दुनिया की 45 प्रतिशत महिलाओं का नहीं है अपने ही शरीर पर अधिकार- UNFPA रिपोर्ट
क्या है खबर?
यदि आपसे पूछा जाए कि क्या यह शरीर आपका है और क्या आप इससे जुड़े सभी निर्णय लेते हैं तो आपका जवाब हां में होगा, लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि आधुनिकता के दौर में भी दुनिया की 45 प्रतिशत महिलाओं का खुद के शरीर पर अधिकार नहीं है।
चौंकिए मत यह हम नहीं, बल्कि संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की रिपोर्ट कह रही है। इस रिपोर्ट के आने के बाद शारीरिक स्वायत्तता पर कई सवाल खड़े हो गए हैं।
सर्वे
UNFPA ने दुनिया के 60 देशों में किया था शारीरिक स्वायत्तता के लिए सर्वे
इंडिया टुडे के अनुसार, UNFPA ने विश्व जनसंख्या रिपोर्ट की स्थिति को लेकर 60 देशों में सर्वे किया था। इसमें शारीरिक स्वायत्तता पर कई सवाल पूछे गए थे।
इसमें सामने आया कि करी 45 प्रतिशत महिलाओं को शारीरिक स्वायत्तता नहीं है यानी उनका खुद के शरीर पर ही अधिकार नहीं है। यह बड़ी चौंकाने वाली स्थिति थी।
इस स्थिति का खुलासा UNFPA ने 'मेरा शरीर मेरा अपना है' शीर्षक से जारी रिपोर्ट में किया है।
जानकारी
क्या है शारीरिक स्वायत्तता?
UNFPA के अनुसार शारीरिक स्वायत्तता में व्यक्ति के पास किसी भी तरह की हिंसा और डर के बिना जीवन जीने का विकल्प होता है और उसे अपने शरीर के संबंध में सभी अच्छे और बुरे सभी तरह के निर्णय लेने का अधिकार होता है।
अधिकार
दुनिया में 55 प्रतिशत महिलाएं स्वास्थ्य देखभाल का निर्णय लेने में है सक्षम
UNFPA की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में 55 प्रतिशत महिलाएं ही स्वास्थ्य देखभाल, गर्भनिरोधक और सेक्स के लिए हां या ना कहने कहरने के लिए पूरी तरह से सशक्त हैं। इसी तरह 71 प्रतिशत देश ही मातृत्व देखभाल की गारंटी देते हैं।
इसके अलावा 75 प्रतिशत देशों में गर्भनिरोधक के लिए कानूनी रूप से पूर्ण और समान पहुंच देते हैं और केवल 80 प्रतिशत देशों में यौन स्वास्थ्य और कल्याण का समर्थन करने वाले कानून लागू हैं।
जानकारी
56 प्रतिशत देशों में है व्यापक कामुकता शिक्षा के लिए कानून
रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में महज 56 प्रतिशत देशों में ही व्यापक कामुकता शिक्षा का समर्थन करने वाले कानून और नीतियां लागू हैं। जबकि अन्य देशों पर सैक्स के संबंध में खुले में बात करना भी सामाजिक परंपराओं के पूरी तरह से खिलाफ है।
भारत
भारत में महज 12 प्रतिशत महिलाएं ही खुद के स्वास्थ्य पर ले पाती है निर्णय
UNFPA की रिपोर्ट में भारत में NFHS-4 (2015-2016) सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहा गया है कि वर्तमान में विवाहित महिलाओं (15-49 वर्ष की आयु) में से केवल 12 प्रतिशत ही स्वतंत्र रूप से अपनी स्वास्थ्य देखभाल के बारे में निर्णय लेती हैं।
इसी तरह करीब 63 प्रतिशत विवाहित महिलाएं अपने जीवनसाथी के परामर्श से निर्णय लेती हैं। इसी तरह 23 प्रतिशत यानी एक चौथाई महिलाए स्वास्थ्य देखभाल पर निर्णय लेती हैं।
गर्भनिरोध
गर्भनिरोधक पर निर्णय लेने के लिए आठ प्रतिशत महिलाएं ही हैं स्वतंत्र
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में गर्भनिरोधक के उपयोग के बारे में निर्णय लेने के संबंध में विवाहित महिलाओं में से केवल आठ प्रतिशत (15-49 वर्ष) ही पूरी तरह स्वतंत्र है।
इसी तरह करीब 83 प्रतिशत महिलाओं को अपने जीवनसाथी के साथ मिलकर इस पर फैसला लेना पड़ता है।
इसके अनुसार भारत में करीब प्रत्येक 10 में से एक महिला के लिए गर्भनिरोधक के उपयोग के बारे में बड़े पैमाने पर निर्णय पति ही लेते हैं।
जागरुकता
महिलाओं को गर्भनिरोधकों के बारे में है सीमित जानकारी
UNFPA की रिपोर्ट के अनुसार, गर्भनिरोधक के बारे में महिलाओं को दी जाने वाली जानकारी सीमित है।
गर्भनिरोधक का उपयोग करने वाली केवल 47 प्रतिशत महिलाओं को उसके दुष्प्रभावों के बारे में बताया गया है और 54 प्रतिशत महिलाओं को अन्य गर्भ निरोधकों के बारे में जानकारी दी गई है।
ऐसे में कहा जा सकता है कि भारत में आज भी आधी विवाहित महिलाओं को गर्भनिरोधकों के सही इस्तेमाल ओर दुष्परिणामों की जानकारी नहीं है।
सुझाव
सभी के पास होना चाहिए शारीरिक स्वायत्तता का अधिकार
UNFPA की रिपोर्ट में कहा गया है, "हम सभी को शारीरिक स्वायत्तता का अधिकार है और हमारे पास अपने शरीर के बारे में अपनी पसंद बनाने की शक्ति होनी चाहिए। इसी तरह हमारे सामज और लोगों को भी उन विकल्पों का समर्थन करना चाहिए।"
रिपोर्ट में कहा गया है कि शारीरिक स्वायत्तता का अधिकार होने के बाद भी लाखों महिलाओं को सेक्स को ना कहने के अधिकार से वंचित किया जाता है। यह पूरी तरह गलत है।
अन्य
इन अधिकारों से भी किया जा रहा है वंचित
रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में महिलाओं को शादी के लिए हां या ना कहने, जीवन साथी का चुनाव करने, बच्चे पैदा करने के सही समय का निर्णय करने से वंचित रखा जा रहा है।
इसके लिए उनकी शिक्षा, उम्र, क्षमता और समझ को बड़ा कारण बताया जाता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं और लड़कियों को शारीरिक स्वायत्तता से वंचित करना गलत है। यह असमानताओं और हिंसा का सबसे बड़ा कारण बनता है।