जानिए आखिर क्यों PUBG पर बैन लगाया जाना है अनुचित
PUBG खेलने वालों को एक शानदार बैटल रॉयल का अनुभव प्राप्त होता है। इस गेम का मोबाइल वर्जन भारत और एशियन बाजारों में काफी ज़्यादा लोकप्रियता हासिल कर रहा है। हालांकि हाल के समय में भारत में PUBG को लेकर काफी बवाल चल रहा है। मुंबई के रहने वाले 11 वर्षीय अहद निजाम ने अपनी मां के जरिए PUBG बैन करने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। जानें 5 कारण क्यों PUBG बैन नहीं होना चाहिए।
साइबर-धमकी बड़ी समस्या लेकिन गेम बैन करना उचित नहीं
PUBG मोबाइल में साइबर-धमकी निश्चित रूप से एक बड़ी समस्या है। चाहे प्लेयर्स मैच की शुरुआत से पहले लॉबी में इंतजार कर रहे हों या फिर बैटल के लिए उड़ान भर रहे हों उन्हें बहुत सारी गालियां सुनने को मिलती हैं। कुछ गालियां और बेइज़्ज़ती किसी विशेष समुदाय, जाति या फिर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का काम करती हैं। हालांकि पूरे गेम को बैन करने की बजाय चैट फिल्टर लाए जाएं और साइबर-धमकी देने वालों को ब्लॉक किया जाए।
गेम आक्रामकता को चैनल करता है, इसे प्रमोट नहीं करता
PUBG में काफी आक्रामकता की जरूरत होती है और खास तौर से यदि आपको चिकन डिनर हासिल करना है तो और भी आक्रामक होना पड़ेगा। हालांकि हमारा मानना है कि गेम आक्रामकता को प्रमोट नहीं करता है। यह इसे एक आउटलेट देता है। PUBG को आप उस तरह देख सकते हैं जैसे आप किसी इंसान की जगह दीवार पर मुक्का मारकर अपना गु्स्सा निकालते हैं। आक्रामकता के लिए ऑनलाइन दुश्मनों को मारना वास्तव में झगड़ा करने से बेहतर आउटलेट है।
यदि PUBG हिंसा को बढ़ावा देती है तो फिर फिल्में और शो क्या करते हैं?
हिंसा को बढ़ावा देने का आरोप वाकई में काफी बड़ा है। यह काफी आधारविहीन भी है। यदि गेम में व्याप्त हिंसा वास्तविक जिंदगी में भी फैल रही है तो फिर एक्शन वाली फिल्मों से भी तो हिंसा का प्रचार होता है। हमें सिनेमा जगत के बहुत सारे लोगों को फिल्में बनाने से बैन करना पड़ेगा। हमारा मानना है कि PUBG हमारी हिंसक प्रवित्ति को गेम में चैनलाइज करती है न कि इसे वास्तविक जिंदगी में फैलाती है।
विशेषज्ञों के शोध बताते हैं कि गेम की हिंसा का वास्तविक जीवन से संबंध नहीं है
समाज शास्त्र से PhD कर चुके जिम हॉडन ने एक शोध किया था जिसमें उन्होंने दिखाया कि शूटिंग गेम्स खेलने वाले लोग सोशल मीडिया साइट्स का इस्तेमाल करने वाले लोगों की अपेक्षा हिंसा के प्रति काफी कम अग्रसर थे। मनोविज्ञान के प्रोफेसर क्रिस्टोफर फर्ग्युसन की एक शोध बताती है कि गेम में व्याप्त हिंसा का वास्तविक जीवन से कोई लेना देना नहीं है। उन्होंने तो यह भी कहा कि लोग गेम के बजाय वास्तविक जीवन में हिंसा से डरते हैं।
सैनिकों का रिफलेक्स सुधारने के लिए वीडियो गेम्स का सहारा लेती है आर्मी
आप शायद हमारे ऊपर भरोसा नहीं करेंगे जब हम यह कहेंगे कि गेम्स से रिफलेक्स में सुधार आता है। हालांकि आर्मी भी रिफलेक्स सुधारने के लिए वीडियो गेम्स का सहारा लेती हैं। हाल ही में हमने रिपोर्ट किया था कि इंडियन एयर फोर्स ने अपने संभावित पाइलट्स के बैटल में रिफलेक्स को चेक करने के लिए गेम का सहारा लिया था। अमेरिकी सेना भी अपने सैनिकों को कॉल ऑफ ड्यूटी जैसे फर्स्ट-पर्सन शूटर गेम खेलने के लिए प्रोत्साहित करती है।