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    दशक के उच्चतम स्तर पर पहुंची खाद्य तेलों की कीमत; आखिर क्या है कारण?

    दशक के उच्चतम स्तर पर पहुंची खाद्य तेलों की कीमत; आखिर क्या है कारण?

    लेखन भारत शर्मा
    May 29, 2021
    07:02 pm

    क्या है खबर?

    कोरोना महामारी के चलते लगाए गए लॉकडाउन से करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए हैं। इसी बीच आसमान छूती महंगाई ने लोगों का घर खर्च चलाना दूरभर कर दिया है।

    पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी के बाद अब खाद्य तेलों की कीमतें भी दशक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। इससे भोजन का जायका बिगड़ने के साथ जेब ढीली हो रही है।

    आइए जानते हैं कि खाद्य तेलों की कीमत में आए इस उछाल के पीछे कारण क्या है।

    उपयोग

    सबसे पहले जानते हैं कि भारत में किन तेलों का होता है अधिक उपयोग

    भारत में मुख्य रूप से लोग खाने के लिए सरसों, मूंगफली, वनस्पति, नारियल, सोयाबीन, सूरजमुखी, पॉम, ऑलिव और अलसी के तेल का उपयोग करते हैं।

    इनमें ग्रामीण इलाकों में सरसों, मूंगफली और वनस्पति तेल का अधिक उपयोग होता है, जबकि शहरी क्षेत्रों में रिफाइंड, सूरजमुखी, नारियल, सोयाबीन, पॉम और ऑलिव ऑयल का अधिक उपयोग किया जाता है।

    सकल रूप से देखा जाए तो सरसों और रिफाइंड तेल की देश में सबसे ज्यादा खपत होती है।

    खपत

    देश में कितनी है प्रति व्यक्ति के हिसाब से खाद्य तेलों की खपत?

    उपभोक्ता मामलों के विभाग के आंकड़ों के अनुसार 1993-94 से 2004-05 के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति प्रति महीना खाद्य तेल की खपत 0.37 किलो से बढ़कर 0.48 किलो पर पहुंच गई थी।

    इसी तरह 2011-12 में यह मांग 0.67 किलो पर पहुंच गई थी। शहरी क्षेत्र में 1993-94 से 2004-05 के बीच प्रति व्यक्ति खपत 0.56 से बढ़कर 0.66 किलो और 2011-12 में 0.85 किलो पर पहुंच गई है। उसके बाद के आंकड़े उपलब्ध नहीं है।

    जानकारी

    वनस्पति तेलों की मांग में भी लगातार हो रहा इजाफा

    कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार देश में प्रति व्यक्ति के हिसाब से वनस्पति तेलों की मांग भी लगातार बढ़ रही है। पिछले पांच सालों के दौरान देश में वनस्पति तेलों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 19.10 किलोग्राम से 19.80 किलोग्राम पर पहुंच गई है।

    कीमत

    किस रफ्तार से बढ़ी है देश में खाद्य तेलों की कीमत?

    आंकड़ों के अनुसार देश में 28 मई, 2020 से 28 मई, 2021 के बीच खाद्य तेलों में 20 से 55 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है।

    इस अवधि में सरसों तेल की खुदरा कीमत 118.79 रुपये प्रति किलो से 44 प्रतिशत इजाफे के साथ 171.45 रुपये पर पहुंच गई है।

    इसी तरह मूंगफली तेल 20.1 प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ 147.87 से बढ़कर 177.59 और वनस्पती तेल 45.19 प्रतिशत इजाफे के साथ 90.37 रुपये से 131.21 रुपये पर पहुंच गया है।

    अन्य

    अन्य खाद्य तेलों की इस तरह बढ़ी कीमत

    आंकड़ों के अनुसार सोयाबीन तेल 52.66 प्रतिशत इजाफे के साथ 100.78 रुपये प्रति किलो से बढ़कर 153.85 रुपये, सूरजमुखी का तेल 56.31 प्रतिशत के इजाफे के साथ 110.54 रुपये से 171.79 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गया है।

    इसी तरह पाम ऑयल में 54.5 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। इस तेल की कीमत 86.98 रुपये प्रति किलो से बढ़कर 133.99 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गई है। यह 11 साल में तेलों की उच्चतम कीमत है।

    उत्पादन

    क्या है भारत में खाद्य तेलों के उत्पादन की स्थिति?

    कृषि मंत्रालय के अनुसार 2015-16 से 2019-20 के बीच वनस्पति तेलों की मांग 2.34-2.59 करोड़ टन के दायरे में रही है। इस दौरान घरेलू आपूर्ति 86.30 लाख टन से 1.65 करोड़ टन ही रही है।

    2019-20 में देश में सरसों, मूंगफली, नारियल, पॉम, चावल और कपास से खाद्य तेलों की घरेलू उपलब्धता कुल घरेलू मांग के मुकाबले 1.30 करोड़ टन कम यानी 1.65 करोड़ टन रही है। इस तहर से देश मांग पूर्ति के लिए आयात पर निर्भर है।

    आयात

    क्या है भारत में खाद्य तेलों के आयात की स्थिति?

