
DRDO का नया गुब्बारा कैसे आसमान में भारत के लिए करेगा जासूसी?
क्या है खबर?
भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफॉर्म की पहली उड़ान का सफल परीक्षण किया है।
यह उच्च ऊंचाई वाला गुब्बारा पृथ्वी की निगरानी और खुफिया जानकारी जुटाने के लिए विकसित किया गया है। इसे आगरा स्थित एरियल डिलीवरी रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट ने बनाया है।
इसका परीक्षण मध्य प्रदेश के श्योपुर में हुआ, जहां यह 55,700 फीट की ऊंचाई तक गया और 62 मिनट तक हवा में रहा।
क्षमता
लड़ाकू विमानों से ज्यादा ऊंचाई तक उड़ने की क्षमता
यह प्लेटफॉर्म सामान्य लड़ाकू जेट और ड्रोन से ज्यादा ऊंचाई तक उड़ सकता है। इसकी पहली उड़ान में यह 17 किलोमीटर यानी लगभग 55,700 फीट की ऊंचाई तक पहुंचा।
इतनी ऊंचाई पर उड़ने से यह अधिकांश सतह से दागी जाने वाली मिसाइलों की पहुंच से बाहर हो जाता है।
इस ऊंचाई से यह नीचे के बड़े क्षेत्र को आसानी से देख सकता है और लगातार निगरानी कर सकता है, जो इसकी एक बड़ी खासियत है।
विकल्प
सस्ते में निगरानी का बेहतरीन विकल्प है यह गुब्बारा
जहां एक लड़ाकू विमान या UAV की लागत करीब 400 करोड़ रुपये तक होती है, वहीं यह गुब्बारा केवल करीब 8 करोड़ रुपये में तैयार हो सकता है।
सैटेलाइट्स कुछ ही मिनटों के लिए निगरानी कर पाते हैं, लेकिन यह गुब्बारा कई घंटों या दिनों तक एक ही स्थान पर रह सकता है।
इसके कारण यह सीमाओं, सैन्य गतिविधियों और घुसपैठ पर लगातार नजर रख सकता है। इसका संचालन आसान है और बड़ी संख्या में तैनात किया जा सकता है।
चुनौतियां
चुनौतियां भी हैं ज्यादा
इस गुब्बारे में दिशा नियंत्रण सीमित होता है, क्योंकि यह ऊपरी हवा के पैटर्न पर निर्भर करता है।
इसकी गति धीमी होने से रडार पर पकड़े जाने की संभावना अधिक रहती है। यह विमान या ड्रोन की तरह तेजी से पैंतरेबाजी नहीं कर सकता और सीमित पेलोड ही ले जा सकता है।
हालांकि, कम लागत, बेहतर निगरानी क्षमता और त्वरित तैनाती की वजह से यह भविष्य में भारत की खुफिया प्रणाली का अहम हिस्सा बन सकता है।