कच्चे तेल की कीमत में इतिहास की सबसे बड़ी गिरावट, नेगेटिव में पहुंचे दाम
दुनिया के कई देशों में जारी लॉकडाउन के कारण दुनियाभर में कच्चे तेल की मांग घट गई है। इसके चलते अमेरिकी कच्चे तेल की कीमतें इतिहास में पहली बार नेगेटिव हुई है। यानी जीरो से भी नीचे पहुंच गई है। कीमत नेगेटिव होने का मतलब है कि तेल उत्पादक देश अब तेल खरीदने वालों को खुद से पैसे देने को तैयार हैं। उत्पादक देशों को डर है कि अगर तेल नहीं बिका तो उसकी स्टोरेज बड़ी समस्या हो जाएगी।
दुनियाभर के तेल बाजारों पर पड़ा कीमतों में कमी का असर
कच्चे तेल का उत्पादन ज्यादा होने और स्टोरेज की कमी के कारण तेल कंपनियां स्टॉक रखने के लिए किराये पर टैंकर ले रही हैं। इसका असर तेल की कीमतों पर पड़ा और वो जीरो से भी नीचे पहुंच गई। अमेरिकी बेंचमार्क वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट (WTI) में कच्चे तेल के दाम गिरकर माइनस 37.63 डॉलर प्रति बैरल हो गए। सोमवार को कच्चे तेल की कीमत में आई कमी का असर दुनियाभर के तेल बाजारों पर पड़ा।
ब्रेंट की कीमतों में भी दिखी गिरावट
अमेरिकी बाजार में तेल की कीमतों में भारी गिरावट का असर अतंरराष्ट्रीय बेंचमार्क ब्रेंट में भी देखा गया। यहां कच्चे तेल के दामों में 8.9 प्रतिशत की गिरावट देखी गई, जिसके बाद तेल की कीमत घटकर 26 डॉलर प्रति बैरल हो गई।
तेल उत्पादन में कमी को लेकर हुआ था बड़ा समझौता
दुनियाभर में खपत में कमी को देखते हुए कच्चे तेल का उत्पादन कम करने को लेकर बहस जारी है। इस महीने की शुरुआत में ओपेक सदस्य देशों और उसके सहयोगियों ने तेल उत्पादन में 10 प्रतिशत कमी करने की बात पर सहमति जताई थी। बीबीसी के मुताबिक, तेल उत्पादन में इतनी बड़ी कमी करने के लेकर यह ऐसा पहला समझौता था। हालांकि, जानकारों का कहना है कि उत्पादन में कमी से भी मुश्किलें हल नहीं हुई हैं।
इस वजह से नेगेटिव हुई तेल की कीमतें
मई डिलीवरी के सौदे के लिए मंगलवार यानी आज अंतिम देिन है। मंगलवार को तेल के व्यापारियों को भुगतान कर कंपनियों से डिलीवरी लेनी थी, लेकिन मांग नहीं होने के कारण उन्हें अपने पास स्टॉक रखना होता। स्टॉक की समस्या के कारण कोई भी डिलीवरी नहीं लेना चाह रहा। यहां तक कि जिनके पास कच्चा तेल है वो ग्राहकों को तेल खरीदने के लिए पैसे देने को तैयार है। इसी को कच्चे तेल की कीमत नेगेटिव में जाना कहते हैं।
केवल मई महीने के लिए आई है कीमतों में गिरावट
यहां यह बता देेना जरूरी है कि कीमतों में यह गिरावट सिर्फ मई महीने के लिए है। दरअसल, मई के डिलीवरी के सौदे के लिए आज आखिरी दिन होने के कारण कीमतों में यह गिरावट देखी गई है। उदाहरण के जरिये समझने का प्रयास करें तो यह बिल्कुल वैसे है कि कोई दुकानदार किसी दिन अपना स्टॉक खाली करने के लिए सामानों की कीमतों में भारी कटौती कर दे। जून में जब खपत बढ़ेगी तो कीमतें भी बढ़ने लगेंगी।
WTI और ब्रेंट, कच्चे तेल की कीमतों के दो प्रमुख बेंचमार्क
WTI उत्तर अमेरिका में निकलने वाले कच्चे तेल का ग्रेड है। यह ब्रेंट के साथ कच्चे तेल का दूसरा प्रमुख बेंचमार्क है। ब्रेंट को अफ्रीका, यूरोप और पश्चिम एशियाई देशों में उत्पादित होने वाले कच्चे तेल की कीमतों के लिए बेंचमार्क के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। दुनिया में दो तिहाई कच्चे तेल की कीमत ब्रेंट क्रूड बेंचमार्क के तहत तय होती है। अधिकतर भारतीय कंपनियां भी ब्रेंट क्रूड के आधार पर खरीदारी करती है।
क्या भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम होंगी?
कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के बावजूद भारतीय ग्राहकों को पेट्रोल-डीजल की कीमतों में राहत मिलने के आसार नहीं है। पिछले एक महीने से कच्चे तेल की घटती कीमतों के बाद भी भारत में पेट्रोल-डीजल के दाम लगभग एक ही स्तर पर कायम है।