सुप्रीम कोर्ट ने पूजा स्थलों को लेकर नई याचिकाओं को खारिज किया, कहा- बस बहुत हुआ
क्या है खबर?
देश के पूजा स्थलों को लेकर लगातार एक के बाद एक दायर हो रही नई याचिकाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए इसे बंद करने की बात कही है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने सोमवार को एक सुनवाई के दौरान पूजा स्थल अधिनियम, 1991 से जुड़े मामले में दायर नई याचिकाओं को लेकर कहा, "बस बहुत हो गया। इसे खत्म होना चाहिए।"
उन्होंने कहा सुप्रीम कोर्ट इस मामले में नई याचिका पर सुनवाई नहीं करेगा।
सुनवाई
कोर्ट ने सुनवाई टाली
CJI खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने इससे संबंधित कई मामलों पर सुनवाई को स्थगित करने की घोषणा की और तारीख को अप्रैल के पहले सप्ताह तक बढ़ा दिया।
CJI ने कहा, "याचिकाएं दायर करने की एक सीमा होती है। इतने अधिक अंतरिम आवेदन (IA) दायर हैं, जिस पर कोर्ट शायद विचार न कर पाए।"
हालांकि, कोर्ट ने अतिरिक्त आधारों के साथ हस्तक्षेप याचिका दायर करने की अनुमति दी है, लेकिन नई याचिकाओं पर नोटिस नहीं जारी होगी।
सुनवाई
18 मामलों की सुनवाई रोकी गई
लॉ ट्रेंड के मुताबिक, पिछले साल दिसंबर में सुनवाई के बाद मूलरूप से 17 फरवरी के लिए निर्धारित की गई सुनवाई में करीब 18 मामलों में कार्यवाही पर रोक लगा दी गई है।
इन मामलों में सबसे अधिक याचिकाएं अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने या समर्थन करने वाली याचिकाएं हैं।
इनमें धारा 2,3 और 4 पर चर्चा शामिल है। यह धारा किसी भी पूजा स्थल के बदलाव को प्रतिबंधित करती है।
याचिका
किन-किन लोगों ने दायर की है याचिका
मुख्य याचिका धार्मिक गुरु और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने 2020 में दायर की थी।
इसके बाद काशी राजघराने की राजकुमारी कृष्ण प्रिया, भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी, पूर्व सांसद चिंतामणि मालवीय, धार्मिक नेता स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती, मथुरा के देवकीनंदन ठाकुर, जमीयत उलेमा-ए-हिंद, वकील चंद्रशेखर, रुद्र विक्रम सिंह, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद समिति ने याचिका दायर की।
इसके अलावा सांसद मनोज झा, असदुद्दीन ओवैसी, इकरा हसन ने भी याचिका दायर की है।
अधिनियम
क्या है पूजा स्थल अधिनियम 1991?
पूजा स्थल अधिनियम 1991 विभिन्न धर्मों के पूजा स्थलों से संबंधित है, जिसे कांग्रेस सरकार के समय लाया गया था।
अधिनियम में देशभर के पूजा स्थलों के धार्मिक स्वरूप को बदलने पर प्रतिबंध लगाया गया है और वो 15 अगस्त, 1947 को आजादी के समय जैसे थे, उन्हें उसी धार्मिक स्वरूप में रखने का प्रावधान किया गया है।
अधिनियम की धारा 3 ने एक धर्म के पूजा स्थल को दूसरे धर्म के पूजा स्थल में बदलने पर रोक लगाई है।