इलाहाबाद हाई कोर्ट का अंतर-धार्मिक जोड़े के पक्ष में फैसला, कहा- मर्जी से जीने का हक
बुधवार को एक अंतर-धार्मिक जोड़े के पक्ष में फैसला सुनाते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने महिला को उसके पति के साथ रहने की इजाजत दे दी। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि महिला बालिग है और उसे अपनी शर्तों पर जीवन जीने का हक है। कोर्ट ने महिला के पति के खिलाफ दायर की गई FIR को रद्द करने और जोड़े को सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश भी दिया है। महिला के पिता ने ये FIR दर्ज कराई थी।
क्या है पूरा मामला?
एटा की 21 वर्षीय शिखा ने हाल ही में सलमान नामक एक मुस्लिम युवक से शादी की थी। हालांकि उसके पिता ने सलमान पर शिखा का अपहरण करके उससे जबरदस्ती शादी करने का आरोप लगाया और 27 सितंबर को उसके खिलाफ FIR दर्ज कराई। इसके बाद 7 दिसंबर को एटा के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने शिखा को नाबालिग मानते हुए उसकी कस्टडी बाल कल्याण समिति को सौंप दी, जिसने शिखा की मर्जी के खिलाफ उसे उसके परिजनों को सौंप दिया।
कोर्ट ने कहा- शिखा को बिना किसी पाबंदी के स्वतंत्र रहने का हक
बाल कल्याण समिति के इस फैसले के बाद सलमान ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की और इसी पर सुनवाई करते हुए आज कोर्ट ने शिखा को उसके पति को सौंपने का आदेश जारी किया। कोर्ट ने कहा, "उसे (शिखा) अपनी शर्तों पर जीवन जीने और बिना किसी पाबंदी और तीसरे पक्ष की बाधा के अपनी मर्जी से स्वतंत्र रहने का अधिकार है। उसने कहा है कि वह अपने पति के साथ रहना चाहती है।"
आदेश जारी करने से पहले बेंच ने की शिखा से बातचीत
जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की बेंच ने अपना ये आदेश जारी करने से पहले खुद शिखा से बात की जिसने ये कहा कि उसने अपनी मर्जी से सलमान से शादी की है। इसके अलावा शिखा ने खुद को बालिग साबित करने के लिए अपना स्कूल प्रमाण पत्र भी दिखाया जिसमें उसकी जन्म तिथि 4 अक्टूबर, 1999 है। कोर्ट ने एटा के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट और कस्टडी बाल कल्याण समिति को भी लापरवाही के लिए फटकार लगाई।
राष्ट्रीय सुर्खियों में है "लव जिहाद" पर उत्तर प्रदेश सरकार का अध्यादेश
बता दें कि हाई कोर्ट ने ये आदेश ऐसे समय पर जारी किया है जब "लव जिहाद" और धर्मांतरण पर उत्तर प्रदेश सरकार का विवादित अध्यादेश राष्ट्रीय सुर्खियों में है। इस अध्यादेश में बहला-फुसला कर, जबरन या छल-कपट कर, प्रलोभन देकर या विवाह द्वारा धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए प्रावधान किए गए हैं। ऐसा करने पर 10 साल तक की सजा और 25,000 रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
अध्यादेश से अंतर-धार्मिक शादियों में आ रही अड़चनें
इस अध्यादेश में विवाह के लिए धर्म परिवर्तन से संबंधित नियमों को भी कड़ा कर दिया गया है। इसके तहत धर्म परिवर्तन करने के लिए विवाह से दो महीने पहले जिलाधिकारी को इसकी सूचना देनी होगी और मंजूरी मिलने के बाद ही शादी और धर्म परिवर्तन को वैध माना जाएगा। इसका उल्लंघन करने पर सजा का प्रावधान किया गया है। कानूनी विशेषज्ञों और विरोधी पार्टियों ने इस प्रावधान के जरिए अंतर-धार्मिक शादियों को निशाना बनाए जाने की आशंका जताई है।