    कृषि मंत्रालय के अनुसार भारत ने साल 2019-20 में 61,559 करोड़ रुपये की लागत से करीब 1.33 करोड़ टन खाद्य तेलों का आयात किया, जो कि मांग का लगभग 56 प्रतिशत हिस्सा था।

    इसमें मुख्य रूप से पॉम 70 लाख टन, सोयाबीन 35 लाख टन और सूरजमुखी तेल का 25 लाख टन का आयात किया था।

    सोयाबीन तेल मुख्य रूप से अर्जेंटीना और ब्राजील, पॉम ऑयल इंडोनेशिया और मलेशिया तथा सूरजमुखी तेल यूक्रेन और अर्जेंटीना से आयात किया जाता है।

    कारण

    क्या है खाद्य तेलों की कीमत में बढ़ोतरी का कारण?

    मंत्रालय के अनुसार खाद्य तेलों की कीमतों में बढ़ोतरी का प्रमुख कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में तेजी से उछाल आना है।

    कच्चे पाम तेल की कीमत 25 मई को 3,890 रिंगिट (करीब 68,000 रुपये) प्रति टन पहुंच गई, जबकि एक साल पहले यह 2,281 रिंगिट (करीब 40,000 रुपये) पर थी।

    इसी तरह शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड (CBOT) में सोयाबीन की कीमत पिछले साल 306.16 डॉलर से इस साल बढ़कर 559.51 डॉलर प्रति टन पहुंच गई।

    जानकारी

    वनस्पति तेलों की कीमतों में हुआ इजाफा

    यहां तक ​​कि वनस्पति तेलों के लिए खाद्य और कृषि संगठन (FAO) मूल्य सूचकांक (2014-2016 = 100), जो अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव का सूचक है, इस साल अप्रैल में बढ़कर 162 पर पहुंच गया, जो पिछले साल 81 था।

    बढ़ोतरी

    क्या है अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेलों की कीमत बढ़ने का कारण?

    सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEAI) के कार्यकारी निदेशक बीवी मेहता ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेलों की कीमत बढ़ने का कारण वनस्पति तेल से जैव ईंधन बनाने पर जोर देना है।

    उन्होंने कहा कि अमेरिका, ब्राजील और अन्य देशों में सोयाबीन तेल से अक्षय ईंधन बनाने पर जोर दिया गया है। इसी तरह कोरोना महामारी के बावजूद खाद्य तेलों की वैश्विक मांग अधिक रही है। यह बड़ा कारण रहा है।

    अन्य कारण

    अंतराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के ये भी अन्य कारण

    मेहता ने बताया कि तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के अन्य कारणों में चीन द्वारा अधिक तेल की खरीद करना, मलेशिया में श्रमिक मुद्दे, पॉम और सोयाबीन उत्पादक क्षेत्रों पर ला नीना का प्रभाव और इंडोनेशिया और मलेशिया में कच्चे पाम तेल पर निर्यात शुल्क शामिल हैं।

    इसी तरह अमेरिका के सोयाबीन उत्पादन क्षेत्रों में औसत से अधिक तापमान के कारण कम उत्पादन और अर्जेंटीना के उत्पादक क्षेत्रों में लगातार सूखा पड़ना भी बड़ा कारण रहा है।

    खपत

    अचानक क्यों बढ़ रही है चीन में खाद्य तेलों की खपत?

    दरअसल, चीन की विशाल आबादी के खानपान में बदलाव आ रहा है। सामान्य तौर पर चीन के समाज में उबले भोजन की प्रमुखता थी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय खानपान का चलन बढ़ने से वहां अब तले भोजन की खपत बढ़ रही है।

    ऐसे में अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए चीन अंतरराष्ट्रीय बाजार से तेल खरीद रहा है, जिसके कारण कीमतें बढ़ रही हैं। इसका असर सीधा भारत की मांग और तेल की कीमतों पर पड़ता नजर आ रहा है।

    विकल्प

    क्या हैं खाद्य तेलों की कीमत कम करने के लिए सरकार पास विकल्प?

    सरकार के पास खाद्य तेल की कीमतों को कम करने का पहला विकल्प आयात शुल्क कम करना प्रमुख है। SEAI के अनुसार 2 फरवरी को कृषि बुनियादी ढांचे और विकास उपकर सहित आयात शुल्क की प्रभावी दर 35.75 प्रतिशत हो गई है।

    इसी तरह रिफाइंड, ब्लीच्ड और पाम तेल पर प्रभावी आयात शुल्क 59.40 प्रतिशत पर पहुंच गया है।

    इसी तरह कच्चे सोयाबीन और सूरजमुखी तेल पर आयात शुल्क की दर 38.50 से 49.50 प्रतिशत के बीच है।

    विवाद

    आयात शुल्क घटाने के पक्ष में नहीं है खाद्य तेल उद्योग

    एक अधिकारी ने बताया कि यदि सरकार रिफाइंड पाम तेल पर आयात शुल्क कम करती है तो कीमतों में तत्काल कमी आएगी।

    हालांकि, खाद्य तेल उद्योग शुल्क घटाने के पक्ष में नहीं है। SEAI के मेहता ने कहा कि यदि आयात शुल्क घटाया जाता है तो अंतरराष्ट्रीय कीमतें बढ़ जाएंगी। इससे न तो सरकार को राजस्व मिलेगा और न ही उपभोक्ता को लाभ मिलेगा।

    उन्होंने कहा कि सरकार को खाद्य तेलों पर सब्सिडी देकर गरीबों को राहत पहुंचानी चाहिए।

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