#NewsBytesExplainer: चंपई सोरेन ने किया नई पार्टी बनाने का ऐलान, कितनी बढ़ेंगी हेमंत की मुश्किलें?
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने बीते कई दिनों से जारी अटकलों के बीच अपने भविष्य को लेकर बड़े फैसले का ऐलान कर दिया है। उन्होंने कहा है कि वे नई पार्टी बनाएंगे। पहले उनके भाजपा में जाने की चर्चाएं थीं। कहा जा रहा है कि भाजपा से बात नहीं बनने के कारण चंपई ने खुद की पार्टी बनाने का ऐलान किया है। आइए जानते हैं इस फैसले का क्या असर हो सकता है।
JMM के वोटबैंक पर सेंध मारेंगे चंपई?
चंपई झारखंड की सबसे बड़ी आदिवासी जाति संथाल से हैं। झारखंड में 26 प्रतिशत आदिवासी आबादी हैं, जिनमें से 32 प्रतिशत इसी समाज की है। इसे झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का वोटबैंक माना जाता है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी इसी समाज से हैं। चंपई की गिनती बड़े संथाल नेताओं में होती है और कोल्हान में उनका मजबूत प्रभाव भी माना जाता है। ऐसे में यहां की 14 सीटों पर चंपई का कोई मजबूत कदम हेमंत को झटका दे सकता है।
JMM के असंतुष्ट नेताओं को मिलेगा विकल्प?
झारखंड में इस साल विधानसभा चुनाव होना हैं। आमतौर पर देखा जाता है कि चुनावों से पहले नेता दलबदल करते हैं। ऐसे में JMM के असंतुष्ट नेताओं को चंपई की पार्टी के तौर पर एक विकल्प मिल सकता है। पहले भी कई बार JMM में बगावत की खबरें आई हैं। ऐसे में विधानसभा चुनाव में किसी नेता को टिकट कटा तो उसके पास 'सोरेन परिवार' में रहते हुए ही दूसरा विकल्प होगा।
आदिवासी अस्मिता के अब 2 दावेदार
JMM ने हेंमत की गिरफ्तारी को लोकसभा चुनाव के दौरान आदिवासी अस्मिता से जोड़ा था। सहयोगी पार्टियों के नेताओं ने भी कहा था कि ये भाजपा ने एक आदिवासी मुख्यमंत्री को गिरफ्तार करवा दिया है। चंपई अगर भाजपा में शामिल हो जाते तो आदिवासी अस्मिता को लेकर मुकाबला हेमंत और भाजपा के बीच होता। हालांकि, अब चंपई के अलग पार्टी बना लेने से आदिवासी अस्मिता का मुद्दा भी हेमंत के लिए मुश्किलों भरा हो सकता है।
चंपई के लिए क्या हैं चुनौतियां?
चंपई के लिए आगे का रास्ता काफी मुश्किल है। चंपई की नाराजगी के बावजूद हेमंत ने उन्हें मनाया तक नहीं, बल्कि चंपई के समर्थक विधायकों को विश्वास में लिया। माना जाता है कि चंपई की भाजपा में जाने की पूरी तैयारी थी, लेकिन हेमंत के इस कदम से वो अपने समर्थन में विधायकों के नंबर नहीं दिखा सके। यानी हेमंत ने चंपई समर्थक विधायकों को मना लिया। ऐसे में चंपई को नाराज विधायकों के समर्थन पर भी संदेह है।
जानकारों का क्या कहना है?
राजनीतिक विश्लेषक मृगांक शेखर ने आज तक पर लिखा है कि चंपई के पास चुनावी तैयारी के लिए बिलकुल भी वक्त नहीं है। शेखर नई पार्टी बनाने वाले बाबूलाल मरांडी और कैप्टन अमरिंदर सिंह का हवाला देते हुए लिखते हैं कि चंपई के लिए आगे की राह मुश्किल है। शेखर लिखते हैं कि हो सकता है चंपई कोल्हान क्षेत्र में JMM को कुछ नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिसके फायदा भाजपा को हो सकता है।
चंपई ने खुला रखा है गठबंधन का विकल्प
चंपई ने नई घोषणा के साथ ही संभावित गठबंधन के दरवाजे भी खुले रखे हैं। उन्होंने कहा था, "मैंने तय किया है कि मैं राजनीति से संन्यास नहीं लूंगा और अपनी खुद की पार्टी बनाऊंगा। इसके साथ ही अगर मुझे कोई ऐसा दोस्त मिलता है, जो आदिवासियों और दलितों के हित की बात करता है तो मैं उनके साथ आगे बढ़ूंगा। जब मैं कुछ नहीं था, तब भी मैंने आदिवासियों-दलितों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई और संघर्ष किया।"
क्यों नाराज बताए जाते हैं चंपई?
दरअसल, इसी साल फरवरी में जमीन घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने हेमंतको गिरफ्तार कर लिया था। इसके बाद हेमंत ने चंपई को मुख्यमंत्री बनाया था। हालांकि, जून में जेल से बाहर आने के बाद चंपई को इस्तीफा देना पड़ा और हेमंत फिर मुख्यमंत्री बन गए। माना जाता है कि चंपई विधानसभा चुनाव तक मुख्यमंत्री बने रहना चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कथित तौर पर इससे वे नाराज बताए जाते हैं।