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चीनी वैज्ञानिकों ने बनाया इंसानी शरीर में लगने वाला वायरलेस चार्जर, मरीजों के आएगा काम

चीनी वैज्ञानिकों ने बनाया इंसानी शरीर में लगने वाला वायरलेस चार्जर, मरीजों के आएगा काम

Nov 20, 2023
01:07 pm

क्या है खबर?

चीन के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा बायोडिग्रेडेबल और वायरलेस एनर्जी रिसिविंग और स्टोरेज डिवाइस बनाया है, जो बायोइलेक्ट्रॉनिक्स इम्प्लांट्स को पावर दे सकता है। आसान भाषा में समझें तो यह एक तरह का वायरलेस चार्जर है, जिसे इंसानी शरीर में फिट किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल मरीजों पर नजर रखने और उन्हें ठीक करने के लिए लगाए गए मॉनिटरिंग सिस्टम और ड्रग डिलीवरी इंप्लांट्स को पावर देने के लिए किया जाएगा। आइये इस बारे में विस्तार से जानते हैं।

जरूरत

क्यों पड़ी इसकी जरूरत? 

अभी इंसानी शरीर में लगाए जा सकने वाले सेंसर और सर्किट यूनिट्स उपलब्ध हैं, लेकिन इन्हें पावर देने वाले डिवाइसेस की कमी है। अभी कुछ ऐसे पावर मॉड्यूल उपलब्ध हैं, जो इन्हें पावर दे सकते हैं, लेकिन उनका इस्तेमाल बहुत जटिल है। आमतौर पर ये एक बार ही इस्तेमाल किये जा सकते हैं और इनसे सेंसर और सर्किट यूनिट्स को पर्याप्त पावर नहीं मिलती। अगर इन्हें ट्रांसडर्मल चार्जर से पावर दी जाए तो जलन का खतरा रहता है।

खासियत

नए डिवाइस में क्या खास है? 

उपर बताई कमियों को दूर करने के लिए शोधकर्ताओं ने इंसानी शरीर में लगने लायक एक वायरलेस पावर सिस्टम पेश किया है। यह अधिक ऊर्जा स्टोर कर सकता है और इंसानी शरीर को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा। इसे इस प्रकार से डिजाइन किया गया है कि यह इंसानी शरीर में टिश्यू और अंगों का आकार ले लेता है। यह पूरा डिवाइस पॉलीमर और वैक्स में लिपटा होता है, जिससे यह आसानी से मुड़ जाता है।

प्रक्रिया

यह चार्ज कैसे होगा? 

इस डिवाइस में एक मैग्निशियम कॉयल लगी है। जब इसके ऊपर ट्रांसमिटिंग कॉयल रखी जाएगी तो यह चार्ज हो जाता है। चूंकि यह डिवाइस इंसानी शरीर में फिट होगा, इसलिए चार्जिंग कॉयल को त्वचा पर उस जगह पर रखना होगा, जहां यह डिवाइस लगा होगा। मैग्निशियम कॉयल चार्जिंग कॉयल से पावर लेकर इसे एक सर्किट के जरिये जिंक-आयन हाइब्रिड सुपरकैपेसिटर से बने एनर्जी स्टोरेज मॉड्यूल तक पहुंचाएगी। यहां से यह पावर शरीर में लगे बायोइंप्लांट्स तक पहुंच जाएगी।

सुरक्षा

इंसानी शरीर के लिए यह कितना सुरक्षित? 

जिंक और मैग्निशियम इंसानी शरीर के लिए जरूरी होते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस डिवाइस में लगे जिंक और मैग्निशियम की मात्रा इंसान की दैनिक जरूरत के मुकाबले कम है, इसलिए यह शरीर के लिए सुरक्षित है। टेस्ट के दौरान पता चला कि यह 10 दिनों तक प्रभावी रूप से काम कर सकता है और 2 महीनों में पूरी तरह शरीर में घुल जाता है। यानी एक बार लगाने के बाद इसे बाहर निकालने की जरूरत नहीं होगी।

सुधार

अभी भी कुछ सुधार की जरूरत 

शोधकर्ताओं का कहना है कि अभी इसमें सुधार की जरूरत है और इसे बंद-चालू किए जाने की सुविधा जोड़ना बाकी है। फिलहाल यह डिस्चार्ज होने पर ही बंद होता है। चूहों पर टेस्ट के दौरान इसकी वजह से कुछ अनावश्यक दवाएं भी रिलीज हुई थीं, जो इंसानों शरीर के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं। हालांकि, शोधकर्ताओं का कहना है कि यह सही दिशा में उठाया गया एक कदम है और आगे चलकर यह प्रभावी समाधान साबित हो सकता है।