पत्रकार जमाल खशोगी हत्याकांड: सऊदी की अदालत ने पांच लोगों को सुनाई मौत की सजा

पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के मामले में सऊदी अरब में पांच लोगों की मौत की सजा और तीन को 24 साल की सजा सुनाई गई है। सऊदी के सरकारी वकील ने सोमवार को इसकी जानकारी दी। सऊदी मूल के खशोगी की पिछले साल अक्टूबर में इस्तांबुल में हत्या कर दी गई थी। अमेरिका के निवासी खशोगी सऊदी के राजकुमार मोहम्मद बिन सलमान के आलोचक माने जाते थे। आइये, इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
खशोगी को अंतिम बार 2 अक्टूबर, 2018 को इस्तांबुल स्थित सऊदी अरब के वाणिज्य दूतावास में देखा गया था। उस समय वह अपनी शादी से पहले जरूरी दस्तावेज लेने के लिए दूतावास में आए थे। बताया जाता है कि दूतावास के भीतर उनकी हत्या कर शरीर के टुकड़े कर दिए गए थे। उनकी लाश का आजतक पता नहीं चल पाया है। उनकी हत्या के मामले में रियाद की अदालत में 11 लोगों के खिलाफ मुकदमा चल रहा था।
जिन 11 लोगों के खिलाफ मुकदमा चला था, वो सभी दोषी पाए गए हैं। हालांकि, जांच में बिन सलमान के पूर्व शीर्ष सलाहकार सऊद-अल कहतानी को क्लीन चिट मिल गई है। जांच में पता चला कि उनकी हत्या में कोई भागीदारी नहीं है। कहतानी की हत्या में भागीदारी का आरोप लगाते हुए अमेरिका ने उन पर प्रतिबंध लगाए थे। साथ ही इंस्ताबुल में सऊदी के वाणिज्यदूत को भी आरोप साबित न होने के कारण रिहा कर दिया गया है।
खशोगी की हत्या दुनियाभर में चर्चा का विषय बनी थी। अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA और दूसरी एजेंसियों ने खुलासा किया था कि बिन सलमान ने खशोगी की हत्या के आदेश दिए थे। इन एजेंसियों का कहना था कि खशोगी की हत्या जैसा ऑपरेशन क्राउन प्रिंस की मंजूरी के बिना पूरा नहीं हो सकता। हालांकि, इसकी आधिकारिक घोषणा नहीं हुई थी। वहीं सऊदी अरब ने खशोगी की हत्या में सलमान का हाथ होने की बात से इनकार किया था।
1983 में अमेरिका से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद खशोगी पत्रकारिता के पेशे में आ गए। सऊदी अरब से निर्वासन के बाद से अमेरिका में रह रहे खशोगी मोहम्मद बिन सलमान की नीतियों के मुखर आलोचक थे। वे वाशिंगटन पोस्ट में कॉलम लिखते थे, जिसमें वो सऊदी सरकार की नीतियों की जमकर आलोचना करते थे। खशोगी बिन सलमान द्वारा राजकुमारों, मंत्रियों और पूर्व मंत्रियों को जेल में डालने के पीछे की कहानी दुनिया के सामने लाए थे।
खशोगी को 2018 में जानीमानी पत्रिका टाइम ने 'पर्सन ऑफ द ईयर' नामित किया था। उनके साथ पत्रिका ने उन पत्रकारों को भी इस सूची में जगह दी, जिन्हें अपने काम के चलते सजा या उत्पीड़न का सामना करना पड़ा।