#NewsBytesExplainer: क्या है पूजा स्थल अधिनियम, जिसे समाप्त करने की भाजपा सांसद ने उठाई मांग?
क्या है खबर?
वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद से संबंधित मामले के कारण पूजा स्थल अधिनियम, 1991 चर्चा के केंद्र में है।
सोमवार को भाजपा के राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने सदन में पूजा स्थल अधिनियम को समाप्त करने की मांग की।
उन्होंने कहा कि ये अधिनियम पूरी तरह से असंवैधानिक और अतार्किक है और वह राष्ट्र हित में केंद्र सरकार से इस कानून को समाप्त करने का अनुरोध करते हैं।
आइए जानते हैं कि पूजा स्थल अधिनियम क्या है।
अधिनियम
पूजा स्थल अधिनियम क्या है और कब बना?
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, पूजा स्थल अधिनियम विभिन्न धर्मों के पूजा स्थलों से संबंधित है। इस अधिनियम को दिसंबर, 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस से ठीक एक साल पहले 1991 में बनाया गया था।
इस समय राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था और सांप्रदायिक भावनाओं के भड़कने के कारण तमाम धार्मिक जगहों पर सवाल उठाए जा रहे थे।
कांग्रेस नेता पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने इस अधिनियम को संसद में पेश किया था।
प्रावधान
अधिनियम में क्या हैं प्रावधान?
पूज स्थल अधिनियम में देशभर के पूजा स्थलों के धार्मिक स्वरूप को बदलने पर प्रतिबंध लगाया गया है और वो 15 अगस्त, 1947 को आजादी के समय जैसे थे, उन्हें उसी धार्मिक स्वरूप में रखने का प्रावधान किया गया है।
अधिनियम की धारा 3 में एक धर्म के पूजा स्थल को दूसरे धर्म के पूजा स्थल में बदलने पर रोक लगाई गई है।
इसका मतलब एक मस्जिद को मंदिर और मंदिर को मस्जिद में नहीं बदला जा सकता।
कानून
अधिनियम में और क्या-क्या महत्वपूर्ण प्रावधान हैं?
इस अधिनियम की धारा 4(2) में कहा गया है कि अधिनियम के लागू होते ही किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप को बदलने के लिए चल रहे मुकदमे और याचिकाएं खारिज हो जाएंगी।
इस संबंध में कोई भी नया मुकदमा दाखिल नहीं किया जा सकेगा।
इसमें यह भी कहा गया है कि अगर किसी पूजा स्थल का धार्मिक स्वरूप 15 अगस्त, 1947 के बाद बदला गया है तो इसके खिलाफ याचिका दायर की जा सकती है।
धरोहर
क्या ऐतिहासिक धरोहरों पर भी लागू होता है अधिनियम?
ताजमहल और कुतुब मीनार जैसी ऐतिहासिक धरोहरें भी पूजा स्थल अधिनियम के दायरे में आती हैं।
हाल ही में ताजमहल और कुतुब मीनार को लेकर भी विवाद हुआ है और इन्हें हिंदू मंदिरों को तोड़कर बनाए जाने का दावा किया गया है। इसे लेकर भी अधिनियम में प्रावधान है।
इसके अनुसार, अगर किसी धार्मिक स्थल पर इसे किसी दूसरे धार्मिक स्थल को तोड़कर बनाए जाने के ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं, तब भी इसके स्वरूप को नहीं बदला जा सकता।
राम मंदिर
अधिनियम के बावजूद बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर कैसे बना?
दरअसल, अयोध्या के बाबरी मस्जिद-राम मंदिर विवाद को पूजा स्थल अधिनियम से छूट दी गई थी और ये इसके दायरे में नहीं आता था।
इसी कारण इससे संबंधित मामला कोर्ट में चलता रहा और सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर, 2019 में इस पर फैसला सुनाया।
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस अधिनियम का जिक्र किया था और इसका हवाला देते हुए अन्य किसी पूजा स्थल का धार्मिक स्वरूप बदलने पर रोक लगाई थी।
मांग
अभी क्यों हो रही अधिनियम को समाप्त करने की मांग?
हाल ही में ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे में इसकी जगह पर पहले हिंदू मंदिर होने के सबूत मिले हैं।
हालांकि, इसके बाद भी इसे फिर से मंदिर में नहीं बदला जा सकेगा क्योंकि पूजा स्थल अधिनियम के तहत ऐसा करने पर रोक है।
इसी कारण यह अधिनियम दक्षिणपंथियों के निशाने पर है।
मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि से सटी शाही ईदगाह मस्जिद को भी मंदिर को तोड़कर बनाए जाने की बात कही जाती है और वहां भी यही पेच है।
भाजपा
भाजपा सांसद ने अधिनियम पर क्या कहा?
भाजपा सांसद यादव ने कहा कि पूजा स्थल अधिनियम भगवान राम और भगवान श्रीकृष्ण के बीच भेद करता है क्योंकि इसमें प्रावधान है कि श्री राम जन्मभूमि को छोड़कर 1947 से लंबित धार्मिक स्थलों से संंबधित अन्य सभी मामले समाप्त माने जाएंगे।
उन्होंने कहा कि ये अधिनियम हिंदू, जैन, सिख, बौद्धों धर्म के अनुयायियों के अधिकार कम करता है और आक्रांताओं द्वारा मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाए जाने का बचाव करता है।
जानकारी
क्या अधिनियम में बदलाव किए जा सकते हैं?
अगर केंद्र सरकार इस अधिनियम में बदलाव करना चाहती है तो वो ऐसा कर सकती है। इसके लिए उसे संसद में संशोधन विधेयक पेश करना होगा और इसे पारित करके इसे कानून का रूप देना होगा।