'एक देश, एक चुनाव' पर केंद्र का बड़ा कदम, पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता में समिति बनाई
क्या है खबर?
केंद्र सरकार ने 'एक देश, एक चुनाव' के मामले पर बड़ा कदम उठाया है। आज सरकार ने इस संबंध में एक समिति बनाई है, जिसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद करेंगे।
समिति में और कौन-कौन लोग होंगे, इसकी जानकारी अभी तक सामने नहीं आई है, लेकिन माना जा रहा है कि आज ही सरकार इसके बारे में अधिसूचना जारी कर सकती है। इस अधिसूचना में समिति के अन्य सदस्यों के बारे में और विस्तृत जानकारी सामने आ सकती है।
काम
क्या होगा समिति का काम?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता में ये समिति प्रस्तावित कानून के सभी पहलुओं पर विचार करेगी और 'एक देश, एक चुनाव' की संभावना का पता लगाएगी। समिति अलग-अलग लोगों से राय भी लेगी।
बता दें कि इसी साल जनवरी में विधि आयोग ने भी इस संबंध में राजनीतिक पार्टियों से कुछ सवालों के जवाब मांगे थे। विधि आयोग ने पूछा था कि क्या एक साथ चुनाव कराना किसी तरह से संविधान के मूलभूत ढांचे के साथ छेड़छाड़ है।
सत्र
सरकार ने बुलाया है संसद का विशेष सत्र
बता दें कि 31 अगस्त को संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने ट्वीट कर जानकारी दी थी कि 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है।
उन्होंने कहा था, "संसद का विशेष सत्र (17वीं लोकसभा का 13वां सत्र और राज्यसभा का 261वां सत्र) 18 से 22 सितंबर तक चलेगा। इस दौरान 5 बैठकें होंगी। अमृत काल के बीच आयोजित होने वाले इस विशेष सत्र के दौरान संसद में सार्थक चर्चा को लेकर आशान्वित हैं।"
कानून
अगर 'एक देश, एक चुनाव' पर कानून बना तो क्या होगा?
अगर 'एक देश, एक चुनाव' पर कानून बना तो सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव एक साथ ही कराए जाएंगे।
वर्तमान में विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक निश्चित कार्यकाल (सामान्यत: 5 साल) के बाद होते हैं। जैसे इस साल के अंत में 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और फिर अगले साल लोकसभा चुनाव होंगे।
अगर कानून बना तो राज्य और केंद्र सरकार के लिए चुनाव साथ-साथ ही होंगे।
विरोध
कांग्रेस ने किया सत्र का विरोध
कांग्रेस ने संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने का विरोध किया है।
लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा, "ऐसी क्या इमरजेंसी है, क्योंकि शीतकालीन सत्र तो होना है। पता नहीं सरकार की क्या मंशा है। चुनाव के चलते ये सरकार नया-नया कुछ तरीका अपनाएगी। लोगों को गुमराह करने की कोशिश करेगी। आम लोगों की तकलीफ का मुद्दा हटाने के लिए ये हर संभव कोशिश ये लोग करेंगे।"
चुनाव
न्यूजबाइट्स प्लस
आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ ही हुए थे। हालांकि, 1968 और 1969 में कई राज्यों की विधानसभाएं समय से पहले भंग कर दी गई थीं।
इसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई थी। इस वजह से एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव की परंपरा टूट गई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार इसके पक्ष में बयान दे चुके हैं।