वात दोष को संतुलन में कर सकते हैं ये योगासन, ऐसे करें अभ्यास
क्या है खबर?
आयुर्वेद के मुताबिक शरीर के वात, पित्त और कफ दोष का संतुलन में होना जरूरी है क्योंकि इनके असंतुलन से शरीर में कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
खासकर, जब बात वात दोष की हो तो इसका असंतुलन शरीर को कई गंभीर शारीरिक और त्वचा संबंधित समस्याओं का घर बना सकता है।
आप चाहें तो कुछ योगासनों की मदद से वात दोष को संतुलन में कर सकते हैं। आइए उन योगासनों के अभ्यास का तरीका जानते हैं।
#1
वृक्षासन
वृक्षासन का अभ्यास करने के लिए सबसे पहले योगा मैट पर दोनों पैरों को आपस में जोड़ें और सावधान मुद्रा में खड़े हो जाएं, फिर शरीर का संतुलन बनाते हुए हाथों की मदद से बायां तलवा दायीं जांघ पर रख लें।
अब अपने हाथों को सिर के ऊपर ले जाते हुए नमस्कार की अवस्था में आ जाएं।
थोड़ी देर इसी अवस्था में रहकर धीरे-धीरे प्रारंभिक अवस्था में आएं और शरीर को आराम देकर आसन को दोहराएं।
#2
ताड़ासन
ताड़ासन के लिए पहले योगा मैट पर सावधान मुद्रा में खड़े हो जाएं, फिर अपने दोनों हाथों को आसमान की ओर सीधा उठाकर अपनी उंगलियों को आपस में फंसा लें।
अब धीरे-धीरे सांस लेते हुए पंजों के बल खड़े हों और शरीर को ऊपर की ओर खीचने की कोशिश करें। जब शरीर पूरी तरह तन जाए तो इस मुद्रा में कुछ देर बने रहें और सांस लेते रहें।
अंत में सांस को धीरे-धीरे छोड़ते हुए प्रारंभिक अवस्था में आ जाएं।
#3
बालासन
बालासन के अभ्यास के लिए पहले वज्रासन की मुद्रा में बैठें और फिर गहरी सांस लेते हुए हाथों को ऊपर उठाएं।
अब सांस छोड़ते हुए धीरे-धीरे आगे की ओर झुकें और माथे को जमीन से सटाएं। इस अवस्था में दोनों हाथ सामने, माथा जमीन से टिका हुआ और छाती जांघों पर रहेगी।
कुछ सेकंड इसी मुद्रा में रहकर सामान्य रूप से सांस लेते रहें, फिर सांस लेते हुए वापस वज्रासन की मुद्रा में आएं और सामान्य हो जाएं।
#4
हलासन
हलासन के अभ्यास के लिए पहले योगा मैट पर पीठ के बल सीधे लेट जाएं और अपने हाथों को शरीर से सटाकर रखें।
अब सांस लेते हुए पैरों को 90 डिग्री तक ऊपर उठाएं और फिर सांस छोड़ते हुए टांगों को धीरे-धीरे सिर के ऊपर से पीछे की ओर ले जाएं। इस दौरान हाथों को कमर से हटाकर जमीन पर सीधा ही रखें।
इसके बाद सांस लेते हुए धीरे-धीरे वापस प्रारंभिक अवस्था में आ जाएं।