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    ब्रिटिश कंपनी बनाएगी चंद्रमा के लिए सैटेलाइट्स का बेड़ा, ब्रम्हांड का बना सकेगा नक्शा 
    ब्रिटिश कंपनी बनाएगी चंद्रमा के लिए सैटेलाइट्स का बेड़ा (प्रतीकात्मक तस्वीर: पिक्साबे)

    ब्रिटिश कंपनी बनाएगी चंद्रमा के लिए सैटेलाइट्स का बेड़ा, ब्रम्हांड का बना सकेगा नक्शा 

    लेखन बिश्वजीत कुमार
    Apr 09, 2025
    02:40 pm

    क्या है खबर?

    ब्रिटिश स्पेस कंपनी ब्लू स्काईज स्पेस सैटेलाइट्स का ऐसा बेड़ा डिजाइन कर रही है, जो चंद्रमा की परिक्रमा कर सकेगा और ब्रह्मांड की शुरुआती तस्वीरें भेज सकेगा।

    इस प्रोजेक्ट को इटली की अंतरिक्ष एजेंसी ने 2 लाख यूरो (लगभग 1.90 करोड़ रुपये) के बजट से मंजूरी दी है। इसका मकसद ऐसे रेडियो संकेतों का पता लगाना है, जो ब्रह्मांड की शुरुआत में बने थे।

    यह धरती से नहीं हो सकता, लेकिन चंद्रमा का सुदूर भाग इसके लिए उपयोगी जगह है।

    अध्ययन 

    चंद्रमा के पीछे से होंगे रेडियो संकेतों के अध्ययन 

    ब्लू स्काईज ऐसे छोटे सैटेलाइट तैयार करेगा, जो 'क्यूबसैट' होंगे और सरल तकनीक से लैस होंगे।

    इन्हें चंद्रमा की कक्षा में तैनात किया जाएगा, ताकि ये FM रेडियो रेंज में आने वाले बेहद पुराने संकेतों को पकड़ सकें।

    पृथ्वी पर मानवीय रेडियो तरंगों के शोर के कारण ये संकेत नहीं मिल पाते, लेकिन चंद्रमा का पिछला हिस्सा इस शोर से पूरी तरह सुरक्षित है और यही वजह है कि वहां से बेहतर रिसेप्शन संभव होगा।

    उद्देश्य

    प्रारंभिक ब्रह्मांड को समझने की मिलेगी झलक 

    इस परियोजना का उद्देश्य बिग बैंग के कुछ लाख साल बाद वाले समय को समझना है, जब ब्रह्मांड में सिर्फ हाइड्रोजन गैस मौजूद थी और तारे अभी बने नहीं थे।

    इन रेडियो संकेतों के जरिए वैज्ञानिक ब्रह्मांड के 'अंधकार युग' को समझ पाएंगे।

    इससे यह भी पता चलेगा कि पहली संरचनाएं कैसे बनीं और ब्रह्मांड का विकास किस तरह हुआ था। यह शोध खगोल विज्ञान में एक नई दिशा खोलेगा।

    मिशन

    नासा की योजनाओं से मिलेगा साथ

    नासा भी चंद्रमा पर रेडियो टेलीस्कोप लगा चुकी है और एक बड़ा प्रोजेक्ट भी योजना में है, जिसमें विशाल तारों की जाली बनाई जाएगी।

    ब्लू स्काईज अपने सैटेलाइट्स को यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के 'मूनलाइट' कार्यक्रम से जोड़ना चाहता है, ताकि संचार और नेविगेशन में मदद मिले।

    इसका फायदा यह होगा कि सैटेलाइट्स की सही स्थिति बनी रहेगी और डाटा आसानी से पृथ्वी पर भेजा जा सकेगा। यह पहल विज्ञान और तकनीक के लिए अहम साबित हो सकती है।

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