीके पर सवाल उठा रहे हैं।
आप पर कैसे असर डालती है GDP?
GDP का सीधा संबंध अर्थव्यवस्था से होता है। GDP बढ़ने और कम होने की स्थिति में इसका सीधा असर शेयर बाजार पर पड़ता है। GDP घटने का मतलब है कि देश में उत्पादन कम हो रहा है। इसका असर लोगों के रोजगार पर पड़ता है। अगर उत्पादन कम होगा तो लोगों की नौकरियां चली जाएंगी, जिससे बेरोजगारी बढ़ेगी। वहीं उत्पादन बढ़ने से GDP बढ़ती है और लोगों को रोजगार के ज्यादा मौके मिलते हैं।
लगातार जारी है गिरावट का दौर
देश की विकास दर में लगातार गिरावट का दौर जारी है। सितंबर में लगातार छठी तिमाही में विकास दर गिरी है। इससे पहले वित्त वर्ष 2019 की पहली तिमाही में विकास दर आठ फीसदी, दूसरी तिमाही में सात फीसदी, तीसरी तिमाही में 6.6 फीसदी और चौथी तिमाही में 5.8 फीसदी पर थी। वहीं वित्त वर्ष 2020 की पहली तिमाही में जीडीपी गिरकर पांच फीसदी पर आ गई थी।
क्या होती है GDP?
GDP यानी सकल घरेलू उत्पाद किसी भी देश की आर्थिक हालत को मापने का सबसे सटीक पैमाना है। यह एक देश के भीतर एक खास अवधि के दौरान वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन की कुल कीमत है। भारत में कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र, तीन ऐसे प्रमुख घटक हैं जिनमें उत्पादन बढ़ने या घटने के औसत के आधार पर GDP दर तय होती है। GDP बढ़ने का मतलब है कि देश की आर्थिक विकास दर बढ़ी है।