राजस्थान में दिखेंगे अंतरराष्ट्रीय ऊंट महोत्सव के रंग, 12 जनवरी से होगी शुरुआत
राजस्थान के बीकानेर जिले में 26वां अंतरराष्ट्रीय ऊंट महोत्सव 12 जनवरी से शुरू होने जा रहा है। पर्यटन सीजन में यह ऊंट महोत्सव सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहेगा। इस महोत्सव में देश-विदेश से आये सैलानियों के लिए रेत के टीलों पर ऊंट की सवारी, ऊंटों के करतब और कलाकारों के गीत-संगीत के कार्यक्रम आयोजित किए जायेंगे। इस बार सूरसागर और जूनागढ़ की दीवारों पर लेजर-साउंड शो के जरिए यह नजारा पर्यटकों को देखने को मिलेगा।
शोभायात्रा से होगा महोत्सव का आगाज
अंतरराष्ट्रीय ऊंट उत्सव का आगाज शोभायात्रा के साथ जुनागढ़ के सामने से किया जाएगा। शोभायात्रा में स्थानीय लोग अपने-अपने ऊंटों को सजाकर महाेत्सव में शामिल होंगे और यहां होने वाली सभी प्रतियोगिताओं में सैलानियों के साथ भाग लेंगे। इसके साथ ही बीकानेर के कलाकार राजस्थान की हेरिटेज पेंटिग्स प्रतियोगिता में भाग लेंगे। इसमें प्रथम स्थान पाने वाले कलाकारों की पेंटिगस का रूस में प्रदर्शन किया जाएगा। यह परम्परा कई सालों से चली आ रही हैं।
क्या होगा सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र?
देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए अंतरराष्ट्रीय ऊंट महोत्सव आकर्षण का केंद्र है। हर साल सैकड़ों सैलानी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने के लिए यहां पहुंचते हैं और ऊंट की सवारी का आनंद लेते है। इस उत्सव में पर्यटकों के लिए कई प्रतियोगिताएं रखी गई हैं। इनमें रस्साकस्सी, कबड्डी, कुश्ती, मटका दाैड़ और साफा बांध जैसी खेलों का आयोजन किया जाएगा। इसके साथ ही सैलानियों को ऊंट के दूध से बनी मिठाईयां और चाय पीने का माैका भी मिलेगा।
क्यों खास है यह महोत्सव?
बीकानेर के लोगों का कहना है कि इस शहर की खोज करने वाले राव बीका जी ने सबसे पहले ऊंटों का पालन-पोषण शुरू किया था। तब से यह परंपरा बड़े महोत्सव में बदल गई। इसी धरती से सेना के लिए ऊंटों को तैयार किया जाने लगा। उन्हें प्रशिक्षिण देने के बाद युद्ध के लिए बाॅर्डर पर भेजा जाना शुरू हुआ। इन ऊंटों को आम भाषा में 'गंगा रिसला' कहकर बुलाया जाता हैं।
रंग-बिरंगी वेशभूषा और लोकनृत्य
ऊंट महोत्सव में रंग-बिरंगी वेशभूषा पहन कर देशी और विदेशी महिलाएं ऊंट, घोड़े, ऊंट गाड़ी और मोटरसाइकिलों पर बैठ कर निकलती हैं। यहां के पुरुष राजस्थानी लिबास और गहनों में सजे नजर आते हैं। इसके अलावा पारम्परिक और कालबेलिया नृत्य प्रस्तुत किया जाता है जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। इस माैके पर ढोल-नगाड़ों से नृत्य किया जाता हैं। जो देशी-विदेशी लोगों को झूमने पर मजबूर कर देता है।