डीपफेक क्या है, जिसे माइक्रोसॉफ्ट के प्रेसिडेंट ने AI के लिए बताई सबसे बड़ी चिंता
टेक जगत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) छाया हुआ है। इस टेक्नोलॉजी के लाभ के साथ इसके नुकसानों को लेकर भी चिंता जताई जा रही है। इसके विकास और नियमन के लिए कानूनों की मांग भी तेज है। अब माइक्रोसॉफ्ट के प्रेसिडेंट ब्रैड स्मिथ ने कहा कि AI को लेकर उनकी सबसे बड़ी चिंता डीप फेक यानी कि असली की तरह दिखने वाले नकली या झूठे कंटेंट हैं। जान लेते हैं क्या है डीफ फेक और स्मिथ की चिंता।
असली और नकली कंटेंट के बीच अंतर पता लगाना बहुत जरूरी - ब्रैड स्मिथ
स्मिथ ने अपने एक भाषण में यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने का आह्वान किया कि असली या नकली फोटो और वीडियो के बीच अंतर पता लगाना जरूरी है। ये तब और जरूरी है जब इन तस्वीरों और वीडियो को गलत उद्देश्य, लोगों को धोखा देने के लिए तैयार किया गया हो। स्मिथ ने फिजिकल सिक्योरिटी, साइबर सिक्योरिटी और नेशनल सिक्योरिटी दायित्वों के साथ AI के सबसे महत्वपूर्ण रूपों के लिए भी लाइसेंस देने का आह्वान किया।
नो योर कस्टमर स्टाइल का उपयोग करें AI डेवलपर्स - स्मिथ
माइक्रोसॉफ्ट के प्रेसिडेंट ने पॉवरफुल AI मॉडल के डेवलपर्स के लिए 'नो योर कस्टमर' स्टाइल सिस्टम का उपयोग करने का आग्रह किया है, जिससे कि जनता को सूचित किया जा सके कि AI क्या कंटेंट बना रहा है। उनके मुताबिक, इससे लोग नकली और असली फोटो-वीडियो की पहचान कर सकेंगे। अमेरिकी संसद में भी AI से जुड़े ऐसे प्रस्तावों पर विचार किया जा रहा है जो लोगों के जीवन या आजीविका को खतरे में डाल सकते हैं।
क्या है डीपफेक?
डीप फेक, 'डीप लर्निंग' और 'फेक' का मिलाजुला रूप है। इसके तहत डीप लर्निंग नामक एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) सॉफ्टवेयर का उपयोग कर नकली फोटो, वीडियो आदि कंटेंट तैयार किया जाता है। AI के एल्गोरिदम का प्रयोग कर किसी व्यक्ति द्वारा बोले गए शब्दों, शरीर की गतिविधि या अभिव्यक्ति को दूसरे व्यक्ति पर आसानी के साथ स्थानांतरित किया जाता है। इससे तैयार कंटेंट में ये पता करना बहुत ही कठिन हो जाता है कि फोटो/वीडियो असली है या डीप फेक।
इस तरह होता है डीपफेक का इस्तेमाल
डीप फेक का मामला सबसे पहले वर्ष 2017 में आया जब सोशल मीडिया साइट 'रेडिट' (Reddit) पर 'डीप फेक' नाम के एक अकाउंट पर एक यूजर ने कई मशहूर हस्तियों की आपत्तिजनक डीप फेक तस्वीरें पोस्ट की। इसके बाद डीप फेक के कई मामले सामने आए। डीप फेक का प्रयोग चुनावों में जातिगत द्वेष, चुनाव परिणामों की अस्वीकार्यता या अन्य प्रकार की गलत सूचनाओं के लिये किया जा सकता है, जो एक लोकतंत्र के लिये बड़ी चुनौती बन सकता है।