चंद्रयान-2: उम्मीदों पर छा रहा अंधेरा, विक्रम का पता नहीं लगा पाया NASA का ऑर्बिटर
चंद्रयान-2 मिशन के तहत भेजे गए विक्रम लैंडर से संपर्क होने की उम्मीदों पर अंधेरा छा रहा है। अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA का लुनर ऑर्बिटर चांद की सतह पर विक्रम का पता नहीं लगा पाया। NASA के लुनर रिकोनेसेंस ऑर्बिटर (LRO) ने उस जगह की तस्वीरें भेजी हैं, जहां विक्रम को लैंड होना था, लेकिन अंधेरे के कारण वह विक्रम की तस्वीर नहीं ले पाया। LRO ने 17 सितंबर को विक्रम की फोटो लेने की कोशिश की थी।
चांद पर 14 दिन तक रहेगी रात
NASA ने बयान जारी करते हुए कहा कि चूंकि अभी चांद पर दो हफ्ते के दिन के बाद रात होने वाली है इसलिए उस पूरे इलाके में अंधेरा छाया है। इसी अंधेरे के कारण LRO विक्रम की फोटो नहीं ले पाया। जानकारी के लिए बता दें कि चांद पर 14 दिनों तक दिन और इतने ही दिनों तक रात रहती है। NASA अब चांद पर दिन होने के बाद फिर से विक्रम की फोटो लेने की कोशिश करेगी।
चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंड नहीं कर पाया था विक्रम
भारत ने चांद की सतह पर उतरने के लिए चंद्रयान-2 मिशन भेजा था। इसमें भेजे गए विक्रम लैंडर को चांद की सतह पर उतरना था। इसके बाद इससे एक रोवर निकलता, जो चांद की सतह पर प्रयोगों का अंजाम देता। सतह पर उतरने से 90 सेकंड पहले विक्रम का कंट्रोल रूम से संपर्क टूट गया था। उस वक्त यह सतह से 2.1 किलोमीटर ऊपर था। उसके बाद से लगातार ISRO इससे संपर्क करने की कोशिश में लगा हुआ है।
ISRO के पास बेहद कम समय
ISRO के पास विक्रम से संपर्क करने के लिए बेहद कम समय बचा है। 20-21 सितंबर को चांद पर रात हो जाएगी। अंधेरा होने के बाद विक्रम में लगे सोलर पैनल काम नहीं करेंगे। साथ ही बेहद कम तापमान के कारण विक्रम काम नहीं कर पाएगा। अगर इन दो दिनों के दौरान ISRO इससे संपर्क कर पाता है तो यह बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी। हालांकि अब विक्रम से संपर्क होने की संभावना कम है।
NASA ऐसे कर रही है ISRO की मदद
NASA के डीप स्पेस नेटवर्क के तीन सेंटर से विक्रम को सिग्नल भेजे जा रहे हैं। ये सेंटर स्पेन के मैड्रिड, कैलिफोर्निया के गोल्डस्टोन और ऑस्ट्रेलिया के कैनबरा में स्थित है। ये सिग्नल विक्रम को मिल रहे हैं, लेकिन वहां से जवाब नहीं मिल रहा।
चंद्रयान-2 मिशन 95 फीसदी सफल
बेशक भारत अपनी पहली कोशिश में चांद पर उतरने में सफल नहीं हो पाया है, लेकिन चंद्रयान-2 मिशन 95 फीसदी सफल हुआ है। इसके तहत भेजा गया ऑर्बिटर सफलतापूर्वक चांद के चारों ओर चक्कर लगा रहा है और वहां से जरूरी सूचनाएं और तस्वीरें ISRO को भेज रहा है। यह 7.5 साल तक काम करता रहेगा और इस दौरान चांद से जुड़ी अहम सूचनाएं भेजेगा। ये सूचनाएं ISRO के अगले मिशनों में अहम भूमिका निभा सकती हैं।