#NewsBytesExplainer: खत्म हुआ देश पर 10 साल राज करने वाला UPA, जानें इसका इतिहास
क्या है खबर?
कांग्रेस समेत 26 विपक्षी पार्टियों ने आगामी लोकसभा चुनाव से पहले एक नया गठबंधन बनाया है। इस गठबंधन को इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस (INDIA) नाम दिया गया है।
मंगलवार को इस गठबंधन की आधिकारिक घोषणा की गई, जिसके साथ ही कांग्रेस के नेतृत्व वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) भारतीय राजनीति में इतिहास बन गया।
आइए जानते हैं कि UPA के गठन की जरूरत क्यों पड़ी थी और इसका क्या इतिहास रहा।
गठन
कब हुआ था UPA का गठन?
2004 के लोकसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। इस चुनाव में भाजपा और उसके सहयोगी पार्टियों की 181 सीटें और कांग्रेस और उसकी समर्थक पार्टियों को 218 सीटों पर जीत मिलीं थी।
केंद्र में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस के नेतृत्व में UPA का गठन हुआ था। UPA की सरकार बनने में वाम पार्टियों की अहम भूमिका रही थी। वाम पार्टियां UPA में शामिल नहीं हुई थीं, लेकिन उन्होंने बाहर से समर्थन दिया था।
कितनी पार्टी
UPA के गठन में कितनी पार्टियां हुई थीं शामिल?
कांग्रेस के नेतृत्व वाले UPA के गठन के समय कुल 15 पार्टियां एक साथ आई थीं।
इनमें राष्ट्रीय जनता दल (RJD), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP), द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK), लोक जनशक्ति पार्टी (LJP), तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS), पट्टाली मक्कल काटची, झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), मरुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (MDMK), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML), ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM), पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP), रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (RPI) और केरल कांग्रेस जैसी पार्टियां शामिल थीं।
सरकार
वामपंथी पार्टियों ने मझधार में छोड़ दिया था UPA-1
UPA की पहली सरकार में वाम पार्टियों के साथ सरकार चलाने के लिए न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाया गया था। UPA-1 की सरकार में डॉ मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने थे और यह सरकार 2004 से 2009 तक पूरे 5 साल चली थी।
इसी बीच 2008 में वाम पार्टियों ने अमेरिका के साथ परमाणु संधि का विरोध करते हुए अपना समर्थन वापस ले लिया था, लेकिन समाजवादी पार्टी जैसी कई पार्टियों के बाहर से समर्थन देने से सरकार बच गई थी।
UPA-2
2009 चुनाव के बाद बनी UPA-2 की सरकार
2009 के लोकसभा चुनाव में भी किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। UPA को इस चुनाव में 206 सीटों पर जीत हासिल हुई थी, जबकि भाजपा का राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) 116 सीटों पर ही सिमट गया था।
इसके बाद बाहर से समर्थन लेकर UPA-2 की सरकार बनी और मनमोहन सिंह ने फिर प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इस सरकार के दौरान हुए कई घोटाले हुए कांग्रेस की खूब किरकिरी हुई।
जानकारी
UPA-2 सरकार के दौरान ये घोटाले आए थे सामने
UPA सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान सत्यम घोटाला, 2G स्पेक्ट्रम घोटाला, आदर्श घोटाला, कॉमनवेल्थ घोटाला और कोयला घोटाला आदि सामने आए थे। घोटालों के दाग से बचने के लिए 2014 लोकसभा चुनाव में कई पार्टियों ने UPA से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ा।
स्थिति
2014 और 2019 लोकसभा चुनाव में UPA की बड़ी हार
2014 के लोकसभा चुनाव में UPA सिर्फ 60 सीट ही जीत पाई। भाजपा ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई और तब से उसी की सरकार है।
2019 चुनाव में UPA 91 सीटों पर जीती, जिसमें से कांग्रेस की 52 सीटें रहीं।
UPA ने 2015 से 2023 के बीच में हुए विधानसभा चुनावों में सिर्फ 3 राज्यों में ही जीत दर्ज की। मौजूद समय में UPA (अब INDIA) की 7 राज्यों में सरकार है।
क्यों पड़ी जरूरत
क्यों पड़ी UPA का नाम बदलने की जरूरत?
विपक्षी पार्टियों ने UPA को नया स्वरूप देने और नए नामकरण INDIA के पीछे कई तर्क दिये हैं। विपक्षी नेताओं ने कहा कि नए नाम के जरिए विपक्ष आसानी से 'INDIA बनाम NDA' की लड़ाई लड़ सकेगा। इस गठबंधन की टैगलाइन भी 'भारत जीतेगा' रखी गई है।
इसके अलावा घोटालों के कारण UPA-2 की जो छवि लोगों के मन में है, उससे पीछा छुड़ाना भी नाम बदलने का एक कारण हो सकता है।