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इस जगह पर है धरती की सबसे साफ हवा

इस जगह पर है धरती की सबसे साफ हवा

लेखन अंजली
Jun 10, 2020
05:56 pm

क्या है खबर?

मानवीय गतिविधियों से पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा है, ये किसी से छिपा नहीं है। ज्यादातर शहरी इलाकों की हवा सांस लेने लायक नहीं रही है, लेकिन दुनिया में कुछ इलाके ऐसे भी हैं जो इंसान के प्रभाव से अछूते हैं और फलस्वरूप वहां की हवा और जल स्वच्छ हैं। आज हम आपको एक ऐसी ही जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जहां की हवा दुनिया में सबसे अधिक स्वच्छ है।

जगह

शोधकर्ताओं ने इस जगह को माना धरती की साफ हवा वाली जगह

अमेरिका की कोलोराडो स्‍टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार, अंटार्कटिका महासागर या सदर्न ओसियन (Southern Ocean) के ऊपर बहने वाली हवा में एयरोसॉल पार्टिकल्‍स नहीं हैं। एयरोसॉल पार्टिकल्‍स ईंधन जलाने, फसलें उगाने, फर्टिलाइजर्स का इस्‍तेमाल करने, कूड़ा-कूचरा फेंकने जैसी इंसानी गतिविधियों से बनते हैं और इनसे प्रदूषण होता है। ये एयरोसॉल ठोस, द्रव और गैस तीनों स्‍वरूपों में पाए जाते हैं जो हवा में तैरते रहते हैं और पर्यावरण और मौसम दोनों को प्रभावित करते हैं।

खोज

इस चीज का पता लगाना चाहते थे वैज्ञानिक

वैज्ञानिकों की टीम को यह पता लगाना था कि मानवीय प्रदूषण के कण कितनी दूर तक पहुंच सकते हैं, इसलिए उन्होंने तस्मानिया से दक्षिणी महासागर की ओर जाने वाले रास्ते की हवा में प्रदूषकों की मात्रा को मापने का फैसला किया। इसके बाद उन्होंने ऊपरी सतह में कणों की संख्या का आंकलन किया, जो वो हवा जो समुद्र की सतह से शुरू होती है और निचले बादलों से छह फीट से अधिक तक जाती है।

बयान

इस तरह वैज्ञानिकों ने जाना हवा साफ होने का कारण

वैज्ञानिकों ने हवा में मौजूद बैक्‍टीरिया के जरिए पता लगाने की कोशिश की कि वहां की हवा में क्‍या है। इसमें पता चला कि उसमें बाकी महाद्वीपों के माइक्रोऑर्गनिज्‍म्‍स नहीं हैं। न्‍यूजवीक की रिपोर्ट के मुताबिक, शोध में शामिल वैज्ञानिक थॉमस हिल ने बताया कि एयरोसॉल्‍स की प्रॉपर्टीज को कंट्रोल करने वाले सदर्न ओसियन के बादल ओसियन बायोलॉजिकल प्रोसेस के जरिए मजबूती से जुड़े हैं और दक्षिणी महाद्वीप के माइक्रोऑर्गनिज्‍म्‍स के प्रसार से अंटार्कटिका को अछूता रखते हैं।

जानकारी

एक तरह की महामारी है वायु प्रदूषण

वैज्ञानिकों और स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञों के मुताबिक, वायु प्रदूषण एक महामारी की तरह है जिसकी वजह से हर साल करीब 70 लाख लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है क्योंकि वायु प्रदूषण से दिल की बीमारी, फेफड़ों का कैंसर आदि होने का खतरा बढ़ जाता है। इसी को मद्देनजर रखते हुए इस शोध के पहले वैज्ञानिक दुनियाभर के समुद्रों के ऊपर बहने वाली हवा पर भी शोध कर चुके हैं, लेकिन हर जगह उन्‍हें दूसरी जगहों के माइक्रोब्‍स मिले।