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    क्यों मनाया जाता है ओणम का पर्व? जानें इसका इतिहास और धार्मिक महत्व

    क्यों मनाया जाता है ओणम का पर्व? जानें इसका इतिहास और धार्मिक महत्व

    लेखन प्रदीप मौर्य
    Sep 06, 2019
    12:17 pm

    क्या है खबर?

    भारत एक विविधता से भरा हुआ देश है, जहाँ कई धर्मों, संस्कृतियों के लोग रहते हैं। अलग-अलग संस्कृतियों के लोग अलग-अलग पर्व भी मानाते हैं।

    होली और दिवाली जैसे पर्व देश के हर हिस्से में लगभग सामान रूप से मनाया जाता है, लेकिन कुछ पर्व ऐसे हैं, जो किसी-किसी राज्य में ही मनाए जाते हैं।

    ओणम भी एक ऐसा ही पर्व है, जो केरल का प्रमुख पर्व है। आइए आज आपको ओणम का इतिहास और इसका धार्मिक महत्व बताते हैं।

    ओणम

    10 दिनों तक मनाया जाता है ओणम का पर्व

    ओणम केरल का प्रमुख त्योहार है, लेकिन इसे अन्य पड़ोसी राज्यों में भी मनाया जाता है।

    10 दिनों तक चलने वाला यह पर्व इस साल 01 सितंबर से शुरू हो गया है और 13 सितंबर तक चलेगा।

    मलयाली पंचांग के अनुसार, कोलावर्षम के पहले महीने छिंगम में ओणम उत्सव मनाया जाता है। वहीं, ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से ये पर्व अगस्त से सितंबर के बीच पड़ता है। जबकि, हिंदी पंचांग के अनुसार, ओणम, श्रावण शुल्क त्रयोदशी को मनाया जाता है।

    कारण

    फ़सलों की सुरक्षा के लिए मनाया जाता है ओणम

    ओणम को फ़सलों का त्योहार भी कहा जाता है।

    आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस समय तक दक्षिण भारत में चाय, इलायची, अदरक और धान जैसी तमाम फ़सलें पक कर तैयार हो जाती हैं और किसान फ़सलों की सुरक्षा और इच्छाओं की पूर्ति के लिए ओणम के दिन श्रावण देवता और पुष्पदेवी की आराधना करते हैं।

    वहीं, इस पर्व को मनाने के पीछे एक पौराणिक मान्यता भी है।

    जानकारी

    राजा महाबली के स्वागत में मनाया जाता है ओणम

    मान्यता है कि यह पर्व राजा महाबली के स्वागत में मनाया जाता है। माना जाता है कि ओणम के दिन राजा महाबली अपनी प्रजा से मिलने के लिए पाताल लोक से पृथ्वी पर आते हैं।

    पौराणिक मान्यता

    देवराज इंद्र को हराकर महाबली ने किया स्वर्ग पर कब्जा

    कहानियों के अनुसार, महाबली ने अपनी साधना से कई शक्तियाँ प्राप्त कर ली थीं। इसके बाद उन्होंने स्वर्ग पर हमला किया और देवराज इंद्र को परास्त करके स्वर्ग पर अपना कब्जा कर लिया।

    यह देखकर इंद्र की माता अदिति ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की और राजपाठ लौटाने के लिए कहा।

    कुछ समय बाद अदिति के गर्भ से भगवान विष्णु ने वामन रूप में अवतार लिया और इंद्र का खोया हुआ राजपाठ लौटाने का काम शुरू किया।

    वामन

    महाबली ने वामन से भेंट माँगने के लिए कहा

    स्वर्ग पर अधिकार प्राप्त करने के बाद महाबली अश्वमेध यज्ञ करा रहे थे, तभी वहाँ भगवान विष्णु वामन रूप में पहुँचे।

    महाबली ने स्वागत करने के बाद उनसे भेंट माँगने के लिए कहा। यह सुनकर वामन रूपी विष्णु ने कहा कि मुझे तीन कदम चाहिए।

    महाबली ने उनकी माँग स्वीकार कर ली। इसके बाद वामन ने अपने एक कदम से पृथ्वी, दूसरे से आकाश नाप लिया। बचा तीसरा कदम, जिसके लिए महाबली के पास कुछ नहीं बचा था।

    पाताल

    प्रजा से मिलने साल में एक बार पाताल से पृथ्वी पर आते हैं महाबली

    यह देखकर महाबली ने अपना सिर वामन के सामने झुका दिया। वामन ने जैसे ही अपना तीसरा कदम महाबली के सिर पर रखा, वो पाताल लोक चले गए।

    इसके बाद महाबली की प्रजा व्याकुल हो गई। महाबली के प्रति प्रजा का प्रेम देखकर भगवान विष्णु ने महाबली को वरदान दिया कि वो साल में एक बार प्रजा से मिलने के लिए पाताल लोक से आ सकते हैं।

    उसके बाद से ही केरल में ओणम का पर्व मनाया जा रहा है।

    उत्सव

    फूलों के पंखुड़ियों से बनाई जाती है वृत्ताकार रंगोली

    ओणम पर तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। नृत्य, लोकगीत और खेलों का आयोजन किया जाता है। ओणम के दौरान होने वाली नौकादौड़ देखने के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं।

    ओणम में घरों के आँगन में फूलों के पंखुड़ियों से वृत्ताकार रंगोली बनाई जाती है, जो प्रतिदिन बड़ी होती जाती है। इसे पूकलम कहा जाता है।

    पूकलम के बीच में महाबली और उनके अंगरक्षकों की मिट्टी की मूर्तियाँ बनाई जाती हैं और महिलाएँ इसके चारों तरफ़ नृत्य करती हैं।

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