इस जगह पर अब बच्चों का यौन शोषण करने वाले बनाए जाएँगे नपुंसक
यौन शोषण की घटनाएँ पूरी दुनिया में बढ़ती जा रही हैं। बच्चों का यौन शोषण भारत सहित लगभग हर देश में हो रहा है। सरकार इसे रोकने के लिए अपनी तरफ़ से कड़े कानून बना रही है, फिर भी कोई फ़ायदा नहीं हो रहा है। लेकिन अमेरिका में बच्चों से यौन शोषण करने वालों की अब ख़ैर नहीं है। जानकारी के अनुसार, वहाँ के अल्बामा राज्य में बच्चों से यौन शोषण करने वाले दोषियों को नपुंसक बनाया जाएगा। आइए जानें।
गवर्नर ने किये विधेयक पर दस्तखत
दरअसल, सोमवार को अल्बामा की गवर्नर काय इवे ने 'केमिकल कैसट्रेशन' विधेयक दस्तावेज़ पर दस्तखत कर दिए हैं। आपको बता दें कि इस विधेयक के अनुसार, अल्बामा में 13 साल से कम उम्र के बच्चों के ख़िलाफ़ यौन अपराध के दोषियों को नपुंसक बनाने का प्रावधान है। इस विधेयक पर दस्तखत करने के बाद अल्बामा अमेरिका का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जहाँ इस तरह के कानून को लागू किया गया है।
दोनों सदनों में पारित किया गया विधेयक
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह विधेयक रिपब्लिकन पार्टी के प्रतिनिधि स्टीव हर्स्ट द्वारा प्रस्तुत किया गया था। इसे अल्बामा के दोनों सदनों में पारित किया गया है।
अपराधियों को ख़ुद वहन करना होगा दवा का ख़र्च
बाल यौन शोषण के दोषियों को कब और कितनी मात्रा में दवा दी जाएगी, यह जज तय करेंगे। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि दोषी को जो दवा दी जाएगी, उसका ख़र्च उसे ख़ुद ही वहन करना होगा। गवर्नर इवे का कहना है कि जघन्य अपराधों के लिए जघन्य सज़ा होनी चाहिए, तभी अपराधियों के मन में डर पैदा होगा। अभी अपराधियों के मन में कोई डर नहीं है, इस वजह से ऐसे अपराध लगातार बढ़ रहे हैं।
रिहाई या पैरोल से एक महीने पहले लगाया जाएगा इंजेक्शन
नए कानून के अनुसार दोषी को रिहा करने या पैरोल देने से एक महीने पहले दवा का इंजेक्शन लगाया जाएगा। साथ ही कुछ और हार्मोन भी डाले जाएँगे, इससे शरीर में टेस्टोस्टेरोन पैदा नहीं होंगे। वहीं, कई राज्यों ने क़ैदियों पर रासायनिक दवा का इस्तेमाल करने पर चिंता भी व्यक्त की है। राज्य के अनुसार, यह स्पष्ट नहीं है कि दवा का इस्तेमाल कितनी बार होगा। कुछ कानूनी समूहों ने ज़बरन दवा के इस्तेमाल को लेकर चिंता भी जताई है।
इंडोनेशिया और दक्षिण कोरिया में पहले से ही दी जा रही है ऐसी सज़ा
बाल यौन शोषण के केस में नपुंसक बनाने की सज़ा दक्षिण कोरिया में 2011 और इंडोनेशिया में 2016 से ही दी जा रही है। उस समय इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने कहा था कि वे इस मुद्दे पर कोई समझौता नहीं कर सकते हैं।