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    स्ट्रॉन्ग रूम से पोलिंग बूथ और वहां से वापस स्ट्रॉन्ग रूम कैसे पहुंचती हैं EVM?

    स्ट्रॉन्ग रूम से पोलिंग बूथ और वहां से वापस स्ट्रॉन्ग रूम कैसे पहुंचती हैं EVM?
    लेखन प्रमोद कुमार
    May 22, 2019, 01:46 pm 1 मिनट में पढ़ें
    स्ट्रॉन्ग रूम से पोलिंग बूथ और वहां से वापस स्ट्रॉन्ग रूम कैसे पहुंचती हैं EVM?

    लोकसभा चुनाव के नतीजे गुरुवार को घोषित किए जाएंगे। गुरुवार सुबह से मतगणना शुरू हो जाएगी, लेकिन उससे पहले इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) की सुरक्षा को लेकर कई विवाद उठ रहे हैं। मंगलवार को कई विपक्षी पार्टियों ने इसे लेकर चुनाव आयोग से मुलाकात की थी। इस विवाद के बीच आपके मन में EVM के स्ट्रॉन्ग रूम से पोलिंग बूथ और वहां से वापस स्ट्रॉन्ग रूम तक पहुंचने के सफर को लेकर कई सवाल उठ रहे होंगे। जानिये, उनके जवाब।

    कहां स्टोर होती है EVM?

    जब चुनाव नहीं होते हैं तब एक जिले में मौजूद सभी EVM को जिला कोषागार (ट्रेजरी) या वेयरहाउस में रखा जाता है। जिसे स्ट्रॉन्ग रूम कहते हैं। ये सभी मशीनें जिला निर्वाचन अधिकारी की देखरेख में रखी जाती है। ये ट्रेजरी या वेयरहाउस तहसील स्तर पर भी हो सकते हैं। इनकी सुरक्षा के लिए स्टोर पर पुलिस या सिक्योरिटी गार्ड की तैनाती और CCTV कैमरे लगे होते हैं। बिना उचित परमिशन के इन मशीनों को लाया-ले जाया नहीं जा सकता।

    कैसे अलॉट होती हैं EVM?

    मतदान की तारीख नजदीक आने पर एक लोकसभा क्षेत्र की सभी विधानसभाओं के लिए EVM अलॉट की जाती हैं। यह काम राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधि की मौजूदगी में एक सॉफ्टवेयर की मदद से किया जाता है। अगर किसी पार्टी का प्रतिनिधि मौजूद नहीं होता तो अलॉट की गई EVM और VVPAT मशीनों की जानकारी पार्टी कार्यालय में पहुंचाई जाती है। यहां से हर विधासनभा के लिए रिटर्निंग अधिकारी को इन मशीनों का चार्ज दिया जाता है।

    रिटर्निंग अधिकारी को मिलता है EVM का चार्ज

    रिटर्निंग अधिकारी को मशीनों का चार्ज मिलने के बाद इन्हें विधानसभा स्तर पर बने स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाता है। यहां से एक बार फिर पार्टियों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में मशीनों को रैंडम तरीके से हर एक पोलिगं बूथ के लिए अलॉट किया जाता है। हर मशीन का अलग-अलग नंबर होता है। पोलिंग एजेंट, बूथ के लिए अलॉट हुई मशीनों के नंबर को मतदान केंद्र पर पहुंचने वाली मशीन से मिलान कर सके।

    स्ट्रॉन्ग रूम से पोलिंग पार्टियों को सौंपी जाती हैं मशीनें

    उम्मीदवारों के नाम फाइनल होने और बैलेट पेपर लगने के बाद पार्टियों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में एक बार फिर मशीनों को चुनाव का दिन आने तक स्ट्रॉन्ग रूम में बंद कर दिया जाता है। स्ट्रॉन्ग रूम DSP स्तर के पुलिस अधिकारी या केंद्रीय पुलिस बलों की सुरक्षा में रहता है। इसके बाद एक निश्चित तारीख पर स्ट्रॉन्ग रूम को खोला जाता है और मशीनों को मतदान केंद्रों तक ले जाया जाता है।

    रिजर्व रखी जाती हैं कुछ EVM

    पोलिंग पार्टियों को मशीने सौंपे जाने के अलावा कुछ मशीनों को रिजर्व रखा जाता है ताकि अगर किसी बूथ पर किसी EVM में खराबी आती है तो उसे तुरंत बदला जा सके। इस साल EVM मशीनों को GPS लगे वाहन में लाया-ले जाया गया है।

    मतदान के बाद फिर स्ट्रॉन्ग रूम में पहुंचती हैं मशीनें

    मतदान खत्म होने के बाद प्रीसाइडिंग ऑफिसर मशीन में रिकॉर्ड हुए कुल वोटों की लिस्ट तैयार करता है। इसकी एक प्रमाणित कॉपी पोलिंग एजेंट को सौंपी जाती है। इसके बाद EVM को सील कर दिया जाता है। इस सील पर उम्मीदवार या उनके पोलिंग एजेंट अपने साइन कर सकते हैं। इसके बाद मशीनों को फिर से स्ट्रॉन्ग रूम ले जाया जाता है। उम्मीदवार के प्रतिनिधि स्ट्रॉन्ग रूम तक मशीन ले जा रहे वाहनों के साथ जा सकते हैं।

    अगर बीच में स्ट्रॉन्ग रूम खोलना हो तो?

    अगर स्ट्रॉन्ग रूम बंद होने और मतगणना के दिन के बीच स्ट्रॉन्ग रूम को खोलना पड़े तो इसके लिए भी चुनाव आयोग ने कुछ प्रावधान किए हैं। ऐसी स्थिति में उम्मीदवार या उनके एजेंट का होना जरूरी है। काम होने के बाद रूम को फिर से पहले की तरह सील किया जाता है। इसकी सुरक्षा के लिए तीन-स्तरीय सुरक्षा के इंतजाम होते हैं। मतगणना शुरू होने से पहले एजेंट मशीन नंबर और उसकी सील की जांच कर सकते हैं।

    मतगणना के दिन खुलता है स्ट्रॉन्ग रूम का ताला

    जो EVM रिजर्व रखी जाती हैं उन्हें भी इस्तेमाल की गई EVM के साथ स्ट्रॉन्ग रूम में जमा करना होता है। जब स्ट्रॉन्ग रूम में उस इलाके की सारी मशीनें जमा हो जाती है तो इस पर ताला लगा दिया जाता है। यहां भी उम्मीदवार या उनके प्रतिनिधि ताले पर खुद की सील लगा सकते हैं। एक बार सील होने के बाद स्ट्रॉन्ग रूम को मतगणना के दिन ही खोला जाता है।

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