#NewsBytesExplainer: बांग्लादेश में आम चुनाव कैसे होते हैं, भारत की क्यों रहेगी नजर?
क्या है खबर?
बांग्लादेश में 12 फरवरी, 2026 को आम चुनाव होंगे। देश के मुख्य चुनाव आयुक्त AMM नासिरउद्दीन ने इसका ऐलान किया है। पिछले साल बांग्लादेश में हुई हिंसा और पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के तख्तापलट के बाद ये पहले चुनाव होंगे। इन चुनावों में शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग हिस्सा नहीं ले पाएगी। बांग्लादेश के लोकतंत्र के साथ-साथ ये चुनाव भारत के नजरिए से भी अहम है। आइए जानते हैं क्यों चुनावों पर भारत की नजर रहेगी।
चुनाव
सबसे पहले चुनावी कार्यक्रम जानिए
उम्मीदवार 29 दिसंबर तक नामांकन दाखिल कर पाएंगे, जिनकी 4 जनवरी तक जांच की जाएगी। अगर कोई नामांकन वापस लेना चाहता है, तो 20 जनवरी तक ले सकेगा। 21 जनवरी को प्रत्याशियों को चुनाव चिन्ह आवंटित किए जाएंगे और 10 फरवरी तक प्रचार किया जा सकेगा। इसके बाद 12 फरवरी को मतदान होगा। इसी दिन संवैधानिक और राजनीतिक सुधारों से जुड़े 'जुलाई चार्टर' पर जनमत संग्रह भी किया जाएगा।
तरीका
बांग्लादेश में कैसे होते हैं चुनाव?
बांग्लादेश में आम चुनाव मोटा-मोटी भारत के लोकसभा चुनाव जैसे ही होते हैं। सबसे ज्यादा वोट पाने वाला उम्मीदवार जीतता है। बहुमत मिलने वाली पार्टी या गठबंधन के नेता अपने नेता को चुनते हैं, जो प्रधानमंत्री बनता है। बांग्लादेश की संसद में 350 सीटें है, जिनमें से 50 महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। इन 50 सीटों को छोड़कर बाकी 300 सीटों पर हर 5 साल में चुनाव होते हैं। भारत में 2 संसद सदन हैं, लेकिन बांग्लादेश में एक है।
भारत
भारत की क्यों रहेंगी नजरें?
बांग्लादेश के चुनाव कई कारणों से भारत के लिए भी अहम है। बांग्लादेश भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र तक पहुंचने के लिए सबसे महत्वपूर्ण भूमि पुल के रूप में कार्य करता है। बांग्लादेशी क्षेत्र से होते हुए ही असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम तक पहुंच मिलती है। वहीं, बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक गंतव्य है। भारत मशीनरी, कच्चा माल, उपभोक्ता वस्तुएं और सेवाएं निर्यात करता है, जबकि बांग्लादेश से चिकित्सा पर्यटन भी अहम है।
स्थिरता
पूर्वी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में स्थिरता के लिए भी बांग्लादेश अहम
बांग्लादेश में स्थिरता दक्षिण-पूर्व एशिया और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की रणनीतिक स्थिति को मजबूत करती है। हसीना के कार्यकाल में भारत-बांग्लादेश संबंधों का एक महत्वपूर्ण पहलू उग्रवाद-विरोधी गतिविधियों में समन्वय था। उनके कार्यकाल में बांग्लादेश ने उल्फा और NDFB जैसे समूहों पर सख्ती की। 2015 में हुआ भूमि सीमा समझौता भी आपराधिक और आतंकवादी नेटवर्क को सीमित करने में अहम था। ऐसे में बांग्लादेश में अस्थिरता सीमा पर भारत की चिंताएं बढ़ा सकती हैं।
चीन
चीन और बांग्लादेश की बढ़ती नजदीकी
बांग्लादेश में चीन की बढ़ती उपस्थिति भी भारत के लिए चिंता का विषय है। अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस की चीन से नजदीकी किसी से छिपी नहीं है। यूनुस ने सिलीगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक) से लगभग 135 किलोमीटर दूर लालमोनिरहाट एयरबेस को चीनी साझेदारी से फिर से शुरू करने की इच्छा जताई है। भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर ये इलाका अहम है। यहां चीन की संभावित मौजूदगी ने भारत को चिंतित कर दिया है।
परियोजनाएं
बांग्लादेश में अस्थिरता से भारत की कई परियोजनाएं उलझीं
बांग्लादेश में हालिया उथल-पुथल से भारत की कई परियोजनाएं रुक गई हैं। आशुगंज अंतर्देशीय कंटेनर बंदरगाह का काम रुका हुआ है, जिससे द्विपक्षीय व्यापार प्रभावित हो रहा है। इसके अलावा खुलना-मोंगला रेल मार्ग पर वाणिज्यिक परिचालन शुरू नहीं हुआ है। भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित कई बंदरगाहों के काम में भी देरी हुई है। इससे व्यापार में नुकसान के साथ ही भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों का विकास भी बाधित हो रहा है।
पार्टियां
किस-किसके बीच है चुनावी मुकाबला?
अवामी लीग के बाहर होने के बाद चुनाव मैदान में अब बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP), जमात-ए-इस्लामी और नेशनल सिटिजन पार्टी (NCP) बची है। 2013 में जमात-ए-इस्लामी के चुनाव लड़ने पर लगा प्रतिबंध इसी साल हटा है। वहीं, छात्रों की राजनीतिक पार्टी NCP ने जमात-ए-इस्लामी से टूटकर बनी अमर बांग्लादेश (AB) पार्टी और राष्ट्र संस्कृति आंदोलन के साथ मिलकर नया मोर्चा गणतांत्रिक संस्कार गठजोट बनाया है। खालिदा जिया की BNP ने 237 सीटों पर उम्मीदवार भी घोषित कर दिए हैं।