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बैंगनी रंग नहीं है असली, मस्तिष्क की कल्पना से दिखता है ऐसा 
बैंगनी नहीं है असली रंग (तस्वीर: पिक्साबे)

बैंगनी रंग नहीं है असली, मस्तिष्क की कल्पना से दिखता है ऐसा 

Apr 12, 2025
09:14 am

क्या है खबर?

वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक अध्ययन में पाया कि बैंगनी जैसा कोई असल रंग होता ही नहीं है। यह रंग असल में हमारी आंखों में नहीं बल्कि मस्तिष्क में बनता है। जब मस्तिष्क लाल और नीले रंग को एक साथ देखता है, तो वह भ्रमित हो जाता है। ऐसे में वह दोनों रंगों को मिलाकर एक नया रंग बना देता है, जो बैंगनी होता है। यह पूरी तरह मस्तिष्क की एक कल्पना होती है, कोई वास्तविक तरंग नहीं।

 पहेली 

वैज्ञानिक नजर से बैंगनी की पहेली क्या है? 

लाल और नीले रंग स्पेक्ट्रम के 2 अलग-अलग सिरों पर होते हैं और वैज्ञानिक तौर पर एक-दूसरे से नहीं मिल सकते। हालांकि, मस्तिष्क इस दूरी को एक चक्र बनाकर जोड़ता है और बैंगनी रंग सामने लाता है। S शंकु नीला और L शंकु लाल रंग पहचानते हैं और जब दोनों साथ सक्रिय होते हैं, तो मस्तिष्क एक नया संकेत बनाता है। इसलिए बैंगनी रंग असली नहीं होते हुए भी हमारी आंखों के लिए बिल्कुल असली लगता है।

वजह

कैसे दिखते हैं लाखों रंग? 

हमारी आंखों में मौजूद 3 तरह के शंकु कोशिकाएं S, M और L अलग-अलग तरंगदैर्घ्य पर काम करती हैं और नीला, हरा, पीला, लाल जैसे रंगों को पहचानती हैं। जब किसी चीज से रोशनी आती है, तो शंकु सक्रिय होते हैं और मस्तिष्क को संकेत भेजते हैं। यही प्रक्रिया रंगों को मिलाने में काम आती है, जिससे हम फिरोजा और पन्ना जैसे मिश्रित रंग देख पाते हैं। बैंगनी रंग इसी मेल-जोल से पैदा होता है, जो हमें पसंद आता है।