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    सिंगापुर के शोधकर्ताओं ने तैयार किया हवा से पेयजल अलग करने वाला डिवाइस

    सिंगापुर के शोधकर्ताओं ने तैयार किया हवा से पेयजल अलग करने वाला डिवाइस

    लेखन प्रमोद कुमार
    Jan 24, 2021
    12:17 pm

    क्या है खबर?

    सिंगापुर की नेशनल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक डिवाइस बनाया है, जो बिना किसी बाहरी दबाव के हवा से पेयजल अलग करने में सक्षम है।

    इसके लिए यूनिवर्सिटी के इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर हो गिम की टीम ने एक तरह का एरोजेल तैयार किया है।

    बेहद हल्का यह एरोजेल एक स्पंज की तरह काम करता है। यह हवा से पानी को अलग कर लेता है, लेकिन इससे पानी निकालने के लिए इसे निचोड़ने की जरूरत नहीं पड़ती।

    जानकारी

    एक दिन में 17 लीटर पानी अलग कर सकता है एरोजेल

    यह एरोजेल बिना किसी बैटरी के काम करता है। साइंस एडवांस जर्नल में प्रकाशित शोध में बताया गया है कि एक किलो एरोजेल से नमी वाले एक दिन में 17 लीटर पानी इकट्ठा किया जा सकता है। यह पानी पीने लायक भी होगा।

    तकनीक

    कैसे काम करता है एरोजेल?

    पॉलीमर से बना यह एरोजेल हवा से पानी के मॉलीक्यूल को खींच लेता है। इसके बाद इन्हें ठंडा कर तरल रूप में बदल देता है, जिसके बाद पानी बाहर आ जाता है।

    धूप वाले दिन में यह एरोजेल और भी बेहतर तरीके से काम करता है। गर्मी के समय यह एरोजेल अपने संपर्क में आए 95 प्रतिशत भाप को फिर से पानी में बदल देता है।

    लैब में एरोजेल ने महीनों तक सही तरीके से काम किया था।

    कामयाबी

    WHO के पेयजल के मानकों पर खरा उतरता है पानी

    एरोजेल तैयार करने वाले शोधकर्ताओं ने हवा से निकाले गए पानी को टेस्ट भी किया था। इसमें पता चला है यह पानी पेयजल के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा बनाए गए मानकों पर खरा उतरता है।

    पहले भी कई वैज्ञानिकों ने हवा से पानी अलग करने के लिए कई डिवाइस बनाए हैं, लेकिन उन सबको चलाने के लिए धूप या बिजली की जरूरत पड़ती थी।

    साथ ही उनके कई भागों को बार-बार खोलने या बंद करने की जरूरत होती थी।

    उत्पादन

    बड़े स्तर पर उत्पादन के लिए सहयोगी तलाश रही टीम

    पिछले साल अक्टूबर में नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के शोधकर्ताओं का शोध साइंस जर्नल में पब्लिश हो चुका है। अब वो एरोजेल के बड़े स्तर पर उत्पादन के लिए सहयोगियों की तलाश में जुटे हुए हैं।

    इस टीम के प्रमुख प्रोफेसर हो ने कहा कि पानी की लगातार होती कमी के बीच उनका यह अविष्कार उम्मीद की किरण बनकर आया है। यह कम से कम ऊर्जा की खपत कर कई मौसमों में पेयजल उपलब्ध करवा सकता है।

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