SBI ने यूनिक नंबर समेत चुनावी बॉन्ड से संबंधित सारा डाटा चुनाव आयोग को दिया
क्या है खबर?
भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने यूनिक बॉन्ड नंबर समेत चुनावी बॉन्ड से संबंधित पूरा डाटा चुनाव आयोग को दे दिया है।
बैंक ने बताया कि उसने आयोग को 2 लिफाफे दिए हैं। इनमें से एक लिफाफे में पेन ड्राइव है, जिसमें 2 PDF फाइलें हैं। पहली फाइल में चुनावी बॉन्ड की खरीदारी से संबंधित सारी जानकारी है, वहीं दूसरी फाइल में उन्हें भुनाने वाली राजनीतिक पार्टियों से संबंधित जानकारी है।
आयोग को ये फाइलें अपनी वेबसाइट पर अपलोड करनी होंगी।
पहला डाटा
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर SBI ने दिया है डाटा
SBI ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर चुनाव आयोग को ये पूरा डाटा दिया है।
दरअसल, पहले SBI ने आयोग को केवल यह जानकारी दी थी कि किस व्यक्ति/कंपनी ने किस तारीख को कितने-कितने रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे और किस राजनीतिक पार्टी ने किस तारीख को कितने-कितने रुपये के बॉन्ड भुनाए, ये जानकारी है।
कोर्ट ने इस पर आपत्ति जताई थी और यूनिक नंबर समेत बॉन्ड से संबंधित पूरा डाटा 21 मार्च तक आयोग को देने को कहा था।
अहमियत
क्यों अहम है यूनिक बॉन्ड नंबर?
SBI द्वारा जारी किए गए हर चुनावी बॉन्ड पर एक यूनिक अल्फान्यूमेरिक (संख्या और अक्षरों से बना) कोड छपा होता है, जो नग्न आंखों से दिखाई नहीं देता।
इसे केवल एक खास तरह की रोशनी (अल्ट्रावायलेट किरणों) में ही देखा जा सकता है।
इस कोड का मिलान करके ये पता किया जा सकता है कि किस कंपनी या व्यक्ति ने किस राजनीतिक पार्टी को कितना चंदा दिया।
इससे रिश्वत लेकर कंपनियों को ठेका देने का खुलासा हो सकता है।
ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को करार दिया था असंवैधानिक
सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने 15 फरवरी को ऐतिहासिक आदेश सुनाते हुए राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने की चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दे दिया था।
कोर्ट ने कहा था कि लोगों को यह जानने का अधिकार है कि राजनीतिक पार्टियों को कहां से पैसा मिल रहा है।
उसने SBI को बॉन्ड से संबंधित सारा डाटा चुनाव आयोग को देने और आयोग को ये डाटा अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करने का निर्देश दिया था।
बॉन्ड
क्या थे चुनावी बॉन्ड?
चुनावी बॉन्ड एक सादा कागज होता था, जिस पर नोटों की तरह उसकी कीमत छपी होती थी। इसे कोई भी व्यक्ति या कंपनी खरीदकर अपनी मनपंसद राजनीतिक पार्टी को चंदे के तौर पर दे सकती थी।
बॉन्ड खरीदने वाले की जानकारी केवल SBI के पास रहती थी। हर तिमाही में SBI 10 दिन के लिए चुनावी बॉन्ड जारी करता था।
केंद्र सरकार ने 2017 के बजट में इसकी घोषणा की थी, जिसे लागू 2018 में किया गया।
सवाल
चुनावी बॉन्ड पर क्यों उठ रहे थे सवाल?
चुनावी बॉन्ड को लेकर सबसे बड़ा सवाल गोपनीयता का था। दरअसल, बॉन्ड भुना रही पार्टी को ये नहीं बताना होता था कि उसे यह बॉन्ड किससे मिला। बॉन्ड पर भी दानकर्ता शख्स या कंपनी का नाम नहीं होता था।
इसका मतलब बॉन्ड के जरिए किसने किसे चंदा दिया, इसकी जानकारी गुप्त रहती थी।
इस गोपनीयता के कारण योजना के जरिए मनी लॉन्ड्रिंग और सत्ताधारी पार्टी के चंदे के बदले में कंपनियों को लाभ प्रदान करने की आशंकाएं थीं।