क्यों एक बार फिर से विवादों में आया मोदी सरकार का राफेल विमान सौदा?
फ्रांस और भारत सरकार के बीच राफेल लड़ाकू विमान खरीद का सौदा एक बार फिर से विवादों में है। इस बार इसका कारण बना है फ्रांस सरकार का मामले में जांच शुरू करने का फैसला। मामले में कांग्रेस ने सरकार पर हमले तेज कर दिए हैं और कहा है कि सौदे में घोटाले के उसके आरोप सही हैं। आइए आपको समझाते हैं ये पूरा मामला क्या है और क्यों इसे लेकर कांग्रेस और भाजपा एक बार फिर से आमने-सामने हैं।
क्या है विवादित लड़ाकू विमान सौदा?
मोदी सरकार ने सितंबर, 2016 में फ्रांस सरकार के साथ 59,000 करोड़ रुपये में 36 राफेल विमान खरीदने का सौदा किया था। ये सौदा करने के लिए 126 राफेल विमान खरीदने के UPA सरकार के सौदे को रद्द किया गया था और नए सौदे में सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) की जगह अनिल अंबानी की कंपनी को राफेल विमान बनाने वाले कंपनी डसॉल्ट का भारतीय पार्टनर चुना गया था। इस कंपनी को विमान बनाने का कोई अनुभव नहीं है।
मामले में क्या आरोप लगाए गए?
तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सौदे में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे और अनिल अंबानी को गलत तरीके से फायदा पहुंचाने का दावा किया था। उन्होंने प्रधानमंत्री पर हमले के लिए 'चौकीदार चोर है' नारे का इस्तेमाल भी किया था और 2019 लोकसभा चुनाव इन्हीं आरोपों के इर्द-गिर्द लड़ा था। हालांकि इस चुनाव में कांग्रेस की बुरी तरह से हार हुई और जनता ने इसे बड़ा मुद्दा नहीं माना।
मामले में सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?
सौदे की जांच कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में भी याचिकाएं दायर की गईं थीं जिन्हें कोर्ट ने दिसंबर, 2018 में खारिज कर दिया था। कुछ नए सबूत सामने आने के बाद एक बार फिर से पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गईं जिन्हें नवंबर, 2019 में खारिज कर दिया गया। इसके अलावा देश के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने भी अपनी जांच के बाद मामले में भ्रष्टाचार के आरोपों को खारिज किया था।
अब क्यों विवादों में आया सौदा?
सुप्रीम कोर्ट और CAG से सरकार को क्लीन चिट के बाद सौदे पर विवाद थम गया था, लेकिन अब फ्रांसीसी पत्रिका मीडियापार्ट की एक रिपोर्ट ने फिर से हलचल बढ़ा दी है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि फ्रांस की वित्तीय अपराध शाखा PNF ने मामले में कथित भ्रष्टाचार की जांच के लिए एक जज की नियुक्ति की है। मामले में पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद की भूमिका की जांच भी होगी जो सौदे के समय राष्ट्रपति थे।
बिचौलिये को 10 लाख यूरो देने के आरोप भी आए थे सामने
इससे पहले अप्रैल में भी मीडियापार्ट ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि डसॉल्ट ने भारत सरकार के साथ सौदा होने के ठीक बाद एक भारतीय बिचौलिये को 10 लाख यूरो (लगभग 8.6 करोड़ रुपये) का भुगतान किया था। इसके अलावा एक रिपोर्ट में बताया गया था कि PNF के पूर्व अध्यक्ष ने अपने सहकर्मियों की आपत्ति के बावजूद इस सौदे में हुए कथित भ्रष्टाचार के सबूतों की जांच को बीच में ही बंद कर दिया था।
नए खुलासों के बाद कांग्रेस और विपक्ष ने क्या कहा?
इन नए खुलासों के बाद कांग्रेस और राज्यसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि मामले में राहुल गांधी के आरोप सही साबित हुए हैं। राहुल ने भी ट्वीट कर प्रधानमंत्री मोदी पर मामले में अपने कारोबारी दोस्तों को बचाने का आरोप लगाया है। कांग्रेस ने मामले में संयुक्त संसदीय समिति (JPC) जांच की मांग की है। माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) महासचिव सीताराम येचुरी ने भी मामले में JPC गठित करने की मांग की है।
केंद्र सरकार और भाजपा ने नए आरोपों पर क्या कहा?
फ्रांस सरकार के मामले में जांच का आदेश देने के बावजूद भारत सरकार ने अभी तक मामले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है और ये एक तरह से चौंकाने वाली बात है। वहीं भाजपा ने सौदे पर फिर से सवाल उठाने के लिए कांग्रेस पर निशाना साधा है। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, "कांग्रेस फिर से राफेल सौदे के बारे में बात क्यों कर रही है? सुप्रीम कोर्ट और CAG को मामले में कुछ भी गलत नहीं मिला है।"