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    अंतरिक्ष के दूसरे छोर तक देख सकेगा NASA का जेम्स वेब टेलीस्कोप, जानें इसके बारे में
    NASA ने सबसे बड़ा टेलीस्कोप अंतरिक्ष में भेज दिया है।

    अंतरिक्ष के दूसरे छोर तक देख सकेगा NASA का जेम्स वेब टेलीस्कोप, जानें इसके बारे में

    लेखन प्राणेश तिवारी
    Dec 27, 2021
    07:00 pm

    क्या है खबर?

    अंतरिक्ष हमेशा से ही इंसान को लुभाता रहा है क्योंकि वहां हमेशा ही कुछ नया खोजने के लिए बाकी रह जाता है।

    इसी चाहत में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA ने अपना सबसे शक्तिशाली टेलीस्कोप 25 दिसंबर को अनंत में भेजा है।

    जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) 1.39 किलोमीटर प्रतिसेकेंड की रफ्तार से पृथ्वी से करीब 15 लाख किलोमीटर दूर लग्रांज पॉइंट पर जा रहा है।

    आइए इस टेलीस्कोप के बारे में सब कुछ समझने की कोशिश करते हैं।

    सफर

    अंतरिक्ष से डाटा भेजने का काम करेगा JWST

    हबल के मुकाबले 100 गुना ज्यादा ताकतवर JWST ने रविवार को इसकी एंटेना असेंबली रिलीज की, जिसमें हाई-डाटा-रेट एंटेना लगे हुए हैं।

    इनका इस्तेमाल कम से कम 28.6GB अंतरिक्ष डाटा ऑब्जर्वेटरी में दिन में दो बार भेजा जाएगा।

    NASA ने बताया कि इसके इंजीनियर्स ने एंटेना असेंबली की गति को रिलीज और टेस्ट किया और इस पूरी प्रक्रिया में करीब एक घंटे का वक्त लगा।

    इसका मकसद अंतरिक्ष में इंफ्रारेड किरणों को समझना और उनसे जुड़ा डाटा जुटाना है।

    बयान

    अंतरिक्ष इतिहास का सबसे बड़ा टेलीस्कोप

    वांडरबिल्ट यूनिवर्सिटी में अंतरिक्ष विज्ञानी डॉ. करन जानी ने कहा, "JWST इंसानी सोच का शानदार नमूना है। करीब 30 साल लंबी योजना और तैयारी के बाद हमारे पास अंतरिक्ष इतिहास का सबसे बड़ा टेलीस्कोप है।"

    उन्होंने कहा, "मेरे लिए JWST इंसानी सभ्यता से जुड़ा है। यह टेलीस्कोप सभी इंसानों से जुड़ा है, भले ही हम किसी भी देश में रहते हों।"

    बता दें, टेलीस्कोप करीब 30 दिन लंबा सफर करने के बाद जनवरी के आखिर तक अपनी मंजिल पर पहुंचेगा।

    मंजिल

    आखिर कहां भेजा जा रहा है JWST?

    JWST मौजूदा हबल स्पेस टेलीस्कोप की तरह पृथ्वी की कक्षा में चक्कर नहीं काटेगा।

    इसे लाखों किलोमीटर दूर एक लोकेशन पर भेजा जा रहा है, जिसे दूसरा लग्रांज पॉइंट कहा जाता है। इसका नाम इटैलियन-फ्रेंच गणितज्ञ जोसेफ-लुईस लग्रांज के नाम पर रखा गया है।

    वहां से JWST की रेंज इतनी ज्यादा होगी कि यह अंतरिक्ष के दूसरे छोर तक देख सकेगा।

    इसके जरिए आने वाला डाटा की मदद से अंतरिक्ष की शुरुआत से जुड़े रहस्यों से पर्दा उठ सकता है।

    सवाल

    क्या होते हैं लग्रांज पॉइंट्स?

    NASA के मुताबिक, लग्रांज पॉइंट्स अंतरिक्ष में ऐसे बिंदु होते हैं, जहां किसी पिंड पर दोनों ओर से बराबर गुरुत्वाकर्षण बल लगता है।

    सूर्य से पृथ्वी के केंद्र की ओर एक सीधी रेखा खींची जाए तो जिन बिंदुओं पर सूर्य और पृथ्वी दोनों से बराबर गुरुत्वाकर्षण बल लगेगा, वहां पहुंचने वाला सैटेलाइट स्थिर हो जाएगा।

    लग्रांज पॉइंट पर पहुंचने के बाद JWST स्थिर हो जाएगा और पृथ्वी के साथ सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हुए अपना काम कर सकेगा।

    वजह

    दूसरे लग्रांज पॉइंट पर इसलिए जा रहा है JWST

    सूर्य और धरती के आसपास कुल पांच लग्रांज पॉइंट्स हैं, जहां छोटे सैटेलाइट्स एक ही पोजीशन में स्थिर रह सकते हैं।

    NASA की मानें तो L1 पॉइंट से लगातार सूर्य को देखा जा सकता है और इसपर अभी सोलर एंड हीलियोस्फेरिक ऑब्जर्वेटरी सैटेलाइट SOHO मौजूद है।

    वहीं, JWST जिस L2 पर जा रहा है, उसे अंतरिक्ष को समझने के लिए सबसे अच्छा माना जा रहा है और यह बिंदु गहरे अंतरिक्ष तक देखने में मदद कर सकता है।

    फायदा

    सैटेलाइट को सूर्य से सुरक्षा भी मिलेगी

    JWST के लिए चुनी गई पोजीशन के साथ इंफ्रारेड विजन को समझा जाएगा, जो कई बार गर्मी के तौर पर महसूस होता है।

    पृथ्वी से पीछे होने की वजह से टेलीस्कोप को सूर्य की गर्मी से सुरक्षा मिलेगी।

    टेलीस्कोप करीब -225 डिग्री पर काम करेगा और इसके सामने और पीछे के तापमान में बड़ा अंतर होगा।

    ऐसे में जरूरी है कि सूरज की रोशनी और गर्मी इसपर केवल एक ओर से ही पड़े, जो L2 पर ही संभव है।

    उम्मीद

    सामने आएगा ब्रह्मांड की शुरुआत का सच

    अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि JWST की मदद से ब्रह्मांड के निर्माण से जुड़ी सच्चाई भी सामने आएगी।

    अभी वैज्ञानिकों के पास कई थ्योरीज हैं, जिनमें बिग बैंग का सिद्धांत भी शामिल है।

    बिग बैंग थ्योरी में कहा गया है कि ब्रह्मांड का निर्माण केवल एक बिंदु में हुए विस्फोट के बाद हुआ है।

    उम्मीद है कि सबसे शक्तिशाली टेलीस्कोप से मिलने वाली जानकारी ऐसी थ्योरीज की जांच में मदद कर सकती है।

    जानकारी

    न्यूजबाइट्स प्लस

    JWST में करीब 25 लाख रुपये कीमत वाले 48 ग्राम सोने की परत चढ़ाई गई है। सोना दूसरे धातुओं से प्रतिक्रिया ना करने के चलते ना सिर्फ ज्यादा टिकाऊ है बल्कि 99 प्रतिशत प्रकाश परावर्तित करते हुए टेलीस्कोप ठंडा रखने में भी मदद करेगा।

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