जल्द जानवरों से इंसान कर सकेंगे बातचीत, नया AI मॉडल बना रहे वैज्ञानिक
क्या है खबर?
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ने बीते कुछ समय में मनुष्य के जीवन में कई बदलाव लाए हैं और अब यह तकनीक एक नई दिशा में काम कर रही है।
जानवरों के संचार को समझने के लिए AI का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे भविष्य में मनुष्य और जानवरों के बीच बातचीत करना संभव हो सकता है।
हाल ही में नेचरएलएम नामक एक नए AI सिस्टम ने जानवरों के संचार को समझने में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है।
सफलता
जानवरों के संचार को समझने में सफलता
नेचरएलएम नामक AI मॉडल जानवरों की प्रजाति पहचानने के साथ-साथ उनके संचार के पैटर्न, जैसे उनकी उम्र या संकट के संकेतों को भी डिकोड करने में सक्षम है।
शोध प्रकृति से जुड़ने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है और मनुष्यों को जानवरों के व्यवहार के प्रति और अधिक सहानुभूति विकसित करने का अवसर प्रदान करेगा।
यह विकास हमारे पर्यावरणीय रिश्ते को बदल सकता है और जानवरों के अधिकारों और सुरक्षा में भी परिवर्तन ला सकता है।
पहल
जानवरों से जुड़ने के लिए नई तकनीकी पहल
अर्थ स्पीशीज प्रोजेक्ट का उद्देश्य है कि जानवरों के संचार को समझने से हम उनके साथ गहरे और अधिक बेहतर तरीके से जुड़ सकें।
इस परियोजना के CEO केटी जकारियन ने हाल ही में एक सम्मेलन में कहा कि जानवरों के संचार को डिकोड करने से जैव विविधता संकट से निपटने के लिए मनुष्यों को बेहतर समझ मिलेगी।
इसके द्वारा प्राप्त ज्ञान से जानवरों के अधिकारों को लेकर समाज का दृष्टिकोण बदल सकता है।
चुनौतियां
जानवरों की भाषा को समझने में आने वाली चुनौतियां
जानवरों के संचार को समझना एक कठिन चुनौती है, क्योंकि उनकी भाषा मानव भाषाओं से बहुत ही अलग होती है।
शोधकर्ता सीमित सुरागों से काम कर रहे हैं और AI मॉडल के माध्यम से नए पैटर्न और अर्थों की पहचान करने की कोशिश कर रहे हैं।
हालांकि, नेचरएलएम जैसे मॉडल पहले से ही जानवरों के संवाद में कुछ पैटर्न पहचानने में सफल हो चुके हैं, जो इस दिशा में नई उम्मीदें पैदा करते हैं।
समाधान
AI के जरिए पर्यावरणीय संकटों का समाधान
AI तकनीक का उपयोग पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने के लिए बढ़ रहा है।
उदाहरण के तौर पर, माइक्रोसॉफ्ट द्वारा विकसित स्पैरो सिस्टम का उपयोग जैव विविधता की निगरानी के लिए किया जा रहा है। यह सौर ऊर्जा से संचालित सेंसर और ध्वनिक मॉनिटर का उपयोग करता है, जिससे दूरदराज क्षेत्रों में जैव विविधता की स्थिति का मूल्यांकन किया जा सके।
हालांकि, इन AI तकनीकों की ऊर्जा खपत पर सवाल भी उठ रहे हैं।