बांग्लादेश में 1975 की बगावत के बाद दूसरी बार भारत की शरण में आईं शेख हसीना
बांग्लादेश में हिंसा के बीच प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है और सेना के हेलीकॉप्टर में सवार होकर अपनी छोटी बहन शेख रेहाना के साथ भारत आ गई हैं। दोनों अभी कड़ी सुरक्षा के बीच त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में हैं। जल्द ही उनके दिल्ली पहुंचने की संभावना है। यह पहली बार नहीं, जब शेख हसीना ने भारत में शरण ली हो, इससे पहले बांग्लादेश में 1975 की बगावत में भी वह भारत में थीं।
क्या हुआ था 1975 में?
शेख हसीना बांग्लादेश के संस्थापक बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की सबसे बड़ी बेटी हैं। उन्होंने 1966 में अपने पिता की आवामी लीग की छात्र इकाई से राजनीति में प्रवेश किया था। बांग्लादेश को भारत के सहयोग से पाकिस्तान से आजाद कराने वाले बंगबंधु, उनकी पत्नी और 3 बेटों की 1975 में सेना की बगावत के बाद हत्या कर दी गई थी। इस घटना के समय शेख हसीना अपनी छोटी बहन रेहाना और पति वाजिद मियां के साथ यूरोप में थीं।
जर्मनी से आईं भारत और 6 साल रहीं
यूरोप में रहने से शेख हसीना का परिवार बच गया। वह कुछ समय के लिए जर्मनी चली गईं। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हसीना को दिल्ली में शरण दी। हसीना अपने पति, बहन और 2 बेटों के साथ 1976 से लेकर 1981 तक दिल्ली में रहीं। 1981 में वह बांग्लादेश लौटीं तो हवाई अड्डे पर उनका लाखों लोगों ने स्वागत किया। उन्होंने पार्टी में कई बदलाव किए और 1986 में पहली बार चुनाव लड़ा।
कई बार हारीं चुनाव, 4 बार बनीं प्रधानमंत्री
वर्ष 1986 से लेकर 1990 तक शेख हसीना ने विपक्षी नेता के तौर पर काम किया। इसके बाद 1996 में पहली बार उनके नेतृत्व में आवामी लीग पार्टी की सरकार बनी। उन्होंने 1996 से 2001 तक बांग्लादेश में प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। इसके बाद हुए वह दो बार चुनाव हारीं और विपक्ष में बैठीं। 2009 में उन्होंने फिर से चुनाव जीता और प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया और दूसरे कार्यकाल में कई बड़े फैसले लिए।
2009 से लगातार हैं प्रधानमंत्री
शेख हसीना 2009 के बाद से लगातार इस पद पर बनी हुई थीं। 2014 में भी उनकी पार्टी को तीसरी बार देश की कमान दी गई। इसके बाद 2018 के चुनाव में भी उनको प्रधानमंत्री बनाया गया था। पिछले साल हुए बांग्लादेश के चुनाव में भी हसीना ने 300 में से 230 से अधिक सीटें जीतीं थीं, लेकिन लगातार आंदोलनों को रोकने और आरक्षण के खिलाफ उठी आग से उनके खिलाफ जो माहौल बना, वो ठंडा नहीं हो सका।
2 बार बची है शेख हसीना की जान
शेख हसीना की जान 2 बार बच चुकी है। 1975 में देश से बाहर होने के कारण और 2004 के चुनाव में एक सभा के दौरान उनके ऊपर ग्रेनेड से हमला हुआ था। उस दौरान 24 लोग मारे गए थे, लेकिन हसीना बाल-बाल बची थीं